अर्थतंत्र की खबरें: नए अमेरिकी टैरिफ से भारत को निर्यात में नुकसान! और एमपीसी बैठक में ब्याज दरों में होगी कटौती?
केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया, "न केवल भारत की निर्यात पर निर्भरता कम है, बल्कि अमेरिका को होने वाला गुड्स निर्यात देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 2 प्रतिशत के बराबर है, जो अतिरिक्त मजबूती प्रदान करता है।"

नए अमेरिकी टैरिफ से भारत का निर्यात नुकसान जीडीपी का 0.3 प्रतिशत से लेकर 0.4 प्रतिशत के बीच रह सकता है। इसकी वजह भारत की अर्थव्यवस्था का घरेलू बाजार पर केंद्रित होना और अमेरिका को गुड्स निर्यात में देश की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम होना है। यह जानकारी शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट दी गई।
केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया, "न केवल भारत की निर्यात पर निर्भरता कम है, बल्कि अमेरिका को होने वाला गुड्स निर्यात देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 2 प्रतिशत के बराबर है, जो अतिरिक्त मजबूती प्रदान करता है।"
रिपोर्ट में बताया गया कि भारत का सर्विसेज निर्यात इन टैरिफ के दायरे से बाहर रहेगा और इससे एक्सटर्नल सेक्टर को समर्थन मिलता रहेगा।
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 26 में चालू खाता घाटा (सीएडी) सकल घरेलू उत्पाद के 0.9 प्रतिशत पर बना रहेगा।
रूस से भारत के तेल आयात में किसी भी तरह के विविधीकरण का भारत के सीएडी पर न्यूनतम प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, क्योंकि रूसी यूराल और बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड के बीच मूल्य अंतर 2023 के औसत 20 डॉलर प्रति बैरल से घटकर लगभग 3 डॉलर प्रति बैरल रह गया है।
वित्त वर्ष 25 में अमेरिका को भारत का व्यापारिक निर्यात 87 अरब डॉलर रहा। निर्यात में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का हिस्सा सबसे अधिक 17.6 प्रतिशत रहा। इसके बाद 11.8 प्रतिशत के साथ फार्मा उत्पाद और 11.5 प्रतिशत के साथ रत्न एवं आभूषण का स्थान रहा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 37 प्रतिशत है। इस क्षेत्र की चुनिंदा वस्तुओं को 25 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क से अस्थायी रूप से छूट दी गई है। इसके अतिरिक्त, अमेरिका को भारत के फार्मा निर्यात (जो भारत के कुल फार्मा निर्यात का 35 प्रतिशत है) को भी टैरिफ से बाहर रखा गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, वियतनाम, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे कई एशियाई समकक्षों की तुलना में अमेरिका को अपने निर्यात के लिए भारत का सापेक्ष टैरिफ लाभ, 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ के बाद प्रभावी रूप से उलट गया है, साथ ही रूस के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों से जुड़े अतिरिक्त पेनल्टी लगने की संभावना भी है।
हालांकि, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता जारी रहने की उम्मीद है और इससे कुछ राहत मिल सकती है। फिर भी, भारत कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को खोलने को लेकर सतर्क रहेगा, जिससे संकेत मिलता है कि वार्ता पूरी होने में कुछ समय लग सकता है।
आरबीआई 6 अगस्त की एमपीसी बैठक में ब्याज दरों को रख सकता है स्थिर : रिपोर्ट
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) 6 अगस्त को होने वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में रेपो रेट को अपरिवर्तित रख सकता है। यह जानकारी शुक्रवार को आई एक रिपोर्ट में दी गई।
एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक बाजार की अनिश्चितताओं और टैरिफ संबंधी चिंताओं के बीच, आगामी तीन तिमाहियों में भारत की जीडीपी 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो मौजूदा अनुमानों से अधिक है।
विश्लेषकों का मानना है कि जीडीपी डिफ्लेटर में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति बहुत अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है, "ऐसी स्थिति में वित्त वर्ष 2026 की जून, सितंबर और दिसंबर तिमाहियों में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर लगभग 7 प्रतिशत हो सकती है, जो जमीनी स्तर पर वास्तविक वृद्धि के हमारे अनुमान से अधिक है।"
विश्लेषकों ने कहा कि लंबी अवधि में कॉर्पोरेट परिणामों में सुधार हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण से, जून में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि में आई कमजोरी कॉर्पोरेट परिणामों में भी दिखाई दी है। हमारे पूर्वानुमान के अनुसार, एनजीडीपी वृद्धि में यह कमजोरी, जो आंशिक रूप से गिरती कीमतों के कारण है, दिसंबर तिमाही तक बनी रहने की संभावना है। अच्छी बात यह है कि समय के साथ, इनपुट कीमतों में गिरावट कॉर्पोरेट मार्जिन को बढ़ाती है।"
हालांकि औपचारिक क्षेत्र में अच्छी वृद्धि के बाद धीमी गति आई, लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र में मजबूती आई, जिससे विकास के रुझान को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई।
जून के आंकड़े निराशाजनक रहे, जिससे अनिश्चितताएं बढ़ गईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह देखना बाकी है कि यह जल्दी बारिश के कारण हुई एक बार की घटना थी या किसी रुझान की शुरुआत।
अनौपचारिक क्षेत्र की आय में सुधार से उपभोग ऋणों की मांग कम हो सकती है। ऋण वृद्धि दोनों तरफ से प्रभावित हो रही है। आरबीआई द्वारा की गई ढील से आंशिक रूप से मदद मिली। औपचारिक क्षेत्र की स्थिति सुधारने वाले सुधार बेहतर समाधान हो सकते हैं।
मुद्रास्फीति के बारे में रिसर्च डिविजन ने कहा कि वित्त वर्ष 2026 में औसत मुद्रास्फीति 3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2027 में 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, यानी औसतन 4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सोने को छोड़कर, मुख्य मुद्रास्फीति भी 4 प्रतिशत के आसपास है और पिछले एक वर्ष में इसमें ज्यादा गिरावट नहीं आई है। अंतर्निहित दर आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य के बराबर है।
सोना 400 रुपये टूटकर 97,620 रुपये प्रति 10 ग्राम, चांदी 2,500 रुपये लुढ़की
स्टॉकिस्टों की लगातार बिकवाली के कारण शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी के सर्राफा बाजार में सोने की कीमत 400 रुपये टूटकर 97,620 रुपये प्रति 10 ग्राम रही। अखिल भारतीय सर्राफा संघ ने यह जानकारी दी।
पिछले कारोबारी सत्र में 99.9 प्रतिशत शुद्धता वाले सोने की कीमत 98,020 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुई थी।
राष्ट्रीय राजधानी में, 99.5 प्रतिशत शुद्धता वाला सोना शुक्रवार को 300 रुपये गिरकर 97,500 रुपये प्रति 10 ग्राम (सभी करों सहित) रहा, जबकि पिछले सत्र में यह 97,800 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ था।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नरमी के चलते सोने में गिरावट रही। उन बाजारों में इसकी कीमत 3,290 डॉलर प्रति औंस के आसपास थी।’’
एलकेपी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषण (जिंस और मुद्रा) विभाग के उपाध्यक्ष, जतिन त्रिवेदी ने कहा, ‘‘यह गिरावट अमेरिकी फेडरल रिजर्व के लगातार आक्रामक रुख और निकट भविष्य में ब्याज दर में कटौती के कोई संकेत नहीं मिलने के दबाव के बीच आई है। इससे सुरक्षित निवेश के लिए सर्राफा की बाजार धारणा कमजोर हुई है।’’
सर्राफा एसोसिएशन के अनुसार, चांदी की कीमतों में भी लगातार दूसरे दिन गिरावट जारी रही और शुक्रवार को यह 2,500 रुपये गिरकर 1,09,500 रुपये प्रति किलोग्राम (सभी करों सहित) रही।
पिछले सत्र में चांदी 1,12,000 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुई थी।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ विश्लेषक (जिंस) सौमिल गांधी ने कहा, ‘‘वैश्विक स्तर पर, हाजिर सोना 0.12 प्रतिशत बढ़कर 3,294.31 डॉलर प्रति औंस पर रहा।’’
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ विश्लेषक (कमोडिटीज) सौमिल गांधी ने कहा, ‘‘सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन सोने में नकारात्मक रुझान रहा और साप्ताहिक आधार पर गिरावट के साथ बंद हुआ।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह गिरावट, सुरक्षित निवेश के विकल्प के रूप में मांग में कमी और अमेरिकी डॉलर में मजबूत सुधार के कारण है, जो इस सप्ताह अब तक 2 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के साथ नौ सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।’’
न्यूयॉर्क में हाजिर चांदी 0.75 प्रतिशत गिरकर 36.44 डॉलर प्रति औंस रही।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 12 पैसे चढ़कर 87.53 पर बंद
कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और संभवत: आरबीआई के हस्तक्षेप के कारण शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 12 पैसे मजबूत होकर 87.53 (अस्थायी) पर बंद हुआ।
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए सिरे से शुल्क लगाने के कारण वैश्विक व्यापार परिदृश्य में व्यापक व्यवधान की चिंताओं के चलते रुपये पर दवाब बना हुआ है।
विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने से जोखिम न लेने की भावना मजबूत हुई और रुपये के गिरने की आशंका बढ़ गईं।
ट्रंप ने बुधवार को भारत पर 25 प्रतिशत शुल्क और रूस से सामान खरीदने पर अतिरिक्त जुर्माना लगाने का ऐलान किया था।
शुल्क लागू करने की तारीख एक अगस्त थी, लेकिन इसे बढ़ाकर सात अगस्त कर दिया गया।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.60 पर खुला। कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया ने 87.20 के ऊपरी स्तर को छूआ। अंत में रुपया 12 पैसे बढ़कर 87.53 (अस्थायी) पर बंद हुआ था।
रुपया बृहस्पतिवार को अपने सर्वकालिक निम्नतम स्तर से 15 पैसे की बढ़त के साथ 87.65 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
मिराए एसेट शेयरखान के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा, ''अमेरिका से मिले-जुले और सकारात्मक आर्थिक आंकड़ों ने डॉलर को सहारा दिया। हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और आरबीआई के रिकॉर्ड निम्न स्तर पर हस्तक्षेप की खबरों ने रुपये के शुरुआती नुकसान को कम कर दिया।''
इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति का आकलन करने वाला डॉलर सूचकांक 0.26 प्रतिशत बढ़कर 100.23 पर पहुंच गया।
ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत 0.31 प्रतिशत गिरकर 71.48 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई।
चौधरी ने कहा, ''हमारा अनुमान है कि रुपया कमजोर रहेगा। घरेलू बाजार कमजोर रहा। व्यापार समझौते पर जारी अनिश्चितता के चलते बाजार की धारणा प्रभावित हुई। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली से रुपये पर और दबाव पड़ सकता है। डॉलर-रुपये का हाजिर भाव 87.15 से 88 के बीच रहने का अनुमान है।''
घरेलू शेयर बाजार में सेंसेक्स 585.67 अंक या 0.72 प्रतिशत गिरकर 80,599.91 पर बंद हुआ। दूसरी ओर निफ्टी 203.00 अंक या 0.82 प्रतिशत गिरकर 24,565.35 पर बंद हुआ।
शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बृहस्पतिवार को शुद्ध आधार पर 5,588.91 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
अमेरिकी शुल्क से भारत के निर्यात पर पड़ सकता है गंभीर असर: जीटीआरआई
अमेरिका के भारत के सभी सामानों पर सात अगस्त से बिना किसी छूट के 25 प्रतिशत का शुल्क लगाने से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर बुरा असर पड़ सकता है। जीटीआरआई ने शुक्रवार को यह बात कही।
आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) द्वारा अमेरिका के कार्यकारी आदेश के विश्लेषण के अनुसार 25 प्रतिशत शुल्क दवा, मुख्य रसायन, ऊर्जा उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक जैसे क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक एक आदेश में विभिन्न देशों पर लगने वाली शुल्क दरों का ब्योरा दिया है। इसके तहत भारत पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने की पुष्टि की गई है।
‘जवाबी शुल्क दरों में अतिरिक्त संशोधन’ शीर्षक वाले सरकारी आदेश में राष्ट्रपति ट्रंप ने करीब 70 देशों पर लगाए जाने वाली शुल्क दरों का ब्योरा दिया है।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘अमेरिका ने भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात को बुरी तरह प्रभावित करने वाला कदम उठाते हुए भारत के अधिकतर सामानों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है। यह सात अगस्त 2025 से लागू होगा। भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों का एक महत्वपूर्ण अध्याय उथल-पुथल भरे दौर में प्रवेश कर गया है। ’’
आदेश में उल्लेख किया गया है कि एक बार देश अमेरिका के साथ समझौता कर लें तो शुल्क कम हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि 25 प्रतिशत शुल्क छूट प्राप्त श्रेणियों पर लागू नहीं होगा। इनमें तैयार दवाइयां, दवा सामग्री (एपीआई) व अन्य प्रमुख दवाओं के कच्चे माल, ऊर्जा उत्पाद जैसे कच्चा तेल, परिष्कृत ईंधन, प्राकृतिक गैस, कोयला व बिजली; महत्वपूर्ण खनिज; इलेक्ट्रॉनिक एवं अर्धचालकों की एक विस्तृत श्रृंखला जिसमें कंप्यूटर, टैबलेट, स्मार्टफोन, सॉलिड-स्टेट ड्राइव, फ्लैट पैनल डिस्प्ले और एकीकृत सर्किट शामिल हैं।
एक अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत का वस्तु निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 के 86.5 अरब अमेरिकी डॉलर से 30 प्रतिशत घटकर वित्त वर्ष 2025-26 में 60.6 अरब अमेरिकी डॉलर रह सकता है।
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