सरकार ने माना, जीएसटी ने किया अर्थव्यवस्था का कबाड़ा, चार साल के निचले स्तर पर 6.5 फीसदी रहेगी  विकास दर

आखिरकार मोदी सरकार ने मान लिया है कि जीएसटी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गयी है और मौजूदा वित्त वर्ष में विकास दर 6.5 फीसदी ही रहेगी। ये आंकड़ा पिछले 4 साल का निचला स्तर है।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देश की आर्थिक हालत खराब है और चालू वित्त वर्ष खत्म होते-होते इसके चार साल के निचले स्तर पर पहुंचने की संभावना है। यह अनुमान सरकार के ही केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी सीएसओ ने लगाया है। सीएसओ का कहना है कि मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2017-18 में देश की तरक्की की रफ्तार यानी जीडीपी ग्रोथ 6.5 फीसदी ही रह सकती है।

अग्रिम अनुमान यानी एडवांस एस्टीमेट जारी करते हुए सरकार के चीफ स्टैटिस्टिशन टी सी ए अनंत ने माना कि 2018 की औसत विकास दर पर जीएसटी का असर पड़ा है। जिससे आर्थिक विकास दर 2016-17 के 7.1 के मुकाबले गिरकर 6.5 फीसदी पहुंच जाएगी। एवरेज ग्रोथ पर जीएसटी का कुछ असर पड़ा है। विशेषज्ञों ने पहले ही विकास दर 7 फीसदी से नीचे रहने का अनुमान लगाया था।

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सरकार के चीफ स्टैटिस्टिशन टी सी ए अनंत

इन आंकड़ों की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि ऐसी अर्थव्यवस्था में राजकोषीय घाटे का 3.2 फीसदी का लक्ष्य काबू से बाहर हो जाएगा। इसके अलावा अगले साल के बजट में इन्हीं आंकड़ों को ध्यान में रखकर हर सेक्टर के लिए घोषणाएं होंगी।

टी सी ए अनंत का कहना है कि पहली छमाही के मुकाबले अक्टूबर-मार्च की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार हुआ है। पहली छमाही में नोटबंदी और जीएसटी ने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया था और देश की तरक्की पटरी से उतर गई थी। टी सी ए अनंत ने माना है कि अर्थव्यवस्था पर जीएसटी का विपरीत असर पड़ा है।

सीएसओ के मुताबिक कृषि और उद्योग दोनों की सुस्ती का असर जीडीपी पर पड़ सकता है। सीएसओ ने 2017-18 के लिए उद्योगों की विकास दर का अनुमान 4.4 फीसदी लगाया है जो कि पिछले साल के 5.6 फीसदी के मुकाबले काफी कम है। इसी तरह कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.11 फीसदी रहने का अनुमान है जो पिछले साल के 4.9 फीसदी के मुकाबले आधे से भी कम है।

लेकिन कुछ राहत के आंकड़े भी हैं। मसलन सर्विस सेक्टर की विकास दर 8.3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है जो कि पिछले साल के 7.7 फीसदी के मुकाबले कुछ ज्यादा है।

सीएसओ ने स्पष्ट किया है कि आर्थिक विकास में गिरावट और सुस्ती के दो अहम कारण है। इनमें पिछले साल नवंबर में लागू हुई नोटबंदी और इस साल जुलाई में लागू जीएसटी है। इन दोनों ही कदमों का अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है।

इन आंकड़ों के अलावा चिंता की बात जीवीए के कम रहने की भी है। सीएसओ का कहना है कि ग्रॉस वैल्यू एडेड ग्रोथ यानी जीवीए के 6.1 फीसदी रहने का अनुमान है जो कि पिछले साल 6.6 फीसदी थी। जीवीए की अहमियत इससे समझी जा सकती है कि जीवीए में राजस्व जोड़कर और सब्सिडी घटाकर जीडीपी की गणना होती है। इसके चलते देश की जीडीपी ग्रोथ उम्मीद से कम है।

एक न्यूज वेबसाइट के मुताबिक एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष का कहना है कि इस साल जीडीपी के 7 फीसदी का आंकड़ा पार करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि पिछले साल के विस्तार को अगर नीचे की तरफ संशोधित किया जाएगा तो विकास दर के आंकड़े बढ़ सकते हैं।

वेबसाइट के अनुसार योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि सीएसओ के अनुमानों के विपरीत आर्थिक विकास दर इस साल 6.2 या 6.3 फीसदी ही रहेगी। वहीं एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सौगता भट्टाचार्य का कहना है कि जीवीए में भी कमी दर्ज होगी।

उधर योजना आयोग के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ अर्थशास्त्री अभिजीत सेन का कहना है कि इस साल विकास दर 6 से 6.5% की रेंज में ही रहेगी और इसकी वजब जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स कलेक्शन में खामियां हैं।

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