जो सितारे हमारे बीच नहीं रहे उन्हें किया जा रहा जिंदा, हॉलीवुड के बाद बॉलीवुड में भी नई तकनीक ने रखा कदम

कम्प्यूटर जेनरेटेड इमेजरी यानी सीजीआई की मदद से किसी शख्स की न केवल हूबहू प्रतिकृति बनाई जाती है बल्कि उसे चलता, फिरता, बोलता दिखाते हैं जो अब इस दुनिया में नहीं है। अब इस तकनीक का इस्तेमाल बॉलीवुड में भी होने लगा है, लेकिन इसकी शुरुआत हॉलीवुड से हुई।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

अमिताभ पाराशर

कई साल पहले की बात है। बॉलीवुड के एक साधारण हैसियत के प्रोड्यूसर थे। उन्होंने अपनी एक फिल्म में एक असाधारण ईगो वाले अभिनेता राजकुमार को बतौर हीरो लेने की हिमाकत कर डाली। उनके नखरों की वजह से या किसी और वजह से फिल्म लगातार घिसटती रही लेकिन तय समय से कई साल बाद तक पूरी नहीं हो पाई। रही सही कसर पूरी ऐसी हुई कि इसमें राजकुमार के साथ काम कर रहे दूसरे फनकार संजीव कुमार की बिना अपने हिस्से की शूटिंग पूरी किए असामयिक मृत्यु हो गई।

अब प्रोड्यूसर साहब बुरे फंसे। खैर, फिल्म तो पूरी करनी ही थी। इतने पैसे लग चुके थे कि उसे अधर में छोड़ देना भी संभव न था। तो प्रोड्यूसर साहब ने इसका दूसरा तोड़ निकाला। उन्होंने संजीव कुमार के रोल को छोटा किया और एक डुप्लिकेट की मदद से जैसे-तैसे संजीव कुमार की कमी पूरी की। खैर, यह फिल्म रिलीज हुई और उम्मीद के अनुरूप बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई।

मान लीजिए, यही पुरानी कथा आज के परिदृश्य में घटित हो तो? अगर प्रोड्यूसर दमदार है, फिल्म भी दमदार बनी है तो अपने हिस्से का शूट पूरी करने से पहले दिवंगत हो चुके अभिनेता के बाकी हिस्से की शूटिंग कम्प्यूटर पूरी कर लेगा। कैसे? सीजीआई और मोशन कैप्चर परफॉरमेंस के जरिए! तकनीकी शब्दावली में इसे कम्प्यूटर जेनरेटेड इमेजरी कहते हैं। यानी शॉर्ट में सीजीआई और साफ कहें तो कम्प्यूटर की मदद से किसी शख्स की न केवल हूबहू प्रतिकृति (डुप्लिकेट) बनाई जाती है बल्कि उसे चलता, फिरता, बोलता दिखाते हैं, जो अब इस दुनिया में है ही नहीं।

यह संभव होता है उपरोक्त तकनीक से जहां उस दिवंगत शख्स से मिलते-जुलते कद-काठी वाले किसी व्यक्ति को उसकी जगह शूट करते हैं और फिर कम्प्यूटर की उक्त तकनीक के जरिए मर चुके अभिनेता या अभिनेत्री के फोटोकॉपी वर्जन को दर्शकों के सामने पेश कर देते हैं। शकल, सूरत, आवाज सब कुछ वही!


हालांकि अब इस तकनीक का इस्तेमाल बॉलीवुड में भी होने लगा है, लेकिन इसकी शुरुआत उम्मीद के अनुरूप हॉलीवुड में शुरू हुई। अब तो हॉलीवुड की बड़ी-बड़ी फिल्मों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। विज्ञापनों में हो रहा है। कई और जगह हो रहा है। कई बार इसका इस्तेमाल इस कदर महीन होता है कि पकड़ना मुश्किल होता है। जैसे मान लीजिए कि शाहरुख या सलमान या आमिर जैसे किसी स्टार के चेहरे पर दिख रही झुर्रियों को खत्म करना है, तो भी इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। हाल में शाहरुख खान और सलमान खान को उनकी उम्र से कम दिखाने के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल हुआ।

जब कम्प्यूटर जेनरेटेड इमेजरी का लगातार इस्तेमाल हो रहा है, तो हॉलीवुड में एक नैतिक दुविधा भी सामने आ रही है, खासकर उन लोगों के सामने जो पुराने फिल्म स्टारों को परदे पर पुनर्जीवन दे रहे हैं। उनकी मौत के बाद एक तरह से उन्हें परदे पर फिर से जिंदा कर रहे हैं। क्या इस वीएफएक्स और सीजीआई तकनीक के जरिए किसी दिवंगत स्टार को फिर से जीवित करना उचित है? अगर वह शख्स जिंदा रहता तो क्या इसकी अनुमति देता?

कई बार ऐसा भी होता है कि अगर तकनीक और तकनीक के पीछे काम कर रहे विशेषज्ञ सक्षम हैं तो दिवंगत व्यक्तित्व को हूबहू परदे पर जीवित कर देते हैं। लेकिन अगर, इस प्रक्रिया में कहीं हल्कापन आया तो फिर इसके उलट जो दिखता है, उसे देखकर लगता है कि वह मृत व्यक्ति का एक निहायत ही घटिया संस्करण है। ऐसे में नैतिक दुविधा का बड़ा सवाल खड़ा होता है।

हॉलीवुड ने हाल में कई ऐसे अभिनेताओं, अभिनेत्रियों, सितारों के साथ यह खेल किया है। इनमें से ज्यादातर ऐसे जो बहुत पहले मर चुके हैं। उदाहरण के लिए, विश्व प्रसिद्ध फिल्म और टीवी श्रृंखला, जिसे हम ‘स्टार वॉर’ के नाम से जानते हैं, के निर्माताओं ने करीब बीस साल पहले मर चुके चर्चित ब्रिटिश अभिनेता पीटर कुशिंग को इस तकनीक से परदे जिंदा कर दिया। यह सज्जन, स्टार वॉर श्रृंखला की एक फिल्म में खलनायक बने थे। बीस साल बाद, जब ‘रोग वन’ नाम से इसी श्रृंखला की एक फिल्म आई तो इस खलनायक महोदय की कमी खली और इन्हें जिंदा कर दिया गया।


इसके लिए एक अन्य अभिनेता से कहा गया कि वे उक्त मृत अभिनेता जैसा चलें, उनके जैसे अंदाज में संवाद बोलें। बाकी काम कम्प्यूटर जेनरेटेड इमेजरी या शॉर्ट में कहें तो सीजीआई तकनीक ने पूरा कर दिया। अगर हम ऐसे हर अभिनेता/अभिनेत्री के बारे में बताने लगें तो कहानी लंबी हो जाएगी, लेकिन यहां सिर्फ यह बता दें कि दुनिया के कई नामी दिवंगत अभिनेताओं को इस तकनीक ने परदे पर जिंदा किया है।

उदाहरण के लिए, ‘ग्लैडीएटर’ में ऑलिवर रीड, ‘गैलिक्सी चोकोलेट’ के एक विज्ञापन के लिए नामी अभिनेत्री ऑड्री हेप्बर्न को, ‘हंगर गेम्ज-2’ के लिए फिलिप सीमॉर हाफ्मन को, नामी टीवी श्रृंखला ‘द सोपरानोज’ के लिए नैन्सी मॉर्चंड को, ‘डिओ’ के विज्ञापन के लिए मार्लिन मुनरो, ग्रेस केली, मार्लिन डायटरिच को, ‘आयरन क्रॉस’ के लिए रॉय शाइडर को, फॉरेस्ट गम्प (इस फिल्म को आमिर खान हिंदी में बना रहे हैं) के लिए बहुत सारे ऐतिहासिक चरित्रों को, ‘जॉनी वॉकर’ के विज्ञापन के लिए ब्रूस ली को, ‘फ्यूरीयस 7’ के लिए पोल वॉकर को (शूट पूरी होने से पहले इनका रोड दुर्घटना में देहांत हो गया था), लॉरेन अलिवीए को ‘स्काई कैप्टन एंड द वर्ल्ड ऑफ टुमारो’, ‘सुपरमैन रिटर्नस’ के लिए मार्लन ब्रैंडो को जिंदा कर दिया गया।

अभी तो एक नया ही कमाल किया है हॉलीवुड ने। एक बड़ी फिल्म जो इस बार ऑस्कर अवार्ड की दौड़ में काफी आगे है, नामी फिल्म डायरेक्टर मार्टिन स्कोरसेसे की फिल्म ‘द आइरिशमैन’, जो इसी तकनीक के बेहतरीन इस्तेमाल की वजह से चर्चा में है! इस फिल्म में 76 साल के रॉबर्ट डीनीरो और उन्हीं के आसपास के एल. पचीनो और जो. पेस्की जैसे बड़े हॉलीवुड स्टार अपनी उम्र से करीब चालीस साल छोटे दिखाई पड़े हैं।

हॉलीवुड की एक बड़ी कंपनी है इंडस्ट्रियल लाइट्स एंड मैजिक। इसी कंपनी ने यह कमाल किया है जिसके लिए इस कंपनी को भी ऑस्कर अवार्ड के लिए इस बार नामित किया गया है। तो आने वाले वक्त में अगर कोई फिल्मकार दिलीप कुमार, राजकुमार और देव आनंद को लेकर एक नई फिल्म बनाने की घोषणा कर डाले तो हैरान न होइएगा!

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia