मिलिए उन 9 अभिनेता और अभिनेत्रियों से जिनके जोरदार अभिनय ने जीता लोगों का दिल

इस वर्ष जिन अभिनेता और अभिनेत्रियों ने अपनी अद्वितीय प्रतीभा से हमें प्रभावित किया है, उनमें हैं- तिलोत्तमा शोम, प्रतीक गांधी, तापसी पन्नू, मनोज बाजपेयी, शारिब हाशमी, आदिल हुसैन, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हर्षवर्धन राणे और सैयामी खेर।

फोटो: सोशल मीडिया
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सुभाष के झा

कुछ कलाकार- चाहे वे जाने-पहचाने हों या अपनी पहचान बना रहे हैं, अपने सशक्त अभिनय से अपने साधारण से किरदारों में भी जान भर देते हैं। इस वर्ष जिन अभिनेता और अभिनेत्रियों ने अपनी अद्वितीय प्रतीभा से हमें प्रभावित किया है, उनमें हैं- तिलोत्तमा शोम, प्रतीक गांधी, तापसी पन्नू, मनोज बाजपेयी, शारिब हाशमी, आदिल हुसैन, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हर्षवर्धन राणे और सैयामी खेर।

‘सर’ में तिलोत्तमा शोम

‘सर’ फिल्म में तिलोत्तमा शोम ने एक डोमेस्टिक हेल्प की भूमिका निभाई है। जिस घर में वह काम करती हैं, उस घर के मालिक को उनसे प्रेम हो जाता है। इस किरदार में शोम ने संवेदनशीलता और अविश्वास के बीच की पतली रस्सी से निपुणता से गुजरते हुए बहुत ही बेहतरीन अभिनय किया है जो समकालीन कलाकारों की तुलना में एक मास्टर क्लास है। तिलोत्तमा शोम इस फिल्म के हर फ्रेम बहुत ही शानदार लगी हैं। शोम अपने किरदार रत्ना के अंदर की अंधेरी दुनिया और अनिश्चित उम्मीद तथा रोशनी के बीच एक तारत्मय स्थापित कर पाती हैं। रत्ना बिना कोई समझौता किए उस दुनिया से बाहर आना चाहती है। बहुत लंबे समय से मैंने इतना अधिक सुस्पष्ट और सटीक अभिनय नहीं देखा था। उनके एम्पॉलय़र और प्रेमी का किरदार निभाने वाले विवेक गोम्बर लगातार एक कदम पीछे रहकर एक मूक किंतु रोचक सायानुमा अभिनय का प्रदर्शन करते हैं जहां हम उन्हें महसूस कर पाते हैं, बजाय कि उनके दर्दको देखने के।

‘स्कैम 1992’ में प्रतीक गांधी

हंसल मेहता की बायो-सीरिज में हर्षद मेहता का किरदार निभाने से पहले इस कलाकार को गुजरात के बाहर कौन जानता था? वह अपने किरदार में ऐसे हैरतअंगेज तरीके से समाहित होते हैं, मानो उन्होंने स्वयं को ही नकार दिया हो। प्रतीक गांधी ने कड़ी मेहनत से अपना किरदार निभाया है। ‘स्कैम 1992’ में एक घोटालेबाज को महान बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई और न ही पूरे अभिनय में किरदार द्वारा किए गए गलत काम पर कोई उंगली उठाई गई है। प्रतीक आज के बाद हर्षद मेहता के सभी पॉप आर्ट रिप्रजेंटेशन में नजर आएंगे।

‘थप्पड़’ में तापसी पन्नू

मुझे यह तो स्वीकारना पड़ेगा कि वह मेरी पंसदीदा कलाकार हैं। सुशील हैं, परेशान नहीं करतीं, आत्मविश्वास से भरी हुई हैं और अपने किरदारों के साथ घुलमिल जाती हैं और निखर कर आती हैं। ‘थप्पड़’ फिल्म में तापसी पन्नू एक आहत पत्नी की भूमिका को गरिमा और एक ऐसी मार्मिकता के साथ पेश करती हैं कि वह स्वयं को इस किरदार के साथ एकाकार कर देती हैं। तापसी पन्नू ने इस फिल्ममें जो दमदार अभिनय किया है, वह उनकी समकालीन अभिनेत्रियों के लिए एक चुनौती बन गया है। फिल्म में उनकी सास का किरदार निभाने वाली तन्वीआजमी के साथ उनके लंबे- लंबे एकालाप जिनमें वह स्वीकार करती हैं कि वह क्यों एक औरत, पत्नी और व्यक्ति के रूप में नाकामयाब महसूस करती हैं। इनको अवार्ड समारोह में नॉमिनेशन के शो-रील में चलाया जाएगा।


‘भोंसले’ में मनोज बाजपेयी

इस फिल्म में मनोज बाजपेयी का किरदार कड़क किंतु बूढ़े रिटायर्ड पुलिसवाले का है जिसे अपने जीने का कारण दो भाई-बहन की रक्षा में दिखता है। यह चरित्र अपने आप में इतना विशाल और लीक से हटकर है कि मनोज बाजपेयी इसमें अपने दर्द से ओत-प्रोत अदाकारी से कई सारे पैमाने तोड़ते हैं और उनमें नया जीवन भरते हैं। भोंसले एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए वह अपने छोटे-से कमरे में दुख से कराहने के बजाय बाहर निकलकर स्थितियों से खुलेआम मुकाबला करना बेहतर समझता है। जिस प्रकार मनोज बाजपेयी ने यह किरदार निभाया है, वह किसी पैदा किए गए नकली ड्रामा से कहीं ज्यादा ऊपर है और पूरी अदाकारी में कहीं भी जबरदस्ती का कोई नाटकीय बिंदु नहीं दिखता है।

‘दरबान’ में शारिब हाशमी

इस फिल्म में शारिब हाशमी ने एक सामंती परिवार में सीधे-साधे ध्यान रखने वाले व्यक्ति का किरदार निभाया है जिसका सारा जीवन दासता की एक सूची है। हाशमी अपने किरदार में खुद को जिस तन्मयता से डूबो देते हैं, उसे देखकर मुझे ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आशीर्वाद’ में अशोक कुमार की याद आ जाती है। शारिब हाशमी बहुत महान कलाकार हैं लेकिन जिनके भाग्य में छोटी सार्थक फिल्मों में ही अपनी सारी कला निचोड़देना लिखा है जबकि ऐसे कलाकार जिनमें उनकी कला का एक अंश भी नहीं है, वे बॉलीवुड में सितारे बन कर चमक रहे हैं।

‘परीक्षा’ में आदिल हुसैन

आदिल हुसैन को ‘परीक्षा’ में देखने के बाद मैंने उन्हें इस सदी का बलराज साहनी कहा। इस पिक्चर में उनका किरदार सब कुछ लुटा देने वाले एक ऐसे पिता का है जो रिक्शा चलाता है और ईमानदार एवं न्यायप्रिय है। लेकिन अपने बेटे को एक बड़े स्कूल में पढ़ाने के लिए वह चोर बन जाता है। कई स्थानों पर पटकथा की छोटी-मोटी कमजोरियों को भी आदिल अपनी अदाकारी से छुपा देते हैं। अंतिम बार मैंने अगर किसी रिक्शावाले के किरदार को गरीबी के हालात में भी इतना गरिमापूर्ण और जोश से भरा हुआ देखा था, तो वह बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में बलराज साहनी द्वारा निभाया गया था।

‘सीरियस मैन’ में नवाजुद्दीन सिद्दीकी

इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का किरदार एक ऐसे महत्वाकांक्षी पिता का है जो अंदर ही अंदर इतने रोष से भरा है जिसके कारण एक विध्वंसकारी क्लाइमेक्स बन जाता है। एक दृश्यमें जहां वह अपने बेटे के सबसे अच्छे दोस्त को चुप रहने की धमकी देते हैं जो कबूतरों और चिंता के साथ एक छतपर फिल्माया गया है।

‘तैश’ में हर्षवर्धन राणे

हर्षवर्धन राणे बहुत ही उपेक्षित कलाकार हैं। ‘तैश’ फिल्म में उनका किरदार गहरी पीड़ाओं से गुजरता दिखता है। दर्द से भरी इस अदाकारी में ऐसे लगता है जैसे कोई आदमी खुद को हकोड़े मार रहा हो और डर तथा निराशा से छलनी होता हुए शून्य में मिल रहा हो। बहुत ही उम्दा अभिनय।


‘चोक्ड’ में सैयामी खेर

चार वर्ष पहले ‘मिर्जया’ में एक दबी हुई शुरुआत करने के बाद इस वर्ष सैयामी खैर अनुराग कश्यप की फिल्म ‘चोक्ड’ में अपने पूरे रंग में दिखीं। इस फिल्म में कामकाजी वर्ग के लालच के ऊपर एक बहुतही मारक और व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है। सैयामी खेर इस फिल्म की नायक हैं। इसमें सैयामी खेर का किरदार कामकाज के बोझ से लदी कम वेतन प्राप्त करने वाली एक बैंक अकाउंटेंट का है जो एक रात उठती हैं और देखती हैं कि उनके किचन का सिंक बैंक करेंसी से बुरी तरह ‘चोक्ड’ हो गया है। इस किरदार के लिए हमने सैयामी के हाव-भाव, भाषा और प्रस्तुति में बहुत परिवर्तन देखा है। सैयामी अपने इस किरदार में कामकाजी वर्ग के लालच को बहुत ही विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत करती है।

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