दुनिया की खबरें: सिडनी में मास शूटिंग के बाद ऑस्ट्रेलिया सरकार का बड़ा कदम और यूनुस सरकार का तुगलकी फरमान
प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने शुक्रवार को ऐलान किया कि बोंडी बीच शूटिंग के बाद बंदूकों की संख्या कम करने के लिए एक नेशनल फायरआर्म बायबैक स्कीम शुरू की जाएगी।

सिडनी में बोंडी बीच पर यहूदियों पर हुए हमले के बाद ऑस्ट्रेलिया में कानून बदलने को लेकर चर्चा हो गई है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने शुक्रवार को ऐलान किया कि बोंडी बीच शूटिंग के बाद बंदूकों की संख्या कम करने के लिए एक नेशनल फायरआर्म बायबैक स्कीम शुरू की जाएगी।
कैनबरा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम अल्बनीज ने कहा कि संघीय सरकार सरप्लस, नए प्रतिबंधित और गैरकानूनी हथियारों को खरीदने और नष्ट करने के लिए एक नेशनल बायबैक शुरू करेगी। अभी ऑस्ट्रेलिया में 40 लाख से ज्यादा हथियार हैं, जो पोर्ट आर्थर हत्याकांड के समय की संख्या से ज्यादा हैं। बायबैक के तहत कलेक्शन, प्रोसेसिंग और पेमेंट के लिए ऑस्ट्रेलिया के राज्य और इलाके जिम्मेदार होंगे और सरेंडर किए गए हथियारों को नष्ट करने की जिम्मेदारी ऑस्ट्रेलियन फेडरल पुलिस की होगी।
दरअसल 1996 में तस्मानिया के आइलैंड स्टेट के पोर्ट आर्थर नरसंहार में 35 लोगों की हत्या कर दी गई थी। साथ ही लगभग 37 लोग घायल हुए थे। इस जानलेवा फायरिंग के बाद एक नए कानून को लाया गया, जिसे गन बायबैक कहा जाता है। इसके तहत भारी संख्या में लोगों से हथियार वापस लेकर नष्ट कर दिए गए थे। नेशनल बायबैक भी इसी तर्ज पर लाया जा रहा है।
न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस स्कीम से लाखों हथियार इकट्ठा किए जाएंगे और नष्ट किए जाएंगे। इस बीच पुलिस ने बताया कि सिडनी के बोंडी बीच पर हुई मास शूटिंग में शामिल दो हथियारबंद लोगों में से एक, साजिद अकरम असल में हैदराबाद का रहने वाला है, लेकिन 1998 में ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद से उसका परिवार से कम ही संपर्क था।
तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक बी शिवधर रेड्डी भी कह चुके हैं कि1998 में भारत छोड़ने से पहले अकरम का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है। जांच करने पर पता चला कि साजिद अकरम हैदराबाद का रहने वाला था। उसने हैदराबाद में बीकॉम की डिग्री पूरी की और नवंबर 1998 में नौकरी की तलाश में ऑस्ट्रेलिया चला गया था।
बांग्लादेश: यूनुस सरकार का तुगलकी फरमान, आवामी लीग के सदस्यों को देखते ही गिरफ्तारी के आदेश
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के गृह मामलों के सलाहकार जहांगीर आलम चौधरी ने पुलिस को निर्देश दिया है कि आवामी लीग के सदस्यों को बिना यह जांच किए कि उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज है या नहीं, देखते ही गिरफ्तार किया जाए। स्थानीय मीडिया ने यह जानकारी दी है।
बताया गया है कि चौधरी ने यह टिप्पणी बुधवार दोपहर नारायणगंज जिले में की, जहां एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेरकर सात मांगों को लेकर प्रदर्शन किया।
ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, गृह सलाहकार ने कहा, “आवामी लीग के अपराधियों के खिलाफ मामले दर्ज हैं या नहीं, यह देखने की जरूरत नहीं है। उन्हें देखते ही कानून के दायरे में लाया जाए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”
यह निर्देश मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार द्वारा आवामी लीग के नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ तेज होती कार्रवाई के बीच आया है।
इससे पहले सप्ताह में, देश में बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति के बीच नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) की छात्र इकाई जाटिया छात्र शक्ति ने ढाका के शाहबाग चौराहे को जाम कर दिया और गृह मामलों के सलाहकार जहांगीर आलम चौधरी के इस्तीफे की मांग की।
स्थानीय मीडिया के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने उन पर देश में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने और शरीफ उस्मान हादी पर हमले के आरोपियों को गिरफ्तार न करने का आरोप लगाया।
रेडिकल मंच ‘इंक़िलाब मंच’ के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी पर 12 दिसंबर को बिजयनगर इलाके में दिनदहाड़े गोली मारी गई थी। वह आगामी फरवरी चुनावों में ढाका-8 सीट से संभावित निर्दलीय उम्मीदवार बताए जा रहे हैं। गंभीर रूप से घायल हादी को बेहतर इलाज के लिए सोमवार को सिंगापुर ले जाया गया, जहां उनकी हालत अब भी नाजुक बनी हुई है।
एनसीपी की छात्र इकाई के संयोजक अबू बकर मजूमदार ने यूएनबी के हवाले से कहा, “हम हादी पर हमला करने वालों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करते हैं। देश में कानून-व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ चुकी है, इसलिए गृह सलाहकार को इस्तीफा देना चाहिए।”
उधर, पिछले महीने आवामी लीग ने यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर देश को “लाशों का डंपिंग ग्राउंड” बनाने का आरोप लगाया था। पार्टी ने दावा किया कि पूरे देश में आवामी लीग के नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या एक सुनियोजित साजिश के तहत की जा रही है।
आवामी लीग द्वारा जारी बयान में कहा गया, “आज घिरे हुए बांग्लादेश का हर कोना अपने प्रियजनों को खोने वालों की चीखों से गूंज रहा है। बाजार जाते समय, खेतों के किनारे, नदी के मुहानों पर, घरों के आंगन और बिस्तरों तक हर जगह लाशें बिखरी पड़ी हैं। यूनुस और उनके समर्थकों की कथित साजिशों के खिलाफ आवाज उठाने पर आवामी लीग के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अमानवीय यातनाओं और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें बेरहमी से मारा जा रहा है।”
बलूचिस्तान में पाक सेना महिलाओं को जबरन कर रही गायब, बढ़ते मामलों पर मानवाधिकार संस्था ने जताई चिंता
बलूचिस्तान से लगातार लोगों के गायब होने की घटनाएं सामने आ रही हैं। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना पर लोगों को जबरन घर से उठाकर ले जाने और गैर-कानूनी तरीके से हत्या के आरोप लग रहे हैं।
बीते दिन ये भी जानकारी सामने आई कि बलूचिस्तान में महिलाओं को भी गायब किया जा रहा है। मानवाधिकार परिषद बलूचिस्तान (एचआरसीबी) ने पूरे बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूच महिलाओं को जबरन गायब करने की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है।
मानवाधिकार संगठन ने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सेना द्वारा महिलाओं को अगवा करना प्रांत में दमन का एक आम तरीका बनता जा रहा है। एचआरसीबी के अनुसार, 2025 में बलूच महिलाओं को जबरन गायब करने के नौ मामले दर्ज किए गए।
मानवाधिकार परिषद की ओर से कहा गया, “ये मामले सामूहिक सजा और कानूनी सुरक्षा के सिस्टमैटिक नुकसान के एक परेशान करने वाले पैटर्न को दिखाते हैं। अलग-अलग बैकग्राउंड की महिलाओं को घरों पर रेड और देर रात के ऑपरेशन के जरिए अगवा किया गया है। इनमें छात्राएं, स्वास्थ्यकर्मी, घर में काम करने वाली महिलाएं और मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। कई पीड़ितों को बार-बार गायब किया गया और टॉर्चर किया गया, जबकि कम से कम एक मामले में कस्टडी में मौत हुई।”
मानवाधिकार संगठन ने कहा कि काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट (सीटीडी), फ्रंटियर कॉर्प्स (एफसी), और मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) सहित पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों की संलिप्तता ने इन उल्लंघनों के कार्यप्रणाली को दिखाया। पहले बलूच आदमियों को जबरन गायब करने और गैर-कानूनी तरीके से हिरासत में मौत की घटनाएं सामने आ रही थीं, जो पिछले दो दशकों से जारी है, और अब महिलाओं के साथ भी वही किया जा रहा है।
इसमें आगे कहा गया है कि हजारों बलूच पुरुषों, जिनमें बच्चे और वयस्कों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं, को तथाकथित “किल एंड डंप” नीति के तहत जबरदस्ती गायब कर दिया गया है या न्यायेतर हत्याओं का शिकार बनाया गया है।
एचआरसीबी ने कहा, “दशकों से, बलूचिस्तान में जबरदस्ती गायब करने के मामलों में ज्यादातर पुरुषों को टारगेट किया जाता था, जिससे महिलाओं को अपने परिवारों और समुदायों में सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नतीजे भुगतने पड़ते थे। हालांकि, 2025 में, महिलाएं खुद तेजी से सीधे टारगेट बन रही हैं, जो सरकारी दमन के पैटर्न में एक बड़ा बदलाव दिखाता है।”
आगे कहा गया, “जैसे-जैसे महिलाओं ने परिवार चलाने वालों और शांतिपूर्ण विरोध और अधिकारों पर आधारित वकालत में साफ तौर पर हिस्सा लेने वाली सार्वजनिक भूमिकाएं निभाईं, उनके नाम की वजह से उन्हें बदले की कार्रवाई का सामना करना पड़ा। इस तरह जबरदस्ती गायब करना महिलाओं को सजा और डराने के एक जानबूझकर तरीके के तौर पर बढ़ा दिया गया है, जिसका मकसद असहमति को दबाना, दूसरी महिलाओं को चुप कराना और पहले से ही बड़े पैमाने पर गायब होने से तबाह इलाके में सामूहिक दुख को और बढ़ाना है।”
एचआरसीबी ने कहा कि महिलाओं को निशाना बनाना न तो अचानक हुआ है और न ही अलग-थलग है, बल्कि यह बलूचिस्तान में कार्यकर्ताओं को चुप कराकर और उनके परिवारों और समुदायों पर दबाव डालकर महिलाओं के विरोध को कमजोर करने की सोची-समझी कोशिश दिखाता है।
मानवाधिकार संस्था ने कहा, “खुलेआम छापे मारे जाते हैं, परिवारों को चुप रहने के लिए मजबूर किया जाता है, और असरदार कानूनी उपाय ज्यादातर पहुंच से बाहर रहते हैं। जवाबदेही की लगातार कमी ने इन तरीकों को रूटीन सिक्योरिटी ऑपरेशन का हिस्सा बना दिया है, जिससे महिलाओं को जबरदस्ती गायब करना एक आम गलत काम से बदलकर सरकार के कंट्रोल का एक आम तरीका बन गया है।”
अमेरिका ने ईरान के तेल नेटवर्क पर कसा शिकंजा, भारत से जुड़ी शिपिंग कंपनियां भी निशाने पर
ट्रंप प्रशासन ने गुरुवार को ईरान के गुप्त पेट्रोलियम शिपिंग नेटवर्क से जुड़े 29 जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिए। इनमें भारत से जुड़ी कई कंपनियां और परिचालन इकाइयां भी शामिल हैं, जिन पर सैकड़ों मिलियन डॉलर मूल्य के ईरानी तेल की ढुलाई में शामिल होने का आरोप है।
अमेरिकी वित्त विभाग (ट्रेजरी) ने कहा कि यह कार्रवाई ईरानी शासन की उन आय धाराओं को रोकने के लिए की गई है, जिनका इस्तेमाल आतंकवाद और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए किया जाता है।
प्रिंसिपल डिप्टी स्पोक्सपर्सन टॉमी पिगॉट ने कहा, “अमेरिका ईरानी शासन की उस आय के प्रवाह को रोकने के लिए कदम उठा रहा है, जिसका उपयोग आतंकवाद और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए किया जाता है।”
ट्रेजरी के मुताबिक, प्रतिबंधित नेटवर्क में मिस्र के व्यवसायी हातेम एलसैद फरीद इब्राहिम सक्र द्वारा संचालित कंपनियां और जहाज शामिल हैं, जिनकी गतिविधियां संयुक्त अरब अमीरात, भारत, मार्शल आइलैंड्स और पनामा जैसे देशों में फैली हुई हैं। सक्र से जुड़ी कंपनियां 29 में से सात जहाजों से संबंधित पाई गई हैं।
पिगॉट ने कहा, “यह कार्रवाई ईरान की उस क्षमता को और सीमित करती है, जिसके जरिए वह गुप्त और धोखाधड़ीपूर्ण तरीकों से पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करता है।”
भारत से जुड़े जिन जहाजों के नाम सामने आए हैं, उनमें बारबाडोस ध्वज वाला जहाज फ्लोरा डोल्से शामिल है, जिसका स्वामित्व और प्रबंधन भारत स्थित रुकबाट मरीन सर्विसेज कंपनी के पास है। आरोप है कि इस जहाज ने अप्रैल 2025 से अब तक ईरानी फ्यूल ऑयल के लाखों बैरल की ढुलाई की है।
इसी तरह पनामा ध्वज वाला जहाज ऑरोरा, जिसे भारत स्थित गोल्डन गेट शिप मैनेजमेंट संचालित करता है, पर ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों, जिनमें नैफ्था और कंडेन्सेट शामिल हैं, के लाखों बैरल के परिवहन का आरोप है।
एक अन्य जहाज राम्या, जिसे भारत की दर्या शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड संचालित और प्रबंधित करती है, पर सितंबर 2025 से अब तक 1 लाख बैरल से अधिक ईरानी पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन का आरोप लगाया गया है।
ट्रेजरी के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय के अनुसार, ये प्रतिबंधित जहाज ईरान के तथाकथित “शैडो फ्लीट” का हिस्सा हैं, जो भ्रामक और धोखाधड़ीपूर्ण शिपिंग तरीकों से ईरानी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करता है।
इन जहाजों और उनसे जुड़ी प्रबंधन कंपनियों पर ईरानी कच्चे तेल और फ्यूल ऑयल, बिटुमेन, नैफ्था और कंडेन्सेट जैसे उत्पादों के परिवहन में शामिल होने का आरोप है।
ट्रेजरी ने बताया कि इस नेटवर्क में अक्सर केवल एक-एक जहाज के स्वामित्व और प्रबंधन के लिए कंपनियां बनाई जाती हैं, ताकि वास्तविक लाभकारी स्वामित्व को छिपाया जा सके और प्रतिबंधों से बचा जा सके। कई जहाज वर्षों से ईरानी पेट्रोलियम की ढुलाई से जुड़े रहे हैं, जिनमें 2025 में बड़ी मात्रा शामिल है।