अर्थतंत्र की खबरें: इन बैंकों ने कर्जों की ब्याज दर में 0.25 % की कटौती और चीन ने अमेरिका पर फिर लगाया टैरिफ
बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक ने बुधवार को रेपो दर में कटौती किए जाने के कुछ घंटों के ही भीतर ऋण की दरों में 0.25 प्रतिशत अंकों की कटौती करने की घोषणा कर दी।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक ने बुधवार को रेपो दर में कटौती किए जाने के कुछ घंटों के ही भीतर ऋण की दरों में 0.25 प्रतिशत अंकों की कटौती करने की घोषणा कर दी।
सार्वजनिक क्षेत्र के इन बैंकों के इस फैसले से उनके मौजूदा और नए उधारकर्ताओं दोनों को फायदा होगा। अन्य बैंकों की तरफ से भी जल्द ही इसी तरह की घोषणा किए जाने की उम्मीद है।
बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक ने शेयर बाजारों को अलग-अलग दी गई सूचनाओं में कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से अल्पकालिक ऋण दर (रेपो दर) में कटौती किए जाने के बाद ऋण दर में यह संशोधन किया गया है।
कटौती के बाद बैंक ऑफ इंडिया की नई रेपो आधारित ऋण दर (आरबीएलआर) पहले के 9.10 प्रतिशत से घटकर 8.85 प्रतिशत हो गई है। नई दर बुधवार से ही प्रभावी हो जाने की घोषणा बैंक ने की।
इस बीच यूको बैंक ने कहा कि उसने रेपो संबद्ध दर को घटाकर 8.8 प्रतिशत कर दिया है। नई दर बृहस्पतिवार से प्रभावी होगी।
आरबीआई ने लगातार दूसरी बार रेपो दर घटाया; आवास, वाहन कर्ज होंगे सस्ते
भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिका के जवाबी शुल्क को लेकर व्याप्त चिंता के बीच अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के मकसद से बुधवार को लगातार दूसरी बार प्रमुख ब्याज दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर छह प्रतिशत कर दिया। साथ ही केंद्रीय बैंक ने अपने रुख को ‘तटस्थ’ से ‘उदार’ करते हुए आने वाले समय में ब्याज दर में एक और कटौती का संकेत दिया।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के इस कदम से आवास, वाहन और अन्य कर्ज सस्ते हो जाने की उम्मीद है।
आरबीआई ने इसके साथ वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को भी 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है।
चालू वित्त वर्ष की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, ‘‘छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आम सहमति से रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती कर छह प्रतिशत करने निर्णय किया है।’’ एमपीसी में तीन सदस्य केंद्रीय बैंक से, जबकि तीन सदस्य बाहर से होते हैं।
मल्होत्रा ने कहा कि आरबीआई ने अपने नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ से बदलकर ‘उदार’ कर दिया है। इसका मतलब है कि आरबीआई आने वाले समय में जरूरत पड़ने पर नीतिगत दर में और कटौती कर सकता है।
रेपो वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये इस दर का उपयोग करता है।
नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत कमी करने का मतलब है कि रेपो दर जैसे बाह्य मानकों पर आधारित कर्ज पर ब्याज दर (ईबीएलआर) में कमी आएगी। अगर बैंक पूरी तरह से कर्जदाताओं को इस कटौती का लाभ देते हैं तो आवास, वहन और व्यक्तिगत कर्ज की मासिक किस्त 0.25 प्रतिशत कम हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने इससे पहले इस साल फरवरी में मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर 6.25 प्रतिशत किया था। यह मई, 2020 के बाद पहली कटौती और ढाई साल के बाद पहला संशोधन था।
मुद्रास्फीति में कमी और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बीच इस कदम से नवंबर, 2022 के बाद से कर्ज की लागत सबसे कम स्तर पर आ गई है।
आरबीआई ने नीतिगत दर में कटौती ऐसे समय की है, जब अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले भारतीय उत्पादों पर 26 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लागू हुआ है। अमेरिकी शुल्क से अनिश्चितताएं बढ़ी हैं और कुछ अर्थशास्त्रियों ने एक अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि में 0.2 से 0.4 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान जताया है।
आरबीआई ने भी वित्त वर्ष 2025-26 के लिए आर्थिक वृद्धि के अपने अनुमान को 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया। इसके अलावा मुद्रास्फीति के अनुमान को भी 4.2 प्रतिशत से घटाकर चार प्रतिशत कर दिया है। इससे खुदरा महंगाई का अनुमान आरबीआई के लक्ष्य के अनुरूप आ गया है।
आरबीआई को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।
वित्त वर्ष 2024-25 में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है जो महामारी के बाद वृद्धि का सबसे कमजोर स्तर है।
मल्होत्रा ने कहा, ‘‘हाल ही में अमेरिकी शुल्क की घोषणा ने अनिश्चितताओं को बढ़ा दिया है। इससे वैश्विक वृद्धि और मुद्रास्फीति के लिए नई बाधाएं पैदा हुई हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इन अनिश्चितताओं के बीच, अमेरिकी डॉलर काफी कमजोर हुआ है, बॉन्ड प्रतिफल में नरमी आई है, शेयर बाजारों गिरावट आ रही है और कच्चे तेल की कीमतें तीन साल से अधिक समय के अपने सबसे निचले स्तर पर आ गई हैं।’’
इन परिस्थितियों में, केंद्रीय बैंक सावधानी से कदम उठा रहे हैं और विभिन्न क्षेत्रों में नीतिगत भिन्नता के संकेत मिल रहे हैं, जो उनकी अपनी घरेलू प्राथमिकताओं को बताता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था कीमत स्थिरता और सतत वृद्धि के लक्ष्यों की दिशा में लगातार आगे बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में कमजोर प्रदर्शन के बाद वृद्धि में सुधार हो रहा है लेकिन यह अब भी उम्मीद से कम है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘‘महंगाई के मोर्चे पर, खाद्य मुद्रास्फीति में उम्मीद से अधिक गिरावट ने राहत दी है। हम वैश्विक अनिश्चितताओं और मौसम की गड़बड़ी से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के प्रति सतर्क हैं।’’
नीतिगत रुख को ‘उदार’ करने के बारे में उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब है कि एमपीसी नीतिगत दर के मामले में यथास्थिति बनाये रखेगी या फिर जरूरत के मुताबिक इसमें कटौती करेगी।’’
मल्होत्रा ने दिसंबर में पदभार संभालने के बाद अपने पूर्ववर्ती शक्तिकान्त दास की तुलना में अधिक वृद्धि-अनुकूल दृष्टिकोण को अपनाया है।
गवर्नर ने फरवरी में अपनी पहली मौद्रिक नीति बैठक में प्रमुख ब्याज दर में कटौती की और पिछले दो माह में बैंकों में 80 अरब डालर से अधिक की नकदी डाली है।
कम ब्याज दर कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों को राहत प्रदान करती हैं। इससे कर्ज मांग के साथ निवेश और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलता है।
एमपीसी के निर्णय पर टिप्पणी करते हुए कोटक महिंद्रा बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज ने कहा, ‘‘बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता और भारत की वृद्धि पर इसके प्रभाव के कारण एमपीसी को नीतिगत दर में और अधिक कटौती करने की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें वैश्विक नरमी के हिसाब से इस साल रेपो दर में 0.75 प्रतिशत से 1.0 प्रतिशत की कटौती की गुंजाइश दिख रही है।’’
डीबीएस बैंक की कार्यकारी निदेशक और वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा, ‘‘कुल मिलाकर, आरबीआई की मौद्रिक नीति का रुख नरम बना हुआ है। इसके साथ वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच घरेलू वित्तीय बाजारों में स्थिरता बनाये रखने की आवश्यकता पर नजर रखी गई है।’’
राव ने कहा, ‘‘हमें इस साल रेपो दर में 0.50 प्रतिशत की और कटौती होने की उम्मीद है।’’
आरबीआई गवर्नर ने वैश्विक व्यापार और नीतिगत अनिश्चितताओं के बढ़ने और वृद्धि एवं मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कहा कि अनिश्चितता अपने-आप में कंपनियों और परिवारों के निवेश और खर्च के निर्णयों को प्रभावित कर वृद्धि को धीमा कर देती है।
उन्होंने कहा कि व्यापार प्रभावित होने के कारण वैश्विक वृद्धि पर पड़ने वाला असर घरेलू आर्थिक वृद्धि को बाधित करेगा। उच्च शुल्क का शुद्ध निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, मल्होत्रा ने यह भी कहा, ‘‘कई ज्ञात और अज्ञात कारक हैं... जवाबी शुल्क के कारण निर्यात और आयात मांग पर प्रभाव, अमेरिका के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते समेत सरकार के अन्य नीतिगत उपाय जैसे कदम उनमें शामिल हैं। इनको देखते हुए शुल्क के असर का आकलन करना मुश्किल है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक अर्थव्यवस्था असाधारण अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रही है। अनिश्चित माहौल से संकेत निकालने में कठिनाई नीति निर्माण के लिए चुनौतियां पेश करती है। फिर भी, मौद्रिक नीति यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है कि अर्थव्यवस्था एक समान गति पर बनी रहे।’’
मल्होत्रा के अनुसार, घरेलू आर्थिक वृद्धि-मुद्रास्फीति की स्थिति बताती है कि मौद्रिक नीति वृद्धि का समर्थन करने वाली होना चाहिए, जबकि मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सतर्क रहना चाहिए।
इसके अलावा, आरबीआई ने अन्य उपायों के तहत अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) को ‘ग्राहकों से दुकानदारों’ को यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) के माध्यम से लेनदेन की सीमा में संशोधन की अनुमति देने का निर्णय किया है।
साथ ही, आरबीआई ने सोने के आभूषणों के बदले कर्ज देने के दिशानिर्देशों की समीक्षा करने का प्रस्ताव किया है। मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक चार से छह जून को होगी। की घोषणा की थी।
चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिका पर 84 प्रतिशत शुल्क लगाया, 'अंत तक लड़ने' की बात कही
चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिका से आयातित उत्पादों पर सीमा शुल्क को बढ़ाकर 84 प्रतिशत करने की घोषणा कर दी है। यह बृहस्पतिवार से प्रभावी होगा।
इसके साथ ही चीन ने अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापार युद्ध में 'अंत तक लड़ने' की बात कही। पिछले सप्ताह चीन ने कहा था कि वह सभी अमेरिकी सामान पर 34 प्रतिशत शुल्क लगाएगा।
बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका को होने वाले चीन के निर्यात पर 104 प्रतिशत शुल्क के लागू होने के बाद चीन ने यह कदम उठाया है।
बीजिंग ने कहा कि वह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में अमेरिका के खिलाफ एक और मुकदमा शुरू कर रहा है और चीनी कंपनियों के साथ अमेरिकी कंपनियों के व्यापार पर अधिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका के साथ व्यापार पर श्वेत पत्र जारी करते हुए एक बयान में कहा, ''यदि अमेरिका अपने आर्थिक और व्यापार प्रतिबंधों को और बढ़ाने पर जोर देता है, तो चीन के पास जरूरी जवाबी उपाय करने और अंत तक लड़ने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और पर्याप्त साधन हैं।''
चीन की सरकार ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की कि क्या वह व्हाइट हाउस के साथ बातचीत करेगी, जैसा कि कई अन्य देशों ने करना शुरू कर दिया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक स्तर पर शुल्क में भारी वृद्धि, विशेष रूप से चीन को निशाना बनाकर अमेरिका को होने वाले चीनी निर्यात पर 104 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है।
ट्रंप द्वारा लगाया गया अतिरिक्त 50 प्रतिशत शुल्क बुधवार से लागू हो गया, जिसके बाद अमेरिका में चीनी निर्यात पर कुल शुल्क बढ़कर 104 प्रतिशत हो गया।
चीन ने संकल्प लिया है कि अगर ट्रंप यह शुल्क व्यवस्था जारी रखते हैं तो वह अंत तक लड़ेगा। अब तक, चीन बातचीत में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने बुधवार को कहा, ''अगर अमेरिका वास्तव में बातचीत के जरिए मुद्दों को हल करना चाहता है, तो उसे समानता, सम्मान और पारस्परिक लाभ का रवैया अपनाना चाहिए।''
सोना 1,050 रुपये टूटकर 91,000 से नीचे फिसला, चांदी मजबूत
स्टॉकिस्ट और खुदरा विक्रेताओं के कमजोर उठान के कारण बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी के सर्राफा बाजार में सोने की कीमत 1,050 रुपये की गिरावट के साथ 90,200 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई। अखिल भारतीय सर्राफा संघ ने यह जानकारी दी है।
पिछले बाजार बंद के समय 99.9 प्रतिशत शुद्धता वाले सोने की कीमत 91,250 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुई थी।
99.5 प्रतिशत शुद्धता वाला सोना 1,050 रुपये टूटकर 89,750 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गया, जबकि मंगलवार को यह 90,800 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ था।
हालांकि, चांदी की कीमत 500 रुपये बढ़कर 93,200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई। मंगलवार को सफेद धातु 92,700 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुई थी।
इस बीच, विदेशी बाजारों में हाजिर सोना 61.98 डॉलर या 2.08 प्रतिशत बढ़कर 3,044.14 डॉलर प्रति औंस हो गया।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज में वरिष्ठ विश्लेषक-जिंस सौमिल गांधी ने कहा, ‘‘पूरी तरह से वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं के कारण विश्व अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई, जिससे सुरक्षित-पनाह परिसंपत्तियों की मांग फिर से बढ़ गई। इससे सोना 3,030 डॉलर के स्तर पर पहुंच गया।’’
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर अतिरिक्त शुल्क लगाया है, जिस पर अब 104 प्रतिशत शुल्क हो गया है। चीन ने भी इस मामले में कदम उठाते हुए अमेरिका पर शुल्क 34 से बढ़ाकर 84 प्रतिशत कर दिया है।
चीन द्वारा किए गए जवाबी उपाय 10 अप्रैल से प्रभावी होंगे। यह नवीनतम घटनाक्रम अमेरिका के साथ पूर्ण विकसित व्यापार युद्ध की संभावना के बारे में चिंताएं बढ़ाता है।
गांधी ने कहा कि इसके अलावा ट्रंप की शुल्क नीति ने अमेरिकी डॉलर पर दबाव डालना जारी रखा, जो लगातार दूसरे दिन गिरा, जिससे सोने की कीमतों को और फायदा हुआ।
एशियाई बाजार में हाजिर चांदी करीब दो प्रतिशत बढ़कर 30.41 डॉलर प्रति औंस पर बोली गई।
अबन्स फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) चिंतन मेहता के अनुसार, निवेशक ट्रंप की विकसित हो रही शुल्क रणनीति और इसके व्यापक आर्थिक प्रभावों पर नजर रखेंगे।
मेहता ने कहा कि बाजार प्रतिभागी अमेरिकी फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) की बैठक के ब्योरे और आगामी अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर भी बारीकी से नजर रखेंगे, जो इस बारे में अधिक संकेत दे सकते हैं कि केंद्रीय बैंक बढ़ते व्यापार जोखिमों पर कैसे प्रतिक्रिया दे सकता है।
रेपो दर कटौती से भी कमजोर बाजार को नहीं मिला समर्थन, सेंसेक्स 380 अंक फिसला
बढ़ते व्यापार तनाव से वैश्विक बाजारों में आई गिरावट के बीच स्थानीय शेयर बाजार बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से प्रमुख नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत की एक और कटौती किए जाने के बावजूद नुकसान के साथ बंद हुए। सेंसेक्स करीब 380 अंक फिसल गया जबकि निफ्टी में 137 अंक की गिरावट रही।
विश्लेषकों ने कहा कि रिजर्व बैंक के नीतिगत मोर्चे पर सकारात्मक कदम उठाने के बावजूद वैश्विक व्यापार चिंताएं बाजार पर हावी रहीं और निवेशकों ने बिकवाली को प्राथमिकता दी।
बीएसई का 30 शेयरों पर आधारित मानक सूचकांक सेंसेक्स 379.93 अंक यानी 0.51 प्रतिशत गिरकर 73,847.15 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय यह 554.02 अंक गिरकर 73,673.06 अंक के निचले स्तर तक फिसल गया था।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का मानक सूचकांक निफ्टी भी 136.70 अंक यानी 0.61 प्रतिशत गिरकर 22,399.15 अंक पर आ गया। कारोबार के दौरान एक समय यह 182.6 अंक गिरकर 22,353.25 अंक पर आ गया था।
एशियाई बाजारों में कमजोर रुझानों को दर्शाते हुए घरेलू सूचकांक गिरावट के साथ खुले और पूरे सत्र के दौरान नकारात्मक दायरे में ही बने रहे। दरअसल, अमेरिका के चीन पर सीमा शुल्क को बढ़ाकर 104 प्रतिशत करने की घोषणा से व्यापार युद्ध गहराने की आशंका बढ़ गई है।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, ‘‘जवाबी शुल्क लागू होने के बाद वैश्विक वित्तीय बाजारों में नए सिरे से बिकवाली का दबाव देखा जा रहा है। व्यापार युद्ध वैश्विक जोखिम को बढ़ा रहा है और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में वृद्धि से दुनिया की सुरक्षित संपत्तियों में बिकवाली हो रही है।’’
नायर ने कहा, ‘‘हालांकि, भारत में रेपो दर में कटौती के साथ एक उदार नीतिगत रुख अपनाने को रचनात्मक कदम के रूप में लिया गया है। लेकिन बाजार की समग्र धारणा को ऊपर उठाने में इसका योगदान बहुत कम रहा है क्योंकि दुनिया मंदी के जोखिम को स्वीकार कर रही है।’’
सेंसेक्स के समूह में शामिल कंपनियों में से भारतीय स्टेट बैंक, टेक महिंद्रा, लार्सन एंड टुब्रो, टाटा स्टील, सन फार्मा, इन्फोसिस, एचसीएल टेक, एक्सिस बैंक, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और एनटीपीसी के शेयरों में गिरावट का रुख हावी रहा।
दूसरी तरफ नेस्ले, हिंदुस्तान यूनिलीवर, टाइटन, पावर ग्रिड, अल्ट्राटेक सीमेंट और आईटीसी के शेयर बढ़त के साथ बंद हुए।
बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक में भी 1.08 प्रतिशत और मिडकैप में 0.73 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
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