अर्थतंत्र की खबरें: टैरिफ टेंशन के बीच अमेरिकी डॉलर में लगातार गिरावट और इस बैंक ने ब्याज दरों में की कटौती
अमेरिकी मुद्रा लगातार पांचवें दिन कमजोर हुई है। इस गिरावट से दुनिया की अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर सूचकांक (डीएक्सवाई) तीन साल के निचले स्तर पर आ गया।

अमेरिकी डॉलर में सोमवार को 0.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। अमेरिकी मुद्रा लगातार पांचवें दिन कमजोर हुई है। इस गिरावट से दुनिया की अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर सूचकांक (डीएक्सवाई) तीन साल के निचले स्तर पर आ गया।
अप्रैल की शुरुआत में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी आक्रामक टैरिफ नीतियों को पेश करते हुए 'लिबरेशन डे' की घोषणा की, तब से डॉलर सूचकांक में चार प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।
निवेशकों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती पर भरोसा खत्म होने लगा है और वे अमेरिकी परिसंपत्तियों से अपना पैसा निकाल रहे हैं।
राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले सप्ताह इन चिंताओं को संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिकी डॉलर हमेशा 'पसंदीदा मुद्रा' बना रहेगा।
उन्होंने कहा कि अगर कोई देश डॉलर का इस्तेमाल करना बंद करता है तो उसका फैसला पलटवाने के लिए एक फोन कॉल ही काफी होगा। उनके आत्मविश्वास के बावजूद, बाजार की प्रतिक्रियाओं में बढ़ती घबराहट दिखी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में डॉलर का अभी भी कोई स्पष्ट विकल्प नहीं है, लेकिन टैरिफ को लेकर हाल ही में हुई खींचतान ने अनिश्चितता पैदा कर दी है।
पिछले सप्ताह ही अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर कुल 145 प्रतिशत कर दिया। जवाब में चीन ने अमेरिकी आयात पर टैरिफ 84 प्रतिशत से बढ़ाकर 125 प्रतिशत कर दिया।
विशेषज्ञों ने कहा, "इस व्यापार युद्ध ने बाजारों में वैश्विक बिकवाली को बढ़ावा दिया है।" यहां तक कि अमेरिका के सरकारी बॉन्ड जैसे पारंपरिक रूप से सुरक्षित निवेश भी प्रभावित हुए हैं।
10 साल के अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड पर रिटर्न अब 2001 के बाद से सबसे बड़ी साप्ताहिक उछाल की ओर बढ़ रहा है, यह इस बात का संकेत है कि निवेशक जोखिम के लिए उच्च रिटर्न की मांग कर रहे हैं।
इस बीच, पिछले सप्ताह शुक्रवार को रुपए ने दो साल की सबसे बड़ी एक दिवसीय बढ़त दर्ज की, जो कमजोर डॉलर और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण 0.75 प्रतिशत बढ़ गया।
भारतीय मुद्रा 86.05 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुई, जो गुरुवार के 86.70 रुपए प्रति डॉलर के बंद स्तर से काफी बेहतर है।
यह सुधार निवेशकों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर बढ़ी चिंता के बीच हुआ है, जिसके कारण डॉलर की मजबूती में गिरावट आई है।
ट्रेड वार से गोल्ड की कीमतों में आ सकती है 38 प्रतिशत तक की तेजी : गोल्डमैन सैश
ट्रेड वार के चलते गोल्ड की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़कर 4,500 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती हैं, जो कि मौजूदा भाव 3,247 डॉलर प्रति औंस से करीब 38 प्रतिशत अधिक है। यह जानकारी विदेशी निवेश बैंक गोल्डमैन सैश की ओर से दी गई।
विदेशी निवेश बैंक गोल्डमैन सैश ने बढ़ते अमेरिकी-चीन व्यापार युद्ध और मंदी की आशंकाओं का हवाला देते हुए कहा कि अत्यधिक जोखिम की स्थिति में 2025 के अंत तक गोल्ड की कीमतें 4,500 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती हैं।
इसके अलावा, वित्तीय फर्म ने कहा कि सामान्य स्थिति में गोल्ड की कीमतें 2025 के अंत तक बढ़कर 3,700 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती है।
गोल्डमैन सैश की ओर से 2025 के अंत के गोल्ड के टारगेट में तीसरी बार बढ़ोतरी की गई है। इससे पहले विदेशी बैंक ने गोल्ड की कीमत के टारगेट को बढ़ाकर 3,300 डॉलर प्रति औंस कर दिया था।
विदेशी फर्म ने कहा कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध में वृद्धि के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर बढ़ी चिंताओं के चलते मंदी से बचाव के लिए गोल्ड की मांग बढ़ गई है।
गोल्ड की कीमतों में बीते हफ्ते 6.5 प्रतिशत का उछाल देखने को मिला है। कोविड-19 के बाद गोल्ड का यह सबसे अच्छा साप्ताहिक प्रदर्शन था। इसकी वजह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ से वैश्विक स्तर पर बढ़ती अस्थिरता है, जिससे गोल्ड की कीमतों को सहारा मिल रहा है।
बाजार विश्लेषकों का कहना है कि मंदी के जोखिम, बॉन्ड यील्ड में वृद्धि और वित्तीय अस्थिरता की चिंता निवेशकों को गोल्ड की ओर आकर्षित कर रही है।
व्यक्तिगत निवेशकों के अलावा, संस्थानों और केंद्रीय बैंकों की ओर से भी गोल्ड की मांग बढ़ रही है, जिससे कीमतों को सहारा मिला है। इस साल की पहली तिमाही में गोल्ड आधारित एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में 2020 के बाद से सबसे अधिक निवेश हुआ।
केंद्रीय बैंक, खासकर उभरते बाजारों में, डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश में अधिक मात्रा में गोल्ड खरीद रहे हैं।
बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने खुदरा ऋण दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती की
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ महाराष्ट्र (बीओएम) ने भारतीय रिजर्व बैंक की प्रमुख नीतिगत दर के अनुरूप रेपो दर से जुड़ी ऋण दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की है।
बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने सोमवार को बयान में कहा कि बैंक की रेपो से जुड़ी ऋण दर (आरएलएलआर) अब 9.05 प्रतिशत से घटाकर 8.80 प्रतिशत कर दी गई है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार दूसरी बार प्रमुख ब्याज दरों में बुधवार को 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी, ताकि अमेरिका के जवाबी शुल्क के खतरे का सामना कर रही वृद्धि को समर्थन दिया जा सके।
बैंक ने कहा कि घटी हुई दरें ऋण को और अधिक किफायती बना देंगी तथा ग्राहकों के वित्तीय लाभ को बढ़ाएंगी।
बैंक ने कहा कि चूंकि बैंक द्वारा पेश किए जाने वाले सभी खुदरा ऋण आरएलएलआर से जुड़े हैं...इसलिए इस कटौती से गृह, कार, शिक्षा, सोना और अन्य सभी खुदरा ऋण उत्पादों का लाभ उठाने वाले ग्राहकों को फायदा होगा।
इस बीच, सार्वजनिक क्षेत्र के एक अन्य ऋणदाता इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) ने भी रेपो दर में कटौती के अनुरूप अपनी प्रमुख ऋण दर को 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है।
अमेरिकी शुल्क में बढ़ोतरी के बाद चीन का निर्यात बढ़ा, आयात में गिरावट
चीन के निर्यात में मार्च में सालाना आधार पर 12.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वहीं इसी अवधि में आयात में 4.3 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अमेरिका के चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क में बढ़ोतरी के बीच सरकार ने सोमवार को यह जानकारी दी।
विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से निर्यात 2025 के पहले तीन (जनवरी-मार्च) महीनों में सालाना आधार पर में 5.8 प्रतिशत बढ़ा, जबकि आयात में सात प्रतिशत की गिरावट आई।
चीन का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष मार्च में 27.6 अरब डॉलर रहा, जबकि इसके निर्यात में 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष की पहली (जनवरी-मार्च) तिमाही में अमेरिका के साथ चीन का व्यापार अधिशेष 76.6 अरब डॉलर रहा।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीतियों में हाल ही में किए गए संशोधनों के अनुसार चीन को अमेरिका को किए जाने वाले अधिकतर निर्यातों पर 145 प्रतिशत शुल्क का सामना करना पड़ रहा है।
सीमा शुल्क प्रशासन के प्रवक्ता ने कहा कि चीन ‘‘ जटिल व गंभीर स्थिति’’ का सामना कर रहा है, लेकिन वह घुटने नहीं टेकेगा।
उन्होंने चीन के विविध निर्यात विकल्पों और विशाल घरेलू बाजार की ओर इशारा करते हुए यह बात कही।
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