लखीमपुर से ग्राउंड रिपोर्टः चौथे चक्र के व्यूह में फंसी BJP, तराई के किसानों में गुस्सा, शहर में ही घूम रहे भाजपाई

तराई इलाके में गृह राज्य मंत्री टेनी के पुत्र की रिहाई बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। खीरी के किसानों का कहना है कि आशीष मिश्रा की रिहाई हम किसानों को नीचा दिखाने जैसा है। बीजेपी को टेनी पुत्र की रिहाई बहुत भारी पड़ने वाली है। किसानों ने इसे दिल पर ले लिया है।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हालत आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली हो गई है। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है, बीजेपी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद बनाती है मगर कहानी पलटती जा रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव के 3 चरणों मे अब तक 170 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। इन चरणों में अब तक जहां-जहां चुनाव हुआ है वहां बीजेपी सरकार के खिलाफ वोटरों में अधिक उत्साह देखने को मिला है। इन चरणों मे मुस्लिम, जाट और यादव वोटरों की बहुलता के कारण भी यह बात कही जा रही है।

ऐसे में बीजेपी की उम्मीद अगले चरणों पर टिकी हुई है, मगर चौथे चरण में उसकी राह बहुत कांटों भरी होने जा रही है। दरअसल चौथे चरण में 23 फरवरी को जहां चुनाव होने जा रहा है, वो तराई का इलाका है। पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर और सीतापुर के इस इलाके को मिनी पंजाब भी कहा जाता है।

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इसी चौथे चरण में लखीमपुर खीरी के तिकुनिया गांव में भी वोट डाला जाना है। तिकुनिया की तपिश से यह पूरा इलाका अभी भी दहक रहा है। तिकुनिया वही जगह है जहां चार महीने पहले 3 अक्टूबर को 4 किसानों की गाड़ी से कुचलकर मौत हो गई थी। किसानों की हत्या के आरोप में जेल भेजा गया केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा जमानत पर लौट आया है। आशीष मिश्रा को ज़मानत मिलने से इलाके में जबरदस्त नाराजगी है। किसानों का गुस्सा चरम पर है।

भारतीय किसान युनियन के नेता राकेश टिकैत लखीमपुर खीरी जाकर इसे सरकार की कमज़ोर पैरवी और किसानों के जख्मों पर नमक बता चुके हैं। भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि तिकुनिया हिंसा वाले दिन क्रॉस केस में कुछ बेगुनाह किसानों को भी जेल भेजा गया था, उनके मामले में अभी सुनवाई भी नहीं हुई है, जबकि मंत्री का बेटा जमानत पर बाहर आ गया है और किसानों को उकसा रहा है। धर्मेंद्र मलिक बताते हैं कि जब उनके वकील पैरवी कर रहे थे तो इंटरनेट का कनेक्शन काट दिया गया। सरकारी तंत्र टेनी पुत्र के पक्ष में खड़ा हुआ है। किसानों के पास वोट की चोट के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

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लखीमपुर खीरी में 4 विधानसभा सीट हैं। इसके ठीक पास वाले जनपद पीलीभीत में भी 4 विधानसभा सीट हैं। फिलहाल इन आठों सीटों पर बीजेपी काबिज है। दोनों सांसद भी बीजेपी के हैं और इनमें से एक बीजेपी सांसद ने अपनी ही पार्टी की नाक में दम किया हुआ है। पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी लगातार बीजेपी की उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना को लेकर चर्चा में हैं। लखीमपुर प्रकरण में भी वो किसानों के पक्ष में खड़े दिखाई दिए हैं। वरुण गांधी सार्वजनिक डिजिटल मंचों पर सरकार की नीतियों के विरुद्ध मुखर हैं और इसका असर इलाके पर दिखाई देता है।

पीलीभीत की सिख बहुल विधानसभा सीट पुरनपर के सज्जन सिंह कहते हैं कि वरुण गांधी किसानों के दर्द को समझ रहे हैं, बस उनकी पार्टी नहीं समझ रही है। तराई के इस इलाके में किसान जान जोखिम में डालकर खेती कर रहा है। यहां हर साल आने वाली बाढ़ हमारे लिए दानव की तरह है। यहां एक भी किसान ऐसा नहीं है जिसकी फसल को बाढ़ ने बर्बाद न किया हो। हम नदियों के उफान से लड़ते हैं। सरकार के उफान से भी लड़ेगें। हम किसी के विरोधी नही हैं मगर किसानों को गाड़ी से नहीं कुचलना चाहिए था। टेनी के बेटे ने यह अच्छा नहीं किया। वो चार महीने में बाहर आ गया। एसआईटी की जांच में यह साफ हुआ कि उसने किसानों पर जानबूझकर गाड़ी चढ़ाई। टेनी के बेटे ने हत्या की है और सरकार उसे बचा रही है। हम सरकार बदल देंगे।

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फोटोः आस मोहम्मद कैफ

तराई के इस इलाके में गृह राज्य मंत्री टेनी के पुत्र की रिहाई अचानक से बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। खीरी के पलिया के सुखविंदर सिंह दावा करते हैं कि बीजेपी को टेनी पुत्र की रिहाई बहुत भारी पड़ने वाली है। यहां हर घर में आक्रोश है। यह ठीक नहीं हुआ है। किसानों को कुचलकर मारने वाले की रिहाई करना हम किसानों को नीचा दिखाने जैसा है। वो ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि इसका राजनीतिक लाभ उठा सकें मगर हम भारी नुकसान करेंगे। बीजेपी तो दोनों जनपदों की आठों सीटों पर एकतरफ़ा हराने के साथ-साथ किसानों के असर वाली तराई की 24 विधानसभा सीटों में से एक भी नही जीतने देंगे। अब तक हम वोटर थे अब हम कार्यकर्ता बन गए हैं। किसानों ने दिल पर ले लिया है।

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तराई की 24 सीटों पर मिनी पंजाब का प्रभाव है। इनमें से तीसरे चरण में कुछ सीटों पर चुनाव हो चुका है। यहां सिख किसान बेहद अच्छी मात्रा में हैं। ये 1947 में पाकिस्तान और पंजाब से बड़ी संख्या में तराई में आकर बसे हैं। यूपी में पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, लखीमपुर खीरी, रामपुर, सीतापुर और बहराइच से गोंडा तक यह फैलाव है। खास बात यह है तराई के यह किसान 2014, 2017 और 2019 से कमल खिला रहे थे। तराई इलाके की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर इनका असर है।

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मजदूर और व्यापारी भी इन किसानों से मधुर रिश्ते रखते हैं। तिकुनिया गांव में गाड़ी से कुचलकर मरे युवक लवप्रीत के पिता सतनाम सिंह बताते हैं कि बीजेपी के नेता गांवों में आकर प्रचार नही कर रहे हैं। वो सिर्फ शहर में प्रचार कर रहे हैं। गांवों में किसान और मजदूर रहते हैं, उनमें आक्रोश भरा हुआ है। मंत्री टेनी का बेटा तो 128 दिन में लौट आया, पर मेरा बेटा कभी नहीं लौटेगा। वो शहीद हो गया है। जो किसान क्रॉस मुक़दमे में जेल भेजे गए थे, उनकी तो सुनवाई भी नहीं हो रही है।

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यहां गन्ना किसानों के बकाया पेमेंट का भी मुद्दा है। फसलों का बाढ़ से तबाह होने के बाद मुआवजा ना मिलना और एमएसपी पर खरीद ना होना भी यहां किसान वर्ग की बड़ी समस्या है। निघासन के किसान जोगिंदर सिंह कहते हैं कि यह समस्या तो चली आ रही है मगर सांड ने जो हत्याएं की हैं उनका इल्ज़ाम भी इसी सरकार के सिर है। यहां हर एक गांव के एक किसान, मजदूर की सांड ने टक्कर मारकर जान ली है। सांड को आवारा छोड़ दिया है और वो हत्यारा बन गया है। चुनाव के दौरान अब प्रधानमंत्री इसके समाधान की बात कह रहे हैं, सांड का समाधान अब हम ही करेंगे। जो भी बीजेपी को हराएगा उसे वोट देंगे।

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