मौत नहीं मदरसा है मीडिया का मुद्दा !

क्या मदरसों में देशभक्ति और पूर्व उपराष्ट्रपति की नियत की जांच करना किसी देश के जिम्मेदार देश की पत्रकारिता की प्राथमिकता हो सकती है, जब अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने से दर्जनों बच्चों की मौत हो रही हो?

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में मासूम का शव ले जाते परिजन / फोटो : Getty Images
गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में मासूम का शव ले जाते परिजन / फोटो : Getty Images
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नवजीवन डेस्क

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से पिछले पांच दिनों में लगभग 63 लोगों की मौत हो गई है, इनमें 30 बच्चों की जान सिर्फ शुक्रवार को चली गई। इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया है। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने इस घटना के बाद कहा कि यह त्रासदी नहीं, नरसंहार है।

इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार मामले पर पर्दा डालने की कोशिश में लगी हुई है। लोगों और विपक्षी नेताओं के सवाल उठाने के बाद प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री के पी मौर्य ने कहा कि विपक्ष जल्दबाजी में बयान दे रहा है। घटना के बाद से सरकार की तरफ से अंतर्विरोधी बयान भी देखने को मिले हैं। शुरूआत में तो सरकार ने यहां तक कह डाला कि यह ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। दूसरी तरफ सामने आई खबरों के मुताबिक ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था कर रहे विभाग ने अधिकारियों को 3 और 10 अगस्त को यह सूचना दी थी कि पैसा बकाया होने की वजह से ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स ने सप्लाई बंद कर दी है और ऑक्सीजन की कमी हो गई है।

अब सवाल यह उठता है कि देश में हुई ऐसी त्रासदी के बावजूद भारत के टेलीविजन चैनल इसे बहस करने का मुद्दा नहीं समझते। एक-दो अपवादों को छोड़ दिया जाए तो पूरी प्राइम टाइम बहस इस मसले पर केन्द्रित थी कि मदरसों में स्वंतत्रता दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराने और उन्हें देशभक्ति के सबूत के तौर पर पेश करने के यूपी सरकार के आदेश में बुरा क्या है। मीडिया के लिए दूसरा बड़ा मुद्दा पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का भाषण था जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के मुसलमानों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है।

मीडिया के कुछ स्वनामधन्य एंकर बच्चों की मौत के मुद्दे को इन ‘बड़े मुद्दों’ से भटकाने की कोशिश की तरह देख रहे थे। क्या मदरसों में पढ़ने वाले लोगों की देशभक्ति और पूर्व उपराष्ट्रपति की नियत की जांच करना किसी देश के जिम्मेदार देश की पत्रकारिता की प्राथमिकता हो सकती है, जब अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने से दर्जनों बच्चों की मौत हो रही हो?

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Published: 12 Aug 2017, 11:47 AM