UP चुनाव: अपने गढ़ रायबरेली में फिर इतिहास रचने को कांग्रेस तैयार, दूर-दूर तक नहीं है कमल के खिलने के आसार!

रायबरेली सदर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा दस बार कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी रायबरेली लोकसभा सीट से जीतकर लगातार 5वीं बार संसद पहुंची है। कांग्रेस की यहां ऐसी हवा बहती है कि इस सीट पर बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बीएसपी अबतक खाता तक नहीं खोल सकी है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

एहसान अब्बास

यूपी के राजनीतिक तौर पर बहुचर्चित जिले रायबरेली की सदर विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प है। रायबरेली जनपद कांग्रेस का गढ़ रहा है। राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रायबरेली सदर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा दस बार कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी रायबरेली लोकसभा सीट से जीतकर लगातार पांचवीं बार संसद पहुंची है। कांग्रेस की यहां ऐसी हवा बहती है कि इस सीट पर बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बीएसपी अबतक खाता तक नहीं खोल सकी है।

बीजेपी ने कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से पहली बार विधायक बनीं अदिति सिंह को अपने पाले मे झटक लिया है। इस बार अदिति कमल के चुनाव चिन्ह पर किस्मत आजमा रही हैं। अदिति सिंह दिग्गज कांग्रेसी दिवंगत अखिलेश सिंह की बेटी हैं। 2019 में अखिलेश सिंह के निधन के बाद से ही अदिति सिंह अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। कट्टर कांग्रेसी नेता रहे अखिलेश सिंह का रायबरेली में इतना दबदबा था कि वोटरों पर उनका जादू सिर चढ़कर बोलता था।

वरिष्ठ कांग्रेसी मोजिज नकवी बताते हैं कि चुनावों में रायबरेली के गली मुहल्लों मे नारा गूंजता रहता था। अखिलेश सिंह की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर। और चुनावी नतीजे हमेशा कांग्रेस के पक्ष में ही आते थे। कुछ एक उन्हें रायबरेली का राबिनहुड भी कहते थे। कांग्रेस आलाकमान के बेहद करीबियों मे उनका शुमार था। हालांकि अब उनकी बेटी अदिति सिंह चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपाई हो चली है। चुनाव में अदिति को सियासी पाला बदलने से फिलहाल नुकसान ही नजर आ रहा है। अदिति के पाला बदलने के बाद कांग्रेस ने रायबरेली सदर सीट पर पुराने कांग्रेसी डाक्टर मनीष चौहान को मैदान में उतारा है। उनके घर के सभी बुजुर्ग कट्टर कांग्रेसी थे।

डाक्टरी पेशे से जुड़े मनीष चौहान रायबरेली में बरसों से समाज सेवा के जरिए आम लोगों मे खासी मकबूलियत रखते हैं। वो रायबरेली में एक हास्पिटल भी चलाते हैं। काफी वक्त पहले दिल्ली छोड़ कर रायबरेली लौटे मनीष चौहान ने अब यहीं लोगों में घुलमिल गये है। अपनी विजय से आश्वस्त मनीष चौहान कहते हैं कि मौजूदा विधायक ने शहर में बिजली, पानी, सड़क की व्यवस्था को नजरअंदाज किया है जबकि इसके सुधार के लिए मैं इसे प्रायारिटी पर रखूंगा। रायबरेली के लोगों के दिल में कांग्रेस बसती है और यही वजह है कि मेरी विजय निश्चित है।

रायबरेली में अपनी एंट्री बनाने के लिए समाजवादी पार्टी ने आर.पी.यादव को चुनावी समर में उतारा है। जबकि बीएसपी के टिकट पर मोहम्मद अशरफ चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आर.पी. यादव बाजी मार लेने का दावा करते नहीं थक रहे हैं। रायबरेली सदर विधानसभा क्षेत्र में लगभग तीन लाख वोटर हैं। ये राजपूत बाहुल्य सीट है। ब्राह्मण और पिछड़े मतदाता, उम्मीदवार का भाग्य तय करते हैं। जबकि यादव और मुस्लिम वोटों की भी बड़ी तादात है।

पेशे से ड्राइवर अशोक यादव कहते हैं कि असल मे देखें तो अदिति सिंह ने युवाओं और रोजगार के लिए कुछ नहीं किया। और चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी मे चली गई। अब उनपर क्यों कोई विश्वास करे। बी.एस.सी.स्टूडेंट अनुष्का कहती हैं कि अदिति सिंह अपने पिता की वजह से विधायक बनीं। उनका खुद का कोई वजूद नहीं है। विधायक बनने के बाद उन्होंने रायबरेली के लिए कुछ भी नहीं किया है। लोग उनसे नाराज हैं। और उनकी हार के यही कारण बनेंगे। रायबरेली की सड़कों पर ईरिक्शा चला कर परिवार का गुजर कर रहे राजू सिंह कहते हैं कि अदिति सिंह अखिलेश सिंह की बिटिया जरुर है लेकिन दोनों में जमीन और आसमान का फर्क है। कोरोना के समय जब हम पर भारी मुसीबत पड़ी थी उस वक्त अदिति ने दर्द से कराहते लोगों से मुंह मोड़ लिया था। चुनाव आया है तो फिर दिखाई पड़ी है। वोटर कुछ नहीं भूला है। इस सबका खामियाजा उन्हे भुगतना पड़ेगा।

सरकारी स्कूल में शिक्षक प्रशांत त्रिवेदी कहते हैं कि अदिति मतलबी नेता है। अबदल बदलकर हमें धोखा देने आई हैं। जनता ने पिछली बार उन्हें उनके पिता के नाम पर वोट दिया था। लेकिन अब लोगों का मोह भंग हो गया है। एलयुमिनियम के व्यापारी शारिब खान कहते हैं कि रायबरेली और गांधी परिवार का नाता अटूट है। यहां कांग्रेस लोगों के रोम रोम में बसती है। और इस चुनाव के नतीजे आने के बाद ये बात फिर साबित हो जायेगी।

आपको बता दें, रायबरेली सदर विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1967 मे इस सीट से पहली बार कांग्रेस के मदन मोहन मिश्रा चुनाव जीते थे। उसके बाद से ये सीट लगातार कांग्रेस जीतती आई है। लेकिन कांग्रेस को भी इस सीट पर पराजय का स्वाद चखना पड़ा था। बाद में 1993 में कांग्रेस के टिकट पर अखिलेश सिंह पहली बार चुनाव जीते थे। और बाद में 1996 मे भी कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी। हालांकि अखिलेश सिंह 2002 में कांग्रेस के बजाय निर्दलीय और 2012 में पीस पार्टी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे।

उसके बाद अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह ने 2017 मे इस सीट पर अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली और कांग्रेस के टिकट पर पहली बार जीत कर विधानसभा पहुंची। अदिति ने बीएसपी के मोहम्मद शाहबाज खान को 89163 वोटो के अंतर से हराया था। जबकि बीजेपी की उम्मीदवार अनिता श्रीवास्तव तीसरे नंबर पर रही थीं। इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग तीन लाख वोटर है। इसे राजपूत बाहुल्य सीट माना जाता है। लगभग 75 हजार राजपूत मतदाता है। पैंसठ हजार यादव, चालीस हजार ब्राह्मण, बयालीस हजार मुसलमान और पैतालीस हजार मौर्य वोटर है। आपको बता दें, रायबरेली विधानसभा सीट पर उतर प्रदेश मे चौथे चरण में 23 फरवरी को वोटिंग होगी।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia