उत्तराखंड: मतदान खत्म होते ही खुल गई डबल इंजन के विकास की पोल, अगले दिन तक भी मुख्यालय नहीं पहुंच सकीं पोल पार्टियां

उत्तराखंड में जिस डबल इंजन के विकास का ढोल प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और बीजेपी के अन्य नेताओं ने पीटा, उसकी पोल तो मतदान खत्म होते ही खुल गई। मतदान खत्म होने के अगले दिन तक भी मुख्यालयों को नहीं पहुंच सकीं पोलिंग पार्टियां।

फोटो : सोशल मीडिया
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जयसिंह रावत

उत्तराखंड में मतदान 14 फरवरी को शाम 6 बजे सम्पन्न हो गया, लेकिन 15 फरवरी की 9 बजे तक भी लगभग 40 पोलिंग पार्टियां मतपेटियों को लेकर जिला मुख्यालयों पर नहीं लौट पायीं थीं। जबकि नियमानुसार मतदान समाप्त होते ही पोलिंग पार्टियों को मत पेटियों को स्ट्रांग रूम में जमा कराना होता है। प्रदेश के सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों से मतदान के एक दिन बाद ही 1042 पोलिंग पार्टियां वापस मुख्यालयों तक पहुंच पायीं।

अब कल्पना की जा सकती है कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में डबल इंजन का विकास कितना कारगर हुआ होगा और पहाड़ के लोगों की तकलीफें कितनी कम हुई होंगी। डबल इंजन की सरकार ने चार धाम ऑल वेदर रोड के नाम पर इस चुनाव में काफी ढोल पीटा था जिसकी पोल इस चुनाव में पोलिंग पार्टियों ने ही खोल दी।

नैनीताल जिले की भीमताल विधानसभा सीट के ओखलकांडा के बूथ संख्या-47 राजकीय प्राथमिक रीखाकोट के पीठासीन अधिकारी नवीन चंद्र जोशी को हार्ट अटैक आया, तो सड़क न होने के कारण उनकी जान बचाने के लिये उन्हें 4 किमी तक डोली पर बिठा कर सड़क तक लाया गया। नवीन जोशी की लोकेशन सड़क से मात्र 4 किमी दूर थी इसलिये उनकी जान बच गयी। लेकिन प्रदेश में बदरीनाथ के डुमक मतदान केन्द्र तक पहुंचने के लिये 20 किमी लम्बी चढ़ाई वाली पगडंडी है। अगर वहां किसी मतदानकर्मी की तबियत खराब होती तो तब क्या होता?

चलो मतदानकर्मी तो सकुशल लौट गये, लेकिन वहां रहने वाले नागरिकों की स्थिति क्या होगी, यह स्वयं समझा जा सकता है। इस बार प्रदेश में 9 पोलिंग स्टेशन ऐसे थे जहां पहुंचने के लिये 15 से लेकर 20 किमी तक की बेहद कठिन पैदल यात्रा मतदानकर्मियों को करनी पड़ी। इसी प्रकार 38 स्टेशनों तक पहुंचने के लिये 7 किमी तक लम्बी और जोखिमपूर्ण पगडंडियों को पार करना पड़ा। पिथौरागढ़ का कनार केन्द्र सड़क से 18 किमी दूर और उत्तरकाशी का कलाप केन्द्र 13 किमी दूर पहाड़ी पर था। इसी प्रकार 766 केन्द्र समुद्रतल से 5000 फुट से अधिक ऊंचाई पर होने के कारण बर्फीले क्षेत्र के आसपास ही थे।

मतदान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर उत्तराखंड के पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्रियों ने डबल इंजन के विकास का ढोल खूब पीटा। पिछले पांच सालों में एक लाख करोड़ के विकास कार्यों का दावा स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड की जनसभाओं में किया। चार धाम ऑल वेदर रोड के नाम पर वोट मांगे गये थे।

राज्य निर्वाचन विभाग के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में इस चुनाव में कुल 11,647 पोलिंग स्टेशन बनाये गये थे जिनमें से केवल 4,504 पोलिंग स्टेशनों तक ही वाहन सुविधा उपलब्ध थी। वाहन सुविधा का मतलब कि केवल इतने ही पोलिंग स्टेशन सड़क मार्ग से जुड़े थे। बाकी 7,143 पोलिंग स्टेशनों के लिये पोलिंग पार्टियों को 4 से लेकर 20 किमी तक पहाड़ की बेहद कठिन चढ़ाइयों को पार करना पड़ा। पहाड़ों में जनसंख्या घनत्व कम होने के कारण दो या दो से अधिक गावों के लिये एक पोलिंग स्टेशन होता है।


जाहिर है कि विकास के चाहे जितने भी दावे किये जाएं, पहाड़ के कम से कम 10 हजार छोटे-बड़े गावों तक विकास की गाड़ी नहीं पहुंच पायी है। जिस कारण इन गावों की चिकित्सा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच नहीं बन पायी है।

मतदान के ही दिन टिहरी जिले की नरेंद्रनगर सीट पर वीर सिंह तोपवाल नाम के एक 67 वर्षीय मतदाता की पोलिंग स्टेशन पर ही हार्ट अटैक से मौत हो गयी। मुख्य मार्ग से दूर होने के कारण वीरसिंह को समय से बड़े अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका। बड़े अस्पताल देहरादून जैसे नगरों में ही उपलब्ध हैं जिस कारण कई गंभीर मरीज और घायल इन नगरों तक पहुंचने से पहले दम तोड़ रहे हैं।

पिछले पांच सालों में डबल इंजन की सरकार ने विकास के बहुत दावे किये मगर इस अवधि में सर्वाधिक महिलाओं ने अस्पताल पहुंचने से पहले सड़कों पर ही बच्चों को जन्म दिया है। राज्य सरकार की सांख्यकी डायरी के अनुसार उत्तराखंड में प्रति हजार वर्ग किमी क्षेत्र में केवल 1187.6 किमी लम्बी सड़कें हैं, जबकि त्रिपुरा जैसे हिमालयी राज्य में प्रति हजार वर्ग किमी में 3738.4 किमी लम्बी सड़कें हैं।

उत्तराखंड का 84.6 प्रतिशत क्षेत्र पहाड़ी है जहां प्रति हजार वर्ग किमी पर केवल 651.73 किमी लम्बी ही सड़कें हैं। सड़कों के मामले में राष्ट्रीय स्तर भी उत्तराखंड काफी पीछे हैं। भारत में प्रति हजार वर्ग किमी पर 1391 किमी लम्बी सड़कें हैं।

ऑल वेदर रोड के ढोल के ढकोसले से पहाड़ों की यातायात असुविधा को छिपाने का पूरा प्रयास किया गया। लेकिन स्वयं सरकार की सांख्यकी डायरी बता रही है कि अब भी 10,820 लक्षित गावों में से 471गांव सड़क मार्ग से 1 किमी, 2546 गांव 1 से लेकर 5 किमी, 1560 गांव 5 किमी से अधिक दूर हैं। प्रदेश के 2327 गांव बस स्टेशन से 5 किमी से अधिक दूर हैं। उत्तरकाशी जैसे सीमान्त जिले में भारी मतदान में समस्याग्रस्त मतदाताओं के आक्रोश की अभिव्यक्ति ढलक रही है।

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