वित्त मंत्री ने माना, मरणासन्न अवस्था में है अर्थव्यवस्था, देना होगा ‘बूस्टर’

भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट और बढ़ती बेरोजगारी के संकट से अब तक इंकार कर रही मोदी सरकार ने भी इसे एक तरह से स्वीकार कर लिया है।

फोटोः Twitter
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नवजीवन डेस्क

देश की खराब आर्थिक हालत और बेरोजगारी के संकट को नरेंद्र मोदी सरकार ने भी एक तरह से स्वीकार कर लिया है। पहसे यह बातें सिर्फ विपक्ष की तरफ से कही जाती थीं या किसी रिपोर्ट में सामने आती थीं। खुद वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बुधवार को दिये अपने बयान में यह बात सामने आई है। अर्थव्यवस्था को लेकर कई उच्चस्तरीय बैठकों के बाद बुधवार को अरुण जेटली ने जो कुछ भी कहा उससे यह बात साफ जाहिर हो गई कि लगातार गिरती अर्थव्यवस्था, मंहगाई और बढ़ती बेरोजगारी को अब मोदी सरकार ने भी स्वीकार कर लिया है। जेटली का बयान एक प्रकार से कबूलनामा ही माना जाएगा। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सरकार कुछ कड़े कदम उठा सकती है। उन्होंने कहा कि अगर आवश्यकता हुई तो वह देश की अर्थव्यवस्था को बूस्टर देंगे। वित्त मंत्री के इस बयान के बाद लोग-बाग परेशान हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि, नोटबंदी और जीएसटी के बाद अब ये बूस्टर क्या बला है जो ये सरकार कभी भी आजमा सकती है। तो आइये आपको बताते हैं कि ये बूस्टर क्या चीज है।

दरअसल, ये बूस्टर मेडिकल जगत का बड़ा जाना-माना शब्द है। किसी मरीज को बूस्टर तब दिया जाता है, जब उसके शरीर से उसकी जान पूरी तरह निकल चुकी होती है, बस थोड़ी बहुत उम्मीद बची होती है। ऐसे में मरीज को बूस्टर की कृत्रिम मदद देकर उसमें फिर से जान पैदा करने की कोशिश की जाती है। कहीं अर्थव्यवस्था को बूस्टर देने की बात कर क्या जेटली यह नहीं कह रहे हैं कि उनकी सरकार में भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राण बस निकलने ही वाले हैं। और इसीलिए उनकी सरकार अंतिम उपाय के तौर पर बूस्टर देकर इसे बचाने की आखिरी कोशिश कर रही है।

जेटली ने यह तो नहीं बताया कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार कौन से उपाय करेगी, लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि उनकी सरकार कुछ कड़े कदम उठा सकती है। हालांकि साथ में उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि प्रधानमंत्री के साथ चर्चा करने के बाद ही कोई घोषणा की जाएगी।

अर्थव्यस्था की सही हालत बयान करने के लिए कई आंकड़े इन दिनों हमारे सामने आ चुके हैं। जीडीपी की रफ्तार इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में घटकर 5.7 फीसदी रह गई जो मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में सबसे नीचले स्तर पर है। यह आंकड़ा भी मापने के तरीके को बदलने की वजह से है। हाल ही में आई एसबीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया कि अर्थव्यवस्था में नजर आ रही ये सुस्ती तकनीकी नहीं, वास्तविक है। हाल में बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह इस सुस्ती को तकनीकी बता रहे थे।

वित्त मंत्री ने माना, मरणासन्न अवस्था में है अर्थव्यवस्था, देना होगा ‘बूस्टर’

ब्लूमबर्ग द्वारा जारी टीमलीज सर्विसेज लिमिटेड की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में रोजगार 12 साल के सबसे नीचले स्तर पर पहुंच गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले दिनों में स्थिति और खराब होगी। रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि पिछले साल की तुलना में भारत के निर्माण क्षेत्र के रोजगार में 30-40 प्रतिशत की कमी आएगी। वित्त मंत्री की बैठक में भी बेरोजगारी को लेकर सरकार की चिंता साफ देखी जा सकती थी। खबरों के अनुसार हालात को काबू में करने के लिए सरकार मनरेगा और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं में संशोधन करने का विचार कर रही है। सरकार का इरादा इसके जरिये गांवों और कस्बों में अस्थायी और स्थायी रोजगार उपलब्ध करा कर बेरोजगारी की समस्या को किसी तरह कम करने का है।

हालांकि इस बैठक में इतना कुछ सामने आने के बावजूद जेटली अपने खोखले दावों और तर्कों पर टिके हुए हैं। मंहगाई का ठीकरा जेटली ने मानसून पर फोड़ दिया। उन्होंने आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किसी तरह की कमी की संभावना से भी साफ इंकार कर दिया। जेटली अब भी दावा कर रहे हैं कि मुद्रास्फीति सीमा के भीतर है और पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी का विरोध कर रहे राजनीतिक दल अपनी अंतरात्मा का निरीक्षण करें।

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Published: 21 Sep 2017, 5:28 PM