इंटरव्यू: मिलिए फिल्म 'जलसा' की टीम से और जानें कहानी के जन्म लेने से पर्दे पर उतारने तक की पूरी दास्तां

बॉलीवुड एक्ट्रेस विद्या बालन और शेफाली शाह की की थ्रिलर ड्रामा ‘जलसा’ को काफी पसंद किया जा रहा है। फिल्म दर्शकों से खूब सराहना बटोर रही है। जलसा की पूरी टीम से बात की हमारे संवाददाता कुमार रविराज सिन्हा ने, पेश है बातचीत के प्रमुख अंश:-

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

बॉलीवुड एक्ट्रेस विद्या बालन और शेफाली शाह की की थ्रिलर ड्रामा ‘जलसा’ को काफी पसंद किया जा रहा है। फिल्म दर्शकों से खूब सराहना बटोर रही है। फिल्म हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है। जलसा की पूरी टीम से बात की हमारे संवाददाता कुमार रविराज सिन्हा ने, पेश है बातचीत के प्रमुख अंश:-

1. आपको इस स्क्रिप्ट को लिखने में कितना समय लगा और आपको इसका विचार कैसे आया?

सुरेश त्रिवेणी: ऐसा करने का इरादा 2018 के अंत से था लेकिन हमने 2020 में लिखना शुरू किया। उस वक्त मेरे पास यह 2-लाइन का आईडिया ही था और मैं प्रज्ज्वल चंद्रशेखर से मिला। फिर उनके साथ, हमने लगभग डेढ़ साल में स्क्रिप्ट पूरी की। अगस्त 2021 में हमने शूटिंग शुरू की। मुझे कई शानदार लोगों का सहयोग मिला। और हम स्क्रिप्ट पर काम करते रहे। हमने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की कि इसमें हर शब्द मायने रखता हो।

2. शेफाली शाह के साथ काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा?

विद्या बालन: अविश्वसनीय, मेरी इच्छा है कि हर अभिनेता को शेफाली शाह जैसा सह-अभिनेता मिले क्योंकि इससे आपको बेहतर काम करने की प्रेरणा मिलती है। वह एक बेहतरीन अदाकारा हैं और मैंने कई सालों तक उनके काम की प्रशंसा की है। मुझे उनका काम बेहद पसंद है और उनके साथ कैमरे का सामना करना बेहद खुशी की बात थी। बेशक खूबसूरती यह थी कि शेफाली शाह सेट पर कहीं मौजूद नहीं थीं, सिर्फ रुखसाना थीं और यही शेफाली की ताकत है। इतनी निपुण और मशहूर अदाकारा होने के बावजूद, सेट पर हर रोज उसी शिद्दत और जुनून के साथ उन्हें काम करते देखना प्रेरणादायक रहा। हालांकि हम कुछ ही सीन्स में एक साथ थे लेकिन जब भी थे, मैंने इसे हर बार महसूस किया।


3. इस किरदार के लिए आपने खुद को कैसे तैयार किया?

शेफाली शाह: सबसे पहले, मैंने स्क्रिप्ट से शुरू किया और सुरेश से ढेर सारे सवाल पूछे। मुझे लगता है कि जब आप निर्देशक के साथ स्क्रिप्ट पर काम कर रहे होते हैं तो इससे आपको एक स्पेस मिलता है, और आप किरदार को फिर से खड़ा करना शुरू करते हैं । जब आपके पास सुरेश त्रिवेणी जैसा बहुआयामी निर्देशक होता है तो ये पूरी प्रक्रिया बहुत मज़ेदार हो जाती है।

साथ ही, मैंने यह सवाल भी पूछा कि क्या किसी को रेफरेंस पॉइंट के तौर पर ले सकते हैं। बात यह है कि मेरे पास मेरी हाउस हेल्प है, जो मेरे जीवन का एक बड़ा हिस्सा है। किरदार को गढ़ना कोई ऐसी बात नहीं कि स्कूल जाकर, पढ़ कर उसे सीखा जा सके। यह आपके जीवन का एक हिस्सा होता है, आपके परिवार का एक हिस्सा। साथ ही रुखसाना मुख्य रूप से एक मां हैं, जो मैं भी हूं, इसलिए उसका डर, गुस्सा और हताशा मैं समझ सकती हूँ। तो, यह मेरे लिए आसान हो गया।

4. क्या बिना किसी संवाद के भावनाओं को व्यक्त करना मुश्किल था?

शेफाली शाह: दरअसल मैं वाकई मानती हूँ कि यदि आप 2 शब्दों में कुछ कह सकते हैं तो 4 का इस्तेमाल न करें, और यदि आप बिना किसी शब्द के कुछ कह सकते हैं, तो 2 का उपयोग भी न करें। हमारे पास कैमरा तो होता ही है जो छोटी-छोटी बारीकियों को पकड़ लेता है। साथ ही, जहां से मेरा किरदार आता है, उसके पास इतना मुखर होने का ना तो मौका है, ना ही गुंजाईश। इसलिए वह जो कुछ भी महसूस कर रही है वह सब उसके भीतर ही उफनता है। इसलिए भावनाओं का विस्फोट होता है। मैं शुरुआत में इस पर चर्चा कर रही थी कि रुखसाना को समझना आसान है क्योंकि इतनी सारी भावनाएं हैं जो चेहरे पर आ सकती हैं, आ जाती हैं । लेकिन मुझे लगता है कि आप जितना अपने भावों के साथ संयमित होंगे उतना ही ज्यादा असर होगा चूंकि जब कोई विस्फोट होता है, तो वह निकल जाता है, हो जाता है, लेकिन उस विस्फोट का डर ही इस मनोवृत्ति को चलाता रहता है।

5. 'जलसा' शीर्षक आपको कैसे सूझा?

सुरेश त्रिवेणी: बहुत से नाम थे। आम तौर पर इस शीर्षक का अर्थ उत्सव से जुड़ा है, लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि एक उत्सव में जीवन के सभी क्षेत्रों से लोग एक साथ आते हैं। आप फिल्म देखेंगे तो समझ जायेंगे कि ये नाम कहाँ से आया और क्यों आया। यह एक आसान शीर्षक नहीं था, लेकिन अंत में हम कुछ ऐसा चाहते थे जो फिल्म के लिए प्रासंगिक हो। मैं कहूंगा कि यह विडंबनाओं और विकल्पों का उत्सव है।


6. क्या आपने स्क्रिप्ट लिखते समय कलाकारों के बारे में पहले ही फैसला कर लिया था?

सुरेश त्रिवेणी: नहीं, लेकिन मेरी प्रक्रिया का एक हिस्सा यह भी है कि मैं अभिनेताओं की कल्पना करने की कोशिश करता हूं, मैं बात करता हूं और लिखता हूं। मैं अभिनेताओं को ध्यान में रखकर काम करता हूं, हालांकि इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि ऐसा ना हो । लेकिन आपकी पहली मंशा होनी चाहिए ये समझने की कि आपके मन में क्या है, कौन हैं। और जब मैंने उन दोनों किरदारों को समझ लिया, पहचान लिया तो उन्हें बाहर लाकर खड़ा किया। फिर मैंने उनके लिए लिखा।

7. इस किरदार के लिए जिसमें भीतरी कशमकश बहुत है, आपने खुद को कैसे तैयार किया?

विद्या बालन: मुझे लगता है कि सुरेश त्रिवेणी के साथ कई बार पढ़ा और विभिन्न स्तरों पर इस संघर्ष को समझा। एक व्यक्ति, एक माँ, एक बेटी और एक महिला की दुविधा, संघर्ष । इससे मुझे वास्तव में चरित्र और उसके आंतरिक संघर्ष को समझने में मदद मिली। कुछ चीजें थीं जो मेरे लिए कठिन थीं, जैसे एक दृश्य है जो मैंने आयुष के साथ किया था जहां मैं उस पर वापस चिल्ला रही थी। यह अब तक के मेरे सबसे कठिन सीन्स में से एक है, क्योंकि मुझे उससे कुछ क्रूर चीजें कहनी थीं। मैं किसी भी बच्चे से ऐसा नहीं कहना चाहती। ख़ास तौर पर, सूर्या से जो एक बहुत प्यारा बच्चा है, लेकिन मुझे यह करना पड़ा। मैं बहुत नर्वस थी। मैंने सुरेश से कहा भी कि मुझे इसके लिए मदद की ज़रूरत होगी। सूर्या और मैंने पूजा स्वरूप नाम के एक कोच के साथ कुछ वर्कशॉप किए, उन्होंने हमें एक-दूसरे के प्रति विश्वास विकसित करने में मदद की। उसी की वजह से हम वो सीन कर सके।

8. आप हम पांच से जलसा तक की अपनी यात्रा को कैसे बयान करेंगी ?

विद्या बालन: मैंने जितना सोचा था उससे बेहतर, भगवान बहुत दयालु रहे हैं। मैं बहुत खुशकिस्मत महसूस करती हूं।

9. एक कहानी में दो नैतिक दुविधाओं को पैदा करने के लिए आपको किस बात ने प्रेरित किया?

सुरेश त्रिवेणी: मैं वास्तव में नहीं जानता; मैं अपने दिन की शुरुआत ऐसे नहीं करता कि आज मुझे एक नैतिक दुविधा वाली कहानी लिखनी है। मैं एक ऐसी कहानी लिखने की कोशिश करता हूं जो किसी प्रभावपूर्ण घटना का बयां करती हो फिर मैं देखता हूं कि क्या होता है, वो घटना किस तरह डेवेलप होती है।

किरदार तब दिलचस्प होते हैं जब उनके सामने विकल्प हों । जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, किरदारों की नैतिक दुविधाएं स्क्रिप्ट का हिस्सा बन जाती हैं। हमने इस तरह फिल्म को अप्रोच नहीं किया, लेकिन खत्म करने के बाद हम समझ गए कि दुविधाएं हैं।

10. आप अपनी कहानी से क्या कहना चाहते हैं?

सुरेश त्रिवेणी: मेरा काम एक कहानी को बताना है जिससे मैं जुड़ा हुआ हूं। मैं इसकी व्याख्या दर्शकों पर छोड़ता हूं। मेरा काम एक कहानी बताना है और दर्शक इससे क्या निष्कर्ष निकालते हैं यह मेरे वश में नहीं है।

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