रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90.58 पर पहुंचा
अगर पूरे साल की बात करें तो रुपया अब तक 5 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हो चुका है। वैश्विक स्तर पर यह प्रदर्शन बेहद कमजोर माना जा रहा है।

रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार को भी रुपये में गिरावट का सिलसिला जारी रहा और यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 90.58 पर पहुंच गया। इससे पहले शुक्रवार को रुपया 90.55 के स्तर तक फिसल गया था। लगातार दूसरे हफ्ते रुपये का रिकॉर्ड निचला स्तर छूना बाजार के लिए एक अहम संकेत माना जा रहा है।
किन वजहों से कमजोर पड़ रहा है रुपया
विशेषज्ञों के मुताबिक, रुपये की कमजोरी के पीछे कोई एक कारण नहीं, बल्कि कई दबाव एक साथ काम कर रहे हैं। भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते में हो रही देरी, विदेशी पूंजी का लगातार बाहर जाना और बढ़ता व्यापार घाटा रुपये पर भारी पड़ रहा है। इसके अलावा भारतीय कंपनियों की ओर से डॉलर की तेज मांग भी मुद्रा पर दबाव बढ़ा रही है।
अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50 फीसदी तक के ऊंचे टैरिफ ने भी हालात को मुश्किल बना दिया है। इन शुल्कों के कारण भारत के निर्यातकों पर असर पड़ा है, जिसका सीधा प्रभाव रुपये की मांग और आपूर्ति पर दिख रहा है।
साल भर में 5% से ज्यादा गिरावट
अगर पूरे साल की बात करें तो रुपया अब तक 5 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हो चुका है। वैश्विक स्तर पर यह प्रदर्शन बेहद कमजोर माना जा रहा है। 31 प्रमुख वैश्विक मुद्राओं में रुपया इस साल तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला रहा है। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि यह गिरावट ऐसे समय आई है, जब डॉलर इंडेक्स खुद 7 प्रतिशत से ज्यादा टूट चुका है।
90 का स्तर क्यों है अहम
रुपये का 90 के स्तर से नीचे जाना सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है। विश्लेषकों का कहना है कि यह स्तर मनोवैज्ञानिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि यह 2011 में रुपये के मूल्य का करीब आधा दर्शाता है। इस पड़ाव को पार करने के बाद बाजार की निगाहें अब भारतीय रिजर्व बैंक पर टिक गई हैं।
RBI के सामने बड़ी चुनौती
रुपये की लगातार गिरावट ने आरबीआई गवर्नर के सामने संतुलन बनाने की चुनौती खड़ी कर दी है। एक ओर मुद्रा को पूरी तरह नियंत्रित करना संभव नहीं है। वहीं दूसरी ओर बाजार में अस्थिरता भी नहीं आने दी जा सकती।
बीते कुछ महीनों में रिजर्व बैंक ने रुपये को संभालने के लिए कई बार दखल दिया है। लेकिन जानकारों का मानना है कि 88.80 के स्तर के बाद हस्तक्षेप की तीव्रता कम दिखाई दी। 90 के पार जाने के बाद भी आरबीआई का रुख अपेक्षाकृत संयमित नजर आ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी RBI की भूमिका
रुपये के कारोबार में आरबीआई सिर्फ घरेलू बाजार तक सीमित नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय है, खासकर नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड (NDF) बाजार के जरिए, जिनका निपटान डॉलर में होता है। यह हस्तक्षेप बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के माध्यम से किया जाता है और इसमें सिंगापुर, दुबई और लंदन जैसे प्रमुख ट्रेडिंग हब में मौजूद चुनिंदा बड़े बैंकों का सहयोग लिया जाता है।
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