देश में क्रिकेट को एक नया तेवर देने वाले धोनी ‘मिडास टच’ के धनी हैं

धोनी अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर हैं। विश्व कप टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। अब इस तरह का मौका उनके करियर में नहीं आने वाला, लेकिन इस देश में क्रिकेट को एक नया तेवर देने में उनकी भूमिका जरूर यादगार है।

फोटोः सोशल मीडिया
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रत्ना श्रीवास्तव

आने वाला समय महेंद्र सिंह धोनी को कैसे याद करेगा- जवाब देने वाला तपाक से कहेगा- देश के सबसे सफल कप्तान और उम्दा फिनिशर बल्लेबाज के तौर पर। धोनी ने साबित किया कि सफल कप्तान कैसा होता है और वो कैसे नेतृत्व करता है। कम क्रिकेटर ऐसे होते हैं जो कप्तानी छोड़ने के बाद भी जब मैदान पर उतरते हैं तो उनकी धमक कप्तान से ज्यादा होती है। भारतीय क्रिकेट में धोनी युग खुद पर यकीन करने और आगे निकलने का बेहतरीन समय था। ऐसा समय, जब भारतीय क्रिकेट टीम की चाल-ढाल ये बताने के लिए काफी होती थी कि ये अलग टीम है... और यही आत्मविश्वास अब टीम इंडिया का डीएनए लगने लगा है।

वह दिसंबर, 2004 का समय था। भारतीय टीम एकदिवसीय मैच खेलने के लिए बांग्लादेश जाने वाली थी। थोड़े समय पहले ही प्रथम श्रेणी क्रिकेट में झारखंड के एक लंबे बालों वाले युवक धोनी ने अपनी आक्रामक बैटिंग से सेलेक्टर्स का ध्यान खींचा था। उन्हें उस टीम में चुना गया, जो बांग्लादेश का दौरा करने वाली थी। वह तब रांची से करीब 50 किलोमीटर दूर एक मैच खेल रहे थे। तब इस शर्मीले से युवक ने पहली बार नेशनल टीवी पर जगह भी पाई।

मीडिया से बात करने की हिचकिचाहट तो बेशक थी, लेकिन आत्मविश्वास भी दिखा। उसके बाद से अब तक का उनका सफर बेहद यादगार और चमकीला रहा। किसी सपने के हकीकत में बदलने की तरह। वैसे धोनी खुद को अक्सर लकी कहते हैं। वह रांची में स्कूल की फुटबाल की टीम में थे। कभी-कभार बैडमिंटन खेल लेते थे। क्रिकेट से कोई नाता नहीं था। वह क्रिकेट खेलना भी नहीं चाहते थे। फुटबाल में वह गोलकीपर थे।

स्थानीय कोच के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी को तराशने वाले चंचल भट्टाचार्य कहते हैं, ‘’मैं अक्सर उनके फुटबाल कोच से कहता था- अरे भई, इस लडक़े को क्रिकेट में भेजो। एक दिन हमारा क्रिकेट मैच था। हमारा विकेटकीपर नहीं आया। ये उनकी किस्मत ही थी कि हमने उनसे विकेटकीपर बनने के लिए कहा। मुझे लगा कि वह फुटबाल की गोलकीपिंग करते हैं, इसलिए यहां भी विकेटकीपिंग कर लेंगे। उन्होंने अच्छा खेल दिखाया। इस काम में खूब हिम्मत चाहिए थी। वो उनके भीतर शुरू से ही कूट-कूटकर भरी हुई थी।’’


इसके बाद उनका क्रिकेट का सफर शुरू हो गया। पहले स्थानीय टीम, फिर क्लब स्तर की टीम, फिर रीजनल टीम। उस समय वह आठ या नौ नंबर पर बैटिंग करने आते थे। चंचल भट्टाचार्य बताते हैं, ‘’उसी दौरान आगरा रेलवे के स्पोर्ट्स आफिसर सोमनाथ तायल वहां आए। वे चाहते थे कि कुछ अच्छे खिलाड़ियों को रेलवे में ट्रायल के लिए भेजा जाए। उन्होंने धोनी को खेलते हुए देखा तो कहा, ‘’इस लडक़े को तुरंत ट्रायल के लिए कोलकाता भेज दो। कल ही इसका वहां पहुंचना जरूरी है। अगले दिन तुरंत उन्हें किसी तरह से कोलकाता भेजा गया। उनका सेलेक्शन हो गया।’’

धोनी का सफर उसके बाद किस्मत और मेहनत दोनों के सहारे बढ़ा। देवधर ट्राफी में उनका टीम में चयन हुआ। उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी। किसी अखबार में यह खबर छपी। मैच त्रिपुरा में था। अगले ही दिन उन्हें वहां पहुंचना था। रात में कोलकाता के लिए टैक्सी की गई कि सुबह वहां से त्रिपुरा की पहली फ्लाइट पकड़ सकें। उस दिन रात में कोहरा भी था। जब तक धोनी कोलकाता पहुंचते, पहली फ्लाइट छूट चुकी थी। किसी तरह दूसरी फ्लाइट से भेजने की व्यवस्था की गई। वह वहां पहुंच तो गए लेकिन मैच नहीं खेल पाए।

ये उनके लिए बड़ा झटका था। इस तरह के कई झटके उन्हें लगते रहे। लेकिन मौके भी मिलते रहे। फिर दो घटनाओं ने उनकी जिंदगी एकदम बदल दी। जिनसे उनका कद और नाम लार्जर दैन लाइफ बन गया। पहली घटना थी साल 2007 में पहले टी-20 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम का एक के बाद एक मैच जीतते हुए चैंपियन बन जाना। वो भी तब जब भारत में टी-20 क्रिकेट की कोई जड़ ही नहीं थी।

दूसरी घटना है 2 अप्रैल, 2011 की रात की। जब मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में वर्ल्ड कप के फाइनल में धोनी एंड कंपनी ने श्रीलंका को हराकर देश को खुशियों का एक बड़ा लम्हा दिया। उस रात पूरा देश मानो थिरकता ही रहा। जीत के बाद जब धोनी सहयोगी क्रिकेटर युवराज सिंह के साथ प्रेस कांफ्रेंस में आए, तो उनका चेहरा खुशी से दपदपा रहा था, हालांकि उन क्षणों में भी वह संयम धारण किए हुए थे।


इन दो बड़ी सफलताओं के बाद वाकई उनके जीवन में सब कुछ बदल गया। वह बड़े ब्रांड में तब्दील हो गए। ऐसे शख्स बन गए जिनका स्पर्श मात्र मिट्टी को सोने में बदलने की ताकत रखता था। तमाम लोगों ने उन्हें किंग मिडास कह डाला यानि दंतकथा का वो राजा जिसके छूते ही हर चीज सोने की हो जाती थी। लेकिन कुछ समय बाद उनके जीवन में खराब समय भी आया।

आईपीएल-6 में फिक्सिंग विवाद में उनका भी नाम लिया जाने लगा। हालांकि समय के साथ ये बादल छंट भी गए। फिर 2012 के बाद विदेशी दौरों में क्रिकेट टीम को कुछ हार का सामना करना पड़ा। उन्हें कप्तानी से हटाए जाने की मांग होने लगी। लेकिन वह मजबूती से कप्तान बने रहे। हां, कुछ साल बाद उन्हें खुद टेस्ट क्रिकेट से हटने और कप्तानी छोड़ने का फैसला करना पड़ा।

हालांकि उन्होंने तब अपना खेल जिस तरह बदला, जिस तरह नए कप्तान विराट कोहली की मदद की, उसने उनके औरा को और चमकदार बना दिया। उनका फिनिशर का नया रोल, उनके शाट्स और मैदान पर विकेट के पीछे उनकी चुस्ती-फुर्ती सबकुछ और गजब ढाने लगी। एक बल्लेबाज और एक विकेटकीपर के तौर पर ये धोनी पहले वाले धोनी की तुलना में कहीं ज्यादा मैच्योर और विश्वसनीय था। जो ये जानता था कि कब क्या करना है। अब वे क्रिकेट प्रेमियों के बीच कहीं ज्यादा लोकप्रिय हो गए। सबको लगने लगा कि धोनी का जादू तो और असरदार हो गया है।

वैसे धोनी जब टीम इंडिया के कप्तान बने, तो टीम को लीड करना आसान भी नहीं था। तब टीम में कई सीनियर खिलाड़ी हुआ करते थे। उनमें कई के साथ धोनी के संबंध कोल्ड वार सरीखे बताए गए। अपनी अंतरंग कोटरी में धोनी अक्सर चर्चा करते थे कि कौन सा सीनियर खिलाड़ी किस तरह उनके खिलाफ राजनीति करता है।

साल 2007 में अगर सीनियर खिलाड़ियों ने उन्हें पहले टी-20 वर्ल्ड कप में कप्तान बनाने पर रजामंदी जाहिर की थी तो इसके पीछे उनकी सदाशयता नहीं थी। एक तो वो उस फार्मेट में खेलना नहीं चाहते थे, दूसरे इसके जरिए धोनी को बली का बकरा बनाने की तैयारी थी। क्योंकि सभी को लगता था कि टी-20 फार्मेट में कुछ कर पाना भारतीय टीम के वश की बात नहीं। धोनी ने उस अवसर को इतनी अच्छी तरह भुनाया कि आगे सब कुछ बदलता गया।

जब वह टीम में नए थे तभी उन्हें समझ में आ गया था कि टीम इंडिया के तीन गुटों में कोई भी उन्हें नहीं देखना चाहता, लिहाजा उन्होंने बीसीसीआई के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन से करीबी बढ़ाई। ये करीबी तब और बढ़ी, जब श्रीनिवासन ने उन्हें आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स का कप्तान बनाया। ये एक ऐसा मोड़ था, जिसके चलते बीसीसीआई अध्यक्ष से उनकी बांडिंग मजबूत होती चली गई। इस मजबूत बांडिंग के बाद किसी के लिए उनके खिलाफ कुछ कर पाना संभव नहीं रह गया। इसी के चलते वह टीम से धीरे-धीरे करके सीनियर्स से निजात भी पा सके।


कई बार धोनी अपने बेहद करीबी लोगों से कहते सुने गए कि किस तरह टीम इंडिया के कुछ सीनियर खिलाड़ी शुरू में उनसे बात करना भी पसंद नहीं करते थे। एक अजीब से हिकारत भाव का प्रदर्शन करते थे। लेकिन ऐसे में धोनी को टीम के उन सदस्यों का समर्थन और साथ मिला, जो उनके सताए या तंग किए हुए थे।

अब वो देश में सबसे ज्यादा धनी क्रिकेटरों में हैं. चार साल पहले फोर्ब्स मैगजीन ने उन्हें देश का सबसे धनी क्रिकेटर माना था। पिछले तीन सालों में उनका ब्रांड फिर दमदार साबित होने लगा है। वो ऐसे क्रिकेटर रहे हैं, जो क्रिकेट और एंडोर्समेंट से हर साल सैकड़ों करोड़ कमाते हैं। कई भारतीय स्पोर्ट्स लीग की टीमों में उनका पैसा लगा है। उनके अपने कई कारोबार हैं। जिम की चैन है। मोटा निवेश है। देश के कई महानगरों में आलीशान फ्लैट और मकान हैं। साथ में महंगी कारों और बाइक का काफिला। रांची में उनका नया बंगला वहां के सबसे शानदार घरों में है। हालांकि अब वह रांची कम ही जाते हैं। आमतौर पर उनका समय दिल्ली और मुंबई में बीतता है।

धोनी को युवावय से जानने वाले रांची के उनके एक पत्रकार मित्र कहते हैं, ‘’उनमें बदलाव तो आया है, लेकिन परिचितों के लिए वह आज भी वैसे ही हैं। ऐसा लगता है कि वह कुछ भी नहीं भूले। आज भी जब वह रांची में होते हैं तो सुबह मोटरसाइकल उठाते हैं और प्रैक्टिस पर पहुंच जाते हैं। उनका परिवार भी वैसे का वैसा ही है। जमीन से जुड़ा हुआ।’’

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