नोटबंदी पर सियासत छोड़ गलती मानें मोदी, सबको साथ लेकर बनाएं अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की नीति : मनमोहन सिंह

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश की शांतिप्रिय छवि को भी धक्का लगा है और इससे असमानता का माहौल बना है, जिसका सामाजिक असर खत्म होने में वक्त लगेगा।

फोटो : सौजन्य क्विंट
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नवजीवन डेस्क

नोटबंदी का असर “समाज के कमजोर तबकों और कारोबारियों पर इतना अधिक है कि कोई भी आर्थिक मापदंड इसे नाप ही नहीं सकता।” यह कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोगन सिंह का। नोटबंदी का एक साल पूरा होने के मौके पर ब्लूबर्ग क्विंट को दिए एक इंटरव्यू में मनमोहन सिंह ने नोटबंदी से छोटे और मझोले कारोबार और काम-धंधों में रोजगार खत्म होने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इससे असमानता का भाव भी बढ़ा है।

“...लगातार बढ़ती असमानता और बराबरी का मौका न मिलना हमारे आर्थिक विकास के तौर-तरीकों के लिए बड़ा खतरा रहा है। नोटबंदी से यह चुनौती और बड़ी हो गई है, जिसे निकट भविष्य में दुरुस्त बेहद मुश्किल होगा। किसी और देश के मुकाबले हमारे जैसे विविधता वाले देश में असमानता से सामाजिक ताने-बाने को बहुत ज्यादा नुकसान होता है।”

मो दी सरकार ने पहले दिन से ही नोटबंदी के लिए तर्क दिया है कि उसका मकसद नकद लेनदेन को कम कर अर्थव्यवस्था को डिजिटल भुगतान की तरफ ले जाना है। मनमोहन सिंह नोटबंदी के इस तर्क से असहमत नहीं हैं और इसे अच्छा कदम भी मानते हैं। लेकिन, उनका कहना है कि, “हमें अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं को भी दुरुस्त करने की जरूरत है। अभी तक यह साफ नहीं है कि नकदविहीन यानी कैशलेस अर्थव्यवस्था से सच में छोटे कारोबारियों को बड़ा बनने में मदद मिलेगी और वे इसका फायदा उठा पाएंगे। हमारी प्राथमिकता यह होनी चाहिए।”

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रहे मनमोहन सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारा ध्यान भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने पर होना चाहिए। इस सवाल पर कि क्या नोटबंदी और जीएसटी के बाद क्या अनौपचारिक क्षेत्र का करीब 40 फीसदी हिस्सा औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बना है, मनमोहन सिंह ने कहा, “तरीके उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि उन पर अमल के बाद लक्ष्यपूर्ति” और लक्ष्य “धमकियों और छापेमारी से पूरे नहीं किए जाते, क्योंकि इनका उलटा असर भी हो सकता है।”

“...अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा सृजित लाभ की असली तस्वीर तभी पता चलेगी जब उससे हुई आमदनी, संपत्ति सृजन और उसके इस्तेमाल का फायदा सामने आएगा। इसलिए हमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को लेकर आम धारणा बनाने और नैतिक फैसले सुनाने से पहले एहतियात बरतनी होगी।”

आरबीआई के गवर्नर रह चुके पूर्व प्रधानमंत्री ने नोटबंदी को रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि इन जैसे कदमों और फैसलों से संस्थाओँ की स्वायत्तता खतरे में हैं और यह संस्कृति बढ़ती जा रही है। मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारतीय अर्थव्यवस्था के नवनिर्माण और इसे नए सिरे से मजबूत करने के लिए सहमति की नीतियां अपनाने का आव्हान किया।

उन्होंने कहा कि “नोटबंदी के मुद्दे पर राजनीति बहुत हो चुकी, अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़प्पन दिखाते हुए इसे एक बड़ी गलती के तौर पर स्वीकार करें और सभी लोगों को साथ लेकर अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करें।”

डॉ मनमोहन सिंह ने साफ कहा कि नोटबंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी असर हुआ है। इससे न सिर्फ आर्थिक, बल्कि सामाजिक, सांस्थानिक और प्रतिष्ठात्मक फर्क पड़ा है। उनका कहना है कि जीडीपी में गिरावट मुकसान का महज एक संकेत है। इससे नौकरियां गई हैं, गैर-कृषि क्षेत्रों वाले छोटे और मझोले कारोबार ठप हुए और लोग बेरोजगार हो गए।

उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने एक शांतिप्रिय और स्थिरता वाले भारत की साख को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। मनमोहन सिंह की नजर में देश पर यह झटका खुद पर किया गया वह हमला था जो एक विचारहीन नीति को बिना सोचे समझे लागू करने का नतीजा था।

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Published: 06 Nov 2017, 5:05 PM