क्या बीजेपी पहले ही दो चरण में हार चुकी है उत्तर प्रदेश की चुनावी महाभारत!

अभी तक सिर्फ अनुमान ही हैं, लेकिन पहले 2 चरणों की वोटिंग के बाद से सपा गठबंधन के नेताओं, कार्यकर्ताओं का उत्साह काफी कुछ कहता दिख रहा है। अगर गठबंधन का उत्साह ऐसा ही रहा तो बाकी बचे 5 चरणों की कहानी यूपी की सियासत में एक नई इबारत साबित हो सकती है।

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सुप्रीम लीडर झिझकते, संकोच करते प्रचार मैदान में उतरे और पार्टी की पूरी की पूरी मशीनरी ऊंघती नजर आई। स्टार प्रचारक अजीब-अजीब से बयान दे रहे हैं और कार्यकर्ताओं में उत्साह नजर ही नहीं आ रहा। यहां तक कि पार्टी उम्मीदवार गड़बड़ी के आरोप लगा रहे हैं और समर्थक भी खामोश ही हैं। यह वह बीजेपी तो नहीं है जिसकी आक्रामकता सिर चढ़कर बोलती रही है। यह वह पार्टी तो नहीं दिखती जिसे चुनावी प्रचार और प्रबंधन का मास्टर माना जाता रहा है। यूपी विधानसभा के सात में से पहले दो चरण के मतदान में तो सबकुछ ऐसा ही दिखा। तो क्या ये सबकुछ किसी बात का संकेत है?

उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले दो चरण की कहानी कुछ घटनाओं से समझी जा सकती है। यूपी बीजेपी के चुनाव कोआर्डिनेटर जेपीएस राठौर ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि दूसरे चरण की वोटिंग बुर्का पहने महिलाएं बड़ी संख्या में फर्जी मतदान कर रही है। शाहजहांपुर की तिलहर सीट पर बीजेपी ने आरोप लगाया कि फर्जी मतदान हो रहा है, इसके बाद पुलिस ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को खदेड़ा। इतना ही नहीं योगी सरकार में मंत्री सुरेश राणा ने चुनाव आयोग से शामली जिले की थाना भवन सीट के 40 बूथों पर दोबारा मतदान की मांग की। खुद एक बाहुबलि की छवि वाले सुरेश राणा का आरोप है कि विपक्षी दल ने चुनाव में धंधली की है। क्या इस सब पर विश्वास होता है?

चुनाव में बूथ कैप्चरिंग, धांधली और फर्जी वोटिंग के आरोप सत्ताधारी दल बिरले ही लगाता है। लेकिन यूपी में तो इस बार हवा ही जैसे उलटी बह रही है। और अगर ऐसा है तो समझा जा सकता है कि देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले यूपी में बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है। हो सकता है कि अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए बीजेपी कार्यकर्ता, समर्थक और नेता ऐसा सब कर रहे हों, लेकिन कुछ तो हुआ ही है। आखिर वह क्या है? इसे समझते हैं-

  • शहरी इलाकों में अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ है

  • तमाम उकसावे और भड़काने वाले बयानों और हरकतों के बावजूद मुस्लिम समुदाय ने संयम से काम लिया है

  • किसान बहुल बूथों पर भारी संख्या में वोट डाले गए हैं

इन सबको देखकर बीजेपी बेचैन हो रही है।

दूसरे चरण में 14 फरवरी को उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में मतदान हुआ, उन्हें मुस्लिम बहुल माना जाता है। बीजेपी को मुस्लिम वोटों के बंटवारे से उम्मीद थी। वैसे भी इस चरण की कुल 55 सीटों पर 77 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में थे। लेकिन लगता है कि मुस्लिम समुदाय ने एक खास रणनीति के तहत खामोशी से मतदान किया है।


बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा और संभल ऐसे जिले हैं जहां मुस्लिम समुदाय को हजारों वसूली नोटिस भेजे गए और सैकड़ों लोगों को गुंडा एक्ट में जेल भेजा गया। लेकिन मुस्लिम समुदाय ने मानो तय कर लिया था उनकी पिछली गलतियों के चलते ही उत्तर प्रदेश में बीजेपी को भारी जीत मिली थी। इसलिए वे खामोश रहे और किसी भी तरह के बहकावे या उकसावे में नहीं है। जाहिर है इस समुदाय का अधिकतर वोट सपा-आरऐलडी गठबंधन के पक्ष में गया होगा।

दूसरे दौर में नौ जिलों में मतदान हुआ इनमें से 8 रुहेलखंड के और एक दोआब क्षेत्र का जिला है। इन सभी 9 जिलों में दूसरे दौर में 61 फीसदी मतदान हुआ। बीजेपी के लिए यह चिंता का सबब है तो वहीं सपा-आरएलडी गठबंधन को अमरोहा, संभल और मुरादाबाद जिले में क्लीन स्वीप की उम्मीद है। हालांकि चंदौसी और धनौरा जैसी सीटों पर बीजेपी कुछ मजबूत नजर आई। बरेली जिले में तो बीजेपी को करारा झटका लग सकता है। 2017 में बीजेपी ने बरेली की सभी 9 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। जिले की भोजीपुरा, फरीदपुर, मीरगंज, नवाबगंज, बहेड़ी और आंवला सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार काफी मजबूत नजर आए। वहीं बिथरी चैनपुर, बरेली शहर और बरेली कैंट में सपा और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला है। हालांकि बरेली कैंट पर पलड़ा सपा की तरफ झुका नजर आया।

शाहजहांपुर में योगी सरकार के मंत्री सुरेश खन्ना को सपा उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिली, तो तिलहर, पुवायां, ददरौल और जलालाबाद में समाजवादी पार्टी काफ मजबूत नजर आई। रामपुर जिले की बिलासपुर सीट इस बार भी कांग्रेस के खाते में जाती दिख रही है जबकि रामपुर सिटी, स्वार, चमरावा और मिलक में सपा उम्मीदवारों के पक्ष में हवा नजर आई। इसी तरह हसनपुर, नौगंवा, अमरोहा, संभल, असमोली, गुन्नौर, सहसवान, चांदपुर, नजीबाबाद, बरहानपुर, नगीना, नहटौर और बिजनौर में सपा-आरएलडी गठबंधन के पक्ष में उत्साह देखा गया। शेखपुर और बदायूं के साथ ही सहारनपुर जिले की बेहट और नकुर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय दिखा।

सवाल है कि आखिर इन 55 में से 2017 में 38 सीटें जीतने वाली बीजेपी को क्यों पसीने आ गए? दरअसल किसान आंदोलन ने बिजनौर और अमरोहा जिलों में बीजेपी के गणित को बिगाड़ दिया। वहीं शाहजहांपुर में लखीमपुर जिले की घटना ने बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में कारक का काम किया। मुसलमानों ने तो सीएए विरोधी आंदोलन के बीच सरकार की तरफ से हुई कार्यवाहियों का जवाब दिया। इसके अलावा इन सीटों पर गुर्जर, मौर्य और सैनी मतदाता भी सपा गठबंधन के पक्ष में ही नजर आए। इसका कारण साफ है कि यशवीर सिंह, मुखिया गुर्जर, धर्म सिंह सैनी और स्वामी प्रसाद मौर्य पहले ही सपा खेमे का हिस्सा बन चुके हैं।


हालांकि अभी तक सिर्फ संकेत और अनुमान ही हैं, लेकिन पहले दो चरणों के चुनाव की वोटिंग के बाद से सपा गठबंधन के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का उत्साह काफी कुछ कहता दिख रहा है। अगर गठबंधन का उत्साह ऐसा ही रहा तो बाकी बचे पांच चरणों में कहानी उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नई इबारत साबित हो सकती है। वहीं बीजेपी को पहले दो चरणों में गठबंधन को मिले उत्साह का मुकाबला करने के लिए गियर बदलना पड़ सकता है।

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