एक तो जीएसटी की मार, ऊपर से ‘नौकरी छूटना शुभ’ मानती है सरकार

कम होते नौकरी के मौके और नौकरियां छूट जाने को मोदी सरकार शुभ संकेत मानती है। उसका मानना है कि आज का युवा नौकरी नहीं मांगना चाहता, बल्कि उद्यमी बनकर दूसरों को भी रोजगार देना चाहता है।

फोटो : Getty Images
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नवजीवन डेस्क

लगातार कम होती नौकरियां और लगी लगाई नौकरियां छूट जाने को केंद्र की मोदी सरकार शुभ संकेत मानती है। सरकार का मानना है कि जिन्हें नौकरियां नहीं मिल रही है या जिनकी छूट रही है, वे बेरोजगार नहीं हो रहे, बल्कि उद्यमी बनकर दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। ये बयान आया है रेल मंत्री पीयुष गोयल की तरफ से।

विश्व इकॉनॉमिक फोरम की इंडिया इकॉनॉमिक समिट के दौरान जब भारती एयरटेल के चेयरमैन अपनी बात रख रहे थे कि, बीते दो-तीन सालों में देश की 200 टॉप कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की संख्या में बहुत बड़ी कटौती की है। उन्होंने कहा कि , “अगर ये कंपनियां नौकरियां नहीं देंगी, तो पूरे के पूरे उद्योग जगत को समाज को अपने साथ लाने में दिक्कत होगी। इतना ही नहीं लाखों लोग विकास की राह में पीछे छूट जाएंगे।“

मित्तल की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि कार्यक्रम में मौजूद रेल मंत्री पीयुष गोयल बीच में ही बोल पड़े, “बीते सालों में अगर बड़ी कंपनियों ने नौकरियों में कटौती की है तो यह बहुत ही अच्छे संकेत हैं।” उन्होंने कहा कि, “आने वाले कल का युवा नौकरी मांगने वाला नहीं बनना चाहता, वह नौकरी देने वाला बनना चाहता है।” पीयुष गोयल ने कहा कि देश में आज ज्यादा से ज्यादा युवा उद्यमी बनना चाहते हैं।

एक तो जीएसटी की मार, ऊपर से ‘नौकरी छूटना शुभ’ मानती है सरकार

पीयुष गोयल किस संदर्भ में यह बात कह रहे थे, यह वही जानें, लेकिन उनके इस बयान ने बेरोजगारों का मजाक जरूर उड़ाया है। यह उसी तरह की बात थी जैसा हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि महारानी को जब लोगों ने बताया कि लोगों के पास खाने को रोटी नहीं है, तो उन्होंने कहा कि अच्छा तो वे केक खा लें। पीयुष गोयल शायद सरकार की मुद्रा योजना की तरफ इशारा कर रहे थे, जिसमें दावा किया जाता है कि युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए आसानी से पैसा मुहैया कराया जाता है। लेकिन इस योजना के आंकड़े, जो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी सप्ताह पेश किए थे, बताते हैं कि इस योजना के तहत करीब 9 करोड़ लोगों को पौने चार लाख करोड़ रुपए कर्ज दिया गया।

इस हिसाब से हर युवा उद्यमी को इतना पैसा तो नहीं दिया गया कि वह उद्यमी बन जाए और दूसरों को नौकरी और रोजगार मुहैया कराए। हां, यह रकम ऐसी जरूर है कि इससे छोटी-मोटी दुकान खोल ली जाए। और अगर दुकान या छोटा धंधा करने में लगेगा तो इस युवा को उस गड़बड़ और सताने वाले टैक्स यानी जीएसटी से दो-चार होना पड़ेगा, जिसे आम कारोबारी और उद्यमी तो दूर, सरकार भी खुद नहीं समझ पा रही है।

लेकिन पहले आपको बता देते हैं कि नौकरियों का हाल क्या है। पिछले साल एल एंड टी ने 14 हजार कर्मचारियों को निकाल दिया। इस साल की पहली तिमाही में एचडीएफसी बैंक में काम करने वालों की तादाद 90421 से घटकर 84325 रह गई। इससे पिछली तिमाही में भी 4581 नौकरियां कम हुई थीं। पिछले कुछ सालों में 67 टेक्सटाइल यूनिट बंद हो गईं, जिससे करीब 17600 लोगों की नौकरियों पर संकट आ गया।

तो क्या यह सारे लोग उद्यमी बन गए?

अब वापस आते हैं जीएसटी पर। जीएसटी लांच होने के 100 दिन के बाद से अब तक 50 से ज्यादा बदलाव सामने आ चुके हैं। तमाम नियमों इधर से उधर किए जा रहे हैं। जीएसटी, जिसे सरकार गुड और सिंपल टैक्स बता रही है, दरअसल गड़बड़ और सताने वाला टैक्स बन गया है। इसके लागू होने से लेकर अब तक जो बदलाव सामने आए हैं, उनमें से कुछ इस तरह हैं:

  • जीएसटी पहली जुलाई को लागू हुआ, लेकिन इसके लागू होते ही कार और फ्रिज की बिक्री थम सी गई, क्योंकि इन दोनों पर रेट को लेकर जबरदस्त उलझन थी
  • 7 जुलाई को सरकार ने कहा कि संशोधित एमआरपी के स्टिकर लगाकर 30 सितंबर तक पुराना माल बेचा जा सकता है। लेकिन अगले ही दिन, यानी 8 जुलाई को सरकार ने एयरलाइंस को लीज पर लिए गए विमानों पर दोहरी जीएसटी से मुक्त कर दिया
  • 10 जुलाई को सरकार ने सफाई दी कि कंपनियों या नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को दिए जाने वाले फायदे और समय-समय पर मिलने वाले उपहारों पर जीएसटी लागू नहीं होगा।
  • 11 जुलाई को बताया गया कि धार्मिक संस्थाओं द्वारा भंडारे या मुफ्त भोजन पर जीएसटी नहीं लगेगा
  • 15 जुलाई को सीबीईसी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज़ एंड कस्टम ने बताया कि वकीलों और वकीलों की फर्मों पर जीएसटी एक्ट के रिवर्स चार्ज के तहत टैक्स लगेगा
  • 5 अगस्त को जीएसटी काउंसिल ने बैठक की और कुछ सेवाओँ पर जीएसटी रेट कम कर दिया। इन सेवाओँ में टेक्सटाईस सेक्टर, माल ढोले वाली एजेंसियां, किराए पर कार देने वाली कंपनियां और ट्रैक्टर के पार्ट्स आदि शामिल थे।
  • दो दिन बाद ही 7 अगस्त को काउंसिल ने मोटर वाहनों पर सेस की सीमा 15 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दी
  • 17 अगस्त को जुलाई की जीएसटी रिटर्न फाइल करने की समय सीमा बढ़ाकर 28 अगस्त कर दी गई। लेकिन यह उन मामलों के लिए था जिनमें जीएसटी लागू होने से पहले के दौर में चुकाए गए टैक्स की वापसी होनी थी। इस समयसीमा को फिर से संशोधित किया गया और बाद में इस पर विलंब शुल्क भी माफ कर दिया गया
  • 23 अगस्त को सरकार ने फिर सफाई दी कि प्रिंट मीडिया (अखबार और पत्रिकाएं आदि) के लिए विज्ञापन देने वाली एजेंसियों के रेट में सुधार किया गया है। सरकार ने कहा कि इन एजेंसियों पर 5 फीसदी जीएसटी लगेगा। लेकिन कंफ्यूजन तब हो गया जब सरकार ने बताया कि अगर ये एजेंसियां विज्ञापन किसी मीडिया हाउस को देंगी तो उन पर 18 फीसदी जीएसटी लगेगा
  • 9 सितंबर को मझोली कारों और एसयूवी पर सेस बढ़ा दिया गया। मझोली कारों का सेस दो फीसदी और बड़ी कारों का सेस 5 फीसदी बढ़ाया गया। एसयूवी पर सेस 7 फीसदी कर दिया गया जो कि जीएसटी लागू होने से पहले का रेट था। इसका नतीजा यह हुआ कि मझोली कारों पर जीएसटी रेट 45 फीसदी हो गया, बड़ी कारों पर 48 फीसदी और एसयूवी पर 50 फीसदी हो गया।
  • 20 सितंबर को फिर सरकार सामने आई और बताया कि ऐसे उत्पाद जिनका रजिस्ट्रेशन रद्द करा दिया गया है, उस पर 5 फीसदी जीएसटी लगेगा।
  • 29 सितंबर को कंज्यूमर अफेयर्स मंत्रालय ने बताया कि कारोबारी जीएसटी लागू होने का सामान 31 दिसंबर तक बेच सकते हैं।
  • 6 अक्टूबर को जीएसटी काउंसिल की 22वीं बैठक हुई और इस बार फिर से 18 नए नियम सामने रखे गए और कुछ चीज़ों पर जीएसटी कर दिया गया। इनमें गुजरात का मशहूर खाकरा भी शामिल है।

ऐसे में वह युवा जिसके पास नौकरी नहीं है, और जिसे मुद्रा योजना से कुछ हजार रुपए उद्यमी बनने के लिए देने का सरकार दावा कर रही है, कैसे समझेगा कि उसका धंधा या कारोबार जीएसटी के किस रेट के दायरे में आता है।

हकीकत यह है कि जिसे सरकार वन नेशन वन टैक्स बोल रही है, वह वन नेशन और कम से कम सेवन (7) टैक्स हो गया है। और ठीक से गणना करें तो समझ आएगा कि सरकार ने 6 अक्टूबर को जीएसटी से संबंधित जो भी ऐलान किए हैं, वह दरअसल अप्रत्यक्ष करों के उसी दौर में कारोबारियों और उद्योग-धंधों को ले गए हैं, जो पहली जुलाई तक लागू होता था।

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