हेराफेरी में जुर्माने पर विजय रूपाणी क्यों छिपा रहे हैं कि सेबी से हो रहा था उनका पत्राचार?

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का यह कहना कि सेबी ने उनका पक्ष सुने बिना ही उन पर जुर्माना लगाया, क्या सही है? सेबी तो लगातार पत्राचार हुआ है उनका, और मुख्यमंत्री बनने के बाद साध ली थी चुप्पी।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सेबी से जुर्माना लगने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने जो सफाई दी है, उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। उन्होंने ये सफाई यह खबर सामने आने के बाद दी थी कि सेबी ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी समेत 22 व्यक्तियों/संस्थाओं पर शेयरों की खरीदफरोख्त में हेराफेरी का दोषी मानकर जुर्माना लगाया ह। यह कुछ सवाल हैं जो सेबी के आदेश और उस पर एसएटी या सैट के आदेश से पैदा हुए हैं:

  • क्या गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी झूठ बोल रहे हैं कि उनका पक्ष सुने बिना ही सेबी ने उनके एचयूएफ खाते पर 15 लाख का जुर्माना लगा दिया?
  • क्या एसएटी यानी सिक्यूरिटीज़ अपीलाट ट्रिब्यूनल ने सेबी का पूरा ऑर्डर पढ़े बिना ही इसके अमल पर रोक लगा दी?
  • आखिर वह कौन सी हड़बड़ी थी कि जिस तारीख को सेबी के आदेश से जुड़ी खबर अखबारों में जा रही थी, उसी दिन एसएटी ने इस आदेश पर रोक लगा दी? क्या एसएटी किसी दबाव में ऐसा करने को मजबूर हुआ?

विजय रूपाणी ने खुद ही ट्वीट कर इस मामले पर सफाई दी। उन्होंने लिखा कि 6 साल बाद सेबी के एक अधिकारी ने बिना सभी पक्षों के सुने ही एकतरफा फैसला सुना दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिन लोगों पर जुर्माना लगाया गया उनमें से एक व्यक्ति आकाश हरिभाई देसाई ने इस सिलसिले में एसएटी का दरवाजा खटखटाया और यह कहते हुए अपील की कि उसके खिलाफ बिना पक्ष सुने ही फैसला दिया गया। इस पर एसएटी ने सेबी के फैसले के अमल पर रोक लगाकर नए सिरे से जांच करने और सभी पक्षों को सुनने का मौका देने की बात कही। एसएटी ने इस मामले में सेबी और अन्य को तीन सप्ताह में अपना जवाब देने को कहा है। विजय रूपाणी ने एसएटी के आदेश की प्रति भी ट्वीट पर शेयर की।

यहां यह जानना जरूरी है कि सेबी ने अपने आदेश में क्या कहा था। 27 अक्टूबर 2017 को जारी 31 पन्नों के आदेश में सेबी ने कहा है कि जिन लोगों के खिलाफ आदेश जारी किया गया है, उन सभी को सेबी ने नोटिस भेजे थे, लेकिन उनका समय पर कोई जवाब नहीं मिला।

सेबी के आदेश में साफ कहा गया कि विजय रूपाणी के एचयूएफ खाते को जो नोटिस भेजा गया था, उसके जवाब में खुद विजय रूपाणी के खाते की तरफ से 13 मई 2016 को कारण बताओ नोटिस का जवाब देते हुए लिखा था कि नोटिस के साथ जो सीडी भेजी गई थी, वह काम नहीं कर रही है। इसके बाद सेबी की तरफ से 25 मई 2016 को दूसरी सीडी भेजी गई और यह भी कहा गया कि अगर यह सीडी भी नहीं चलती है तो वे अपने किसी अधिकृत व्यक्ति के द्वारा नोटिस और उससे जुड़ी सामग्री सेबी के दफ्तर से हासिल कर सकते हैं।

इस नोटिस के जवाब में विजय रूपाणी के खाते की तरफ से 13 जून 2016 को सूचित किया गया कि श्री विजय रूपाणी को डॉक्टर ने 8 सप्ताह आराम करने की सलाह दी है, इसलिए इस कार्यवाही को फिलहाल टाला जाए। इस सिलसिले में एक मेडिकल सर्टिफिकेट भी भेजा गया। लेकिन उसके बाद विजय रूपाणी की तरफ से कोई कभी कोई जवाब नहीं आया।

यहां रोचक है कि मेडिकल सर्टिफिकेट के अनुसार विजय रूपाणी 8 सप्ताह यानी 13 अगस्त तक आराम कर रहे थे, लेकिन 7 अगस्त 2016 को उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सेबी का कहना है कि उनकी तरफ से कोई जवाब न मिलने के चलते ही एकतरफा फैसला सुनाया गया है।

यह है पूरा मामला:

  • 3 जनवरी 2011- 8 जून 2011: सांरग केमिकल्स के शेयरों की सेबी ने जांच की
  • 13 जुलाई, 2011: बाजार नियामक ने कार्यवाही शुरू की
  • 6 मई, 2016: गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाानी के एचयूएफ सहित सभी 22 संस्थाओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसका उन्होंने जवाब नहीं दिया।
  • 27 अक्टूबर,2017: सेबी ने 22 संस्थाओं के खिलाफ 6.9 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया, जिनमें विजय रूपानी के एचयूएफ पर 15 लाख रुपये का जुर्माना लगा।

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Published: 10 Nov 2017, 7:05 PM