सिर्फ धूम्रपान के विवाद तक सीमित नहीं लीना की 'काली', गैर संदर्भित व्याख्याओं से आगे और भी बहुत कुछ है

मणि कहती हैं कि कनाडा दिवस में शामिल 50 लोगों को छोड़ दें तो किसी ने फिल्म का एक अंश भी नहीं देखा है। निर्देशकीय कट भी अभी इसे नहीं मिला है। ग्रेडिंग, मिक्सिंग सब बाकी है। इसे तो एक लंबी फिल्म की अवधारणा के तौर पर शूट किया गया था।

फोटोः सोशल मीडिया
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नम्रता जोशी

जब मै यह लिख रही हूं, टोरंटो पुलिस भारतीय फिल्म निर्माता और कवयित्री लीना मणिमेकलई को सेफ हाउस पहुंचा चुकी है और मणि ने कुछ वक्त के लिए खुद को फोन कॉल्स और सोशल मीडिया से दूर कर लिया है। ‘काली’ को लेकर मचे बवंडर के बीच मणि ने बताया कि टोरंटो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी और आगा खान म्यूजियम पर फिल्म को लेकर खेद व्यक्त करने का भारतीय उच्चायोग से कैसा दबाव था। यूनिवर्सिटी उस कार्यक्रम की मेजबान थी और आगा खान म्यूजियम मे वह कार्यक्रम हुआ जिसका हिस्सा ‘काली’ भी थी। हालांकि यॉर्क विश्वविद्यालय मणि और उनके काम के साथ मजबूती से खड़़ा है। मूल रूप से तमिलनाडु के मदुरै की मणिमेकलाई इन दिनों कनाडा की यॉर्क यूनीवर्सिटी, टोरंटो के ग्रेजुएट फेलोशिप ऑफ एकेडेमिक डिस्टिंक्शन प्रोग्राम का हिस्सा हैं।

इस महीने की शुरुआत में मणि ने अपनी डाक्यूमेंटरी ‘काली’ के लॉन्च की घोषणा करते हुए एक पोस्टर क्या ट्वीट किया, ठहरे हुए पानी में तूफान सा आ गया। पोस्टर में देवी काली को धूम्रपान करते दिखाया गया है। इसी पर हंगामा मचा और दिल्ली से लेकर यूपी तक ‘आपत्तिजनक’ और ‘धार्मिक भावनाएं आहत करने’ के नाम पर उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हो गए। ओटावा स्थित भारतीय उच्चायोग भी सक्रिय हुआ और कनाडाई अफसरों से उकसावे वाली सामग्री हटाने को कहा गया। ट्विटर ने भी भारत में उठी मांग के बाद मणि का ट्वीट रोक दिया।

भारत के सोशल मीडिया पर हैशटैग के साथ मणि के खिलाफ हत्या और बलात्कार जैसी धमकियों का सिलसिला चल पड़ा। गिरफ्तारी की मांग तो थी ही। मणिमेकलाई ने एक ट्वीट में पूछा: “क्या ट्वीटर उनके बहाने नफरत फैलाने वाले वे लाखों ट्वीट भी रोक देगा?” आगे लिखा: “काली को लिंच नही किया जा सकता। काली का बलात्कार नहीं हो सकता। काली का नाश नहीं हो सकता। वह तो खुद मृत्यु की देवी है!” निश्चित तौर पर पोस्टर पर दिखी एक छवि और इसकी गैर संदर्भित व्याख्याओं से कहीं आगे, यह फिल्म बहुत कुछ और भी है।

मणि कहती हैं: “कनाडा दिवस मे शामिल 50 लोगों को छोड़ दें तो किसी ने फिल्म का एक अंश भी नही देखा है। निर्देशकीय कट भी अभी इसे नहीं मिला है। ग्रेडिंग, मिक्सिंग सब बाकी है। इसे तो एक लंबी फिल्म की अवधारणा के तौर पर शूट किया गया था।”

‘काली’ टोरंटो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी मे कनाडाई चेयर ऑफ एक्सीलेंस इन रिसर्च क्रियेशन (सीईआरसी-माइग्रेशन) के कार्यक्रम ‘अंडर द टेट’ की अकादमिक परियोजना का हिस्सा थी जिसमें यह डाक्यूमेंटरी तैयार हुई। मणिमेकलाई उन चयनित 18 लोगों या समूहों में से हैं जो कनाडा के विश्वविद्यालयों से फिल्म स्नातक हैं। मणि साफ करती हैं, “यॉर्क यूनिवर्सिटी से फिल्म में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट के तौर पर मैंने इस कार्यक्रम मे भाग लिया था और काली ‘कनाडा के बहुसंस्कृतिवाद’ पर मेरी एक रचनात्मक कृति है।”


कार्यक्रम मे प्रदर्शित छह मिनट का वह अंश तो खुद मणिमेकलाई के बारे में है जो काली की वेशभूषा में टोरंटो की सड़कों पर लोगों से मिल रही हैं। जनजातीय और आदिवासी लोककलाओं मे गहरे संदर्भित देवी-देवताओं में रुचि रखने वाली मणि ने यहां उसी भावना के साथ यह रूप धरा। सड़क पर चलते लोग इस ‘काली’ को जिस तरह लेते हैं, जैसे जवाब देते हैं, उसमें खासा हास्य भी है लेकिन गांभीर्य भी। यह भी कि किस तरह वह इंसानी दुनिया और उसकी चिंताओं का हिस्सा बन जाती है।

इस ‘काली’ का ऐसा ही एक संवाद केनसिंगटन मार्केट के पार्क में उस बेघर अश्वेत के साथ होता है जब रेगाई (करेबियन म्यूजिक) का आनंद लेती मणि को वह सौहार्द्रवश सिगरेट पेश करता है। सोशल मीडिया पर हंगामे की जड़ में यही सीन है। साफ है कि यह ‘देवी काली’ का धूम्रपान नहीं बल्कि यह मणिमेकलाई है जिन्होंने काम के दौरान ब्रेक लेकर काली का रूप लेते कपड़े पहने और लोगों के बीच चली गईं। शायद आदतन फीडबैक की चाहत में।

मणिमेकलाई कहती हैं: फिल्म में कई परतें हैं। जाहिर सी बात है देखने के भी उतने ही तरीके होंगे! “मैं तो उस चीज का मजाक उड़ा रही हूं जिसे ‘बहुसंस्कृतिवाद’ कहते हैं।” उनके अनुसार, बतौर एक फिल्म निर्माता इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी उनकी उपस्थिति के माध्यम से है क्योंकि यह भाव आम स्त्री में निहित है।

काली किसी देवी, आस्था, धर्म या आध्यात्मिकता के बारे में नहीं है। यह लोगों, समुदायों, संस्कृतियों को देखने, नजर रखने के औजार (नजरिया) के बारे में है। “मै इसी नजरिये पर सवाल उठा रही हूं। भूरी त्वचा पर आकर्षक टकटकी काली के लिए एक रूपक हो सकती है लेकिन बाकी संस्कृतियो पर वही नजर मूर्तिपूजक के रूप में क्यों तब्दील हो जाती है।” यह विचारों के इसी घालमेल, नस्लों और जातियों के बीच बातचीत के साथ-साथ संघर्ष और इनके बीच की साठगांठ के बारे में है। यह ‘होने, बनने और खुद के अस्तित्व के बारे में है।’

यह पहली बार नहीं है जब इस फिल्म निर्माता को बवंडर झेलना पड़ रहा हो। अंदर से खांटी राजनीतिक मणि हमेशा फिल्म निर्माताओं के संघर्ष के साथ खड़ी रही हैं। यहां तक कि हाल में यूक्रेन और अफगानिस्तान की इस जमात के साथ खड़ी दिखाई दीं। वह दलित, आदिवासी, शरणार्थी समुदायों के बीच भी लगातार सक्रिय दिखी हैं।


उनकी अब तक की दूसरी और सबसे लोकप्रिय फिल्म ‘मदाथी: एन अनफेयरी टेल’ पुथिराई वन्नार समुदाय के बारे में है जो एक दलित जाति समूह है और अन्य दलितों, मृत लोगों और मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के कपड़े धोता है। माना जाता है कि उनकी नजर पड़ने मात्र से उच्च जातियों का धर्म भ्रष्ट हो जाता है। वहां भी दलितों में दलित है। कुछ ऐसे भी हैं जिनकी हैसियत इस आधार पर बनती बिगड़ती है कि वे कौन से दलित हैं या किस दलित जाति समूह के लिए कपड़़े धोते हैं।

मणि फिल्म सेंसरशिप, लिंग, जाति, मी टू जैसे मुद्दों ही नहीं दलित समुदाय के भीतर फैले ‘पुरुषत्व’, ‘पदानुक्रम’ और ‘विषाक्तता’ के सवालों पर हमेशा मुखर रही हैं। उनका मानना है कि “भेदभाव में लिंग बहुत बड़ा कारक है। यह दमन का एक भयावह उपकरण है। जातियों के भीतर, लिंग दोगुना भेदभावपूर्ण हो जाता है… मेरे जैसे पिछड़े समुदाय की महिला की तुलना में एक दलित पुरुष ज्यादा बेहतर है…।”

मेरे साथ एक बातचीत मे मणि जाति उन्मूलन के लिए समर्पित मंचों पर भी माडथी की सायास अनदेखी पर सवाल उठाती हैं कि किस तरह इसे एक दलित फिल्म निर्माता नही बल्कि एक ‘शूद्र’ का काम कहकर खारिज किया गया। उन्होने कहा: “मैं कभी दावा नहीं करती कि मैं जाति विरोधी सिनेमा बना रही हूं। मैंने कभी नहीं कहा कि मैं परफेक्ट सिनेमा बना रही हूं। मै अपने स्थान, अपने लोकेल को लेकर बहुत सचेत हूं और मुझे पता है कि मैंने उन समुदायों के साथ एकजुटता दिखाने का सचेत विकल्प चुना है जिनके साथ लगता है कि मुझे खड़़े होना ही चाहिए।”

मणिमेकलाई के साहस की तारीफ करनी पड़ती है जब वह कहती हैं कि जिंदगी दांव पर लग जाए तब भी अपने विचार, अपने विश्वास के साथ समझौता नहीं करेंगी। वह मुझे लिखती हैं: “इतनी ज्यादा नफरत तो किसी के प्रति भी नहीं दिखाई जानी चाहिए।” निश्चित रूप से काली के नाम पर तो नहीं!

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