क्या BJP की निजी संपत्ति है राम मंदिर? सवाल खरा है इसलिए लग रही मिर्ची: सामना

सामना में लिखा गया है कि क्या राम मंदिर बीजेपी की निजी संपत्ति है? ऐसा सवाल पूछने पर नेताओं को ‘मिर्ची’ लगने की कोई वजह नहीं थी, लेकिन सवाल खरा और तीखा था इसलिए उन्हें लग गई है।

फोटो: सामना
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नवजीवन डेस्क

राम मंदिर को लेकर जिस तरह से बीजेपी पूरा क्रेडिट ले रही है, उसे लेकर शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना में संपादकीय 'अयोध्या किसकी?' के जरिए मोदी सरकार पर हमला किया गया है।

सामना में लिखा गया है कि 'BJP ने अयोध्या के राम मंदिर की राजनीति को बेहद विकृत मोड़ पर पहुंचा दिया है। यह हमारी संस्कृति को शोभा नहीं देता। बीजेपी के लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे हिंदुत्व का ठेका उन्हीं के पास है और राम मंदिर के सात बारह (जमीन के मालिक होने का सबूत) पर उनका ही नाम है। लेकिन राम मंदिर निर्माण होते-होते यह साफ हो गया है कि 'रामराज्य' रसातल में चला गया है। अगर हम महाराष्ट्र की ही बात करें तो राज्य में किसानों की आत्महत्याओं ने पश्चिमी घाट की पहाड़ियों और घाटियों को आंसुओं से भिगो दिया है। अकेले यवतमाल जिले में ही 48 घंटे के भीतर छह किसानों ने आत्महत्या कर ली।

पश्चिम विदर्भ में एक साल में सवा हजार किसानों ने आत्महत्या की। ऐसे घृणित शासन करने वाले लोग श्री राम मंदिर उत्सव की राजनीतिक घंटियां बजाते फिर रहे हैं। महाराष्ट्र में आए दिन किसान, बेरोजगार आत्महत्या कर रहे हैं और शायद इसी बड़ी उपलब्धि के लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक, जापान के एक विश्वविद्यालय ने सामाजिक समानता के लिए उनके कार्य को देखते हुए उन्हें यह ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि प्रदान की है'।

लेख में आगे लिखा गया है कि 'राज्य में सामाजिक समानता और प्रगतिशील सोच के चीथड़े उड़ रहे हैं। मौजूदा वक्त में मराठा, ओबीसी और अन्य समुदायों के बीच टकराव के कारण स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है। इसके पीछे किसका दिमाग और किसके खोखे हैं, ये महाराष्ट्र जानता है। अब देवेंद्र फडणवीस के आगे ‘डॉ.’ की उपाधि लगेगी। पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिंधे को भी किसी संस्था ने उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए ‘डॉ.’ की पदवी दी। लेकिन महाराष्ट्र में मौजूदा सरकार के दौरान तीन हजार से ज्यादा किसानों के नाम के आगे ‘स्व.’ की उपाधि लगी है। उनके घर- बार उजड़ गए। परिवार अनाथ और असहाय हो गए। इस मसले पर सरकार के ‘डॉ.’ कुछ नहीं बोलते।

विदर्भ में किसानों की जिंदगी मरघट में बदल गई है और वहां कश्मीर घाटी में सैनिकों की चिताएं जल रही हैं, लेकिन यहां डॉ. फडणवीस और अन्य लोग अपनी पिचकी जांघें थपथपाकर कह रहे हैं, ‘राम मंदिर की लड़ाई में शिवसेना का क्या योगदान है? हिम्मत है तो अयोध्या आओ, तुम्हारी छाती पर मंदिर खड़ा किया गया है।’ राम का अर्थ है संयम। राम का अर्थ है सुस्वभाव, लेकिन इन लोगों ने संयम की ऐसी-तैसी कर दी है। जो लोग, जब अयोध्या की लड़ाई चल रही थी और शिवसैनिक बाबरी पर निर्णायक प्रहार कर रहे थे, तब मैदान छोड़कर भाग गए थे, वे रणछोड़दास अब ‘साहस दिखाएं’ का ताव दिखाते हैं तब आश्चर्य होता है'।


लेख में लिखा गया है कि 'क्या राम मंदिर आपकी निजी संपत्ति है? ऐसा सवाल पूछने पर फडणवीस जैसे लोगों को ‘मिर्ची’ लगने की कोई वजह नहीं थी, लेकिन सवाल खरा और तीखा था इसलिए उन्हें लग गई। प्रभु श्रीराम की उंगली पकड़कर विष्णु के 13वें (भाजपा कृत) अवतार मोदी राम मंदिर की ओर निकल पड़े हैं, ऐसी पोस्टरबाजी हिंदुओं को मंजूर नहीं। क्या मोदी श्रीराम से भी बड़े हो गए हैं? अगर कोई और ऐसा पोस्टर छापता तो ‘हिंदुत्व का अपमान हुआ है’ का स्यापा करते हुए बीजेपी सड़कों पर घंटियां और थालियां बजाती। लेकिन मोदी राम मंदिर की ओर निकले हैं और राम ने उनकी उंगली पकड़ी है, यह तस्वीर बीजेपी को परेशान नहीं करती।

राम मंदिर के लिए सैकड़ों कारसेवकों ने अपना बलिदान दिया है और कई अज्ञात कारसेवक सीने पर गोलियां झेलकर सरयू की तलहटी में बैठे तपस्या कर रहे हैं। उनका कुछ योगदान ये लोग मानेंगे कि नहीं? लालकृष्ण आडवाणी ने श्रीराम मंदिर के लिए अयोध्या रथ यात्रा नहीं निकाली होती और उन्होंने जो अग्नि जलाई, उसमें अशोक सिंघल, विनय कटियार, हिंदू हृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे ने संघर्षमय समिधा नहीं डाली होती तो आज का राम मंदिर खड़ा नहीं होता, लेकिन बीजेपी ने उन्हें भुला दिया। राम मंदिर की लड़ाई के बाद मुंबई में भड़के दंगों में हिंदुओं की रक्षा करने वाली शिवसेना का राम मंदिर में क्या योगदान है? ऐसा पूछने वाली संतान शुद्ध हिंदू नहीं हो सकती। जो लोग बाबरी का गुंबद ढहते समय भाग खड़े हुए थे, वे आज हिंदुत्व आदि बनकर घूम रहे हैं और इस ढोंग को देखकर गंगा, यमुना, गोदावरी, सरयू भी स्थिर हो गई हैं। यह खुशी का गीत है कि राम मंदिर बन रहा है और पूरा देश ये गीत गा रहा है। राम अहंकारी नहीं थे, लेकिन राम मंदिर का उद्घाटन करने वाले अहंकारी और पाखंडी हैं'।

सामना में आगे लिखा गया है कि 'श्रीराम ने पिताश्री दशरथ का सम्मान रखा और वनवास स्वीकार किया। यहां पिताश्री आडवाणी को ही वनवासी कर अयोध्या का सात-बारह अपने नाम पर किया जा रहा है। अनगिनत जुमलेबाजी के इतिहास में ये एक और पन्ना जोड़ा जा रहा है। प्रभु श्रीराम आम आदमी के, सत्य को धारण करने वालों के देवता हैं। उस भगवान के लिए लड़ाई हुई। लेकिन अब बीजेपी ने एलान किया है, ‘राम मंदिर केवल ‘वीवीआईपी’ यानी बेहद खास लोगों के लिए खुला रहेगा। सिर्फ उन्हें ही आमंत्रित किया जाएगा।’ ऐसा कहने वाले ये रावण और विभीषण के वंशज होंगे। राम का चरित्र हिमालय के धवल शिखर के समान है। भारतीय संस्कृति राम, लक्ष्मण, भरत, सीता ने बनाई है। भारतीयों के खून की बूंद-बूंद में रामचरित्र मानस व्याप्त है। रामचरित्र मानस बीजेपी की जुमलेबाजी नहीं है और अयोध्या अडानी की संपत्ति नहीं है। राम मंदिर का उद्घाटन समारोह एक पावन मंगलमय कार्य है। लेकिन BJP ने राजनीतिक कीचड़ बनाकर इसकी मांगल्य और पवित्रता को ही समाप्त कर दिया, इसे विकृति ही कहा जा सकता है'।

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