‘पद्मावत’ के गीतकार तुराज़ ने कहा, देश में फैली नफरत को सिर्फ मोहब्बत हरा सकती है

25 जनवरी को रिलीज हो रही विवादों में घिरी फिल्म ‘पद्मावत’ के सभी गीत लिखने वाले शायर एएम तुराज ने नवजीवन से एक खास बातचीत में कहा कि कि फिल्म को लेकर हुए विवाद के पीछे सिर्फ राजनीति है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आस मोहम्मद कैफ

अंतरराष्ट्रीय स्तर के उर्दू शायर, गीतकार, पटकथा लेखक और निर्देशक एएम तुराज मुजफ्फरनगर जनपद में मीरापुर थाना क्षेत्र के एक गुमनाम से गांव सम्भलहेड़ा के रहने वाले हैं। शोहरत हासिल करने के मकसद से करीब डेढ़ दशक पहले मुंबई गए तुराज आज बॉलीवुड के प्रतिभाशाली लेखकों में गिने जाते हैं। वह अब तक 34 फिल्मों में गाने लिख चुके हैं, जिनमें से कई फिल्में सुपरहिट हुई हैं। हाल ही में अपने गांव आए इस प्रतिभाशाली शायर से ‘नवजीवन’ के लिए आस मोहम्मद कैफ ने बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश।

‘पद्मावती’ अब ‘पद्मावत’ होकर आखिरकार रिलीज हो रही है। इसको लेकर इतना विवाद क्यों हुआ?

आप फिल्म देखेंगे तो पता चलेगा इसमें ऐसा कुछ भी विवादित नहीं है। भंसाली साहब ने बहुत खूबसूरत फिल्म बनाई है। वह एक महान फिल्ममेकर हैं। फिल्म के विरोध के पीछे सिर्फ राजनीति है।

फिल्म का गीत ‘घूमर’ भी काफी विवादों में रहा है, इसे आपने ही लिखा है...

जी, मैंने ही वह गाना लिखा है। भंसाली साहब का शुक्रिया, उन्होंने मुझे इस लायक समझा। सिर्फ यही नहीं, फिल्म के सभी गीत मैंने ही लिखे हैं।

भंसाली के साथ आपकी काफी नजदीकी है। गुजारिश’ ’, बाजीराव मस्तानी और अब पद्मावत’’...

संजय लीला भंसाली बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन निर्देशक हैं। उनकी प्रतिभा कमाल की है और उनके पास प्रतिभा पहचानने की काबिलियत भी कमाल की है। फिल्म ‘सांवरिया’ में मैं कोई गाना नहीं लिख पाया, लेकिन ‘गुजारिश’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ में वह कमी पूरी हो गई।

गुजारिश में आपने 2 गीत लिखे, बाजीराव मस्तानी में 4 और अब पद्मावती में 9...

हां, भंसाली जी का मेरे ऊपर भरोसा बढ़ गया है। गुजारिश का 'ये तेरा जिक्र है, जैसे इत्र है.. जब जब करता हूं, महकता हूं’ लिखने के बाद उनका मेरी ओर रुझान बढ़ा। फिर, बाजीराव मस्तानी का हर तरफ छा जाने वाला अवार्ड से सम्मानित गीत 'तुझे याद कर लिया है आयत की तरह' के बाद उनका भरोसा और मजबूत हुआ। ‘पद्मावत’ का हिस्सा बनना एक गौरव की बात है।

अब तक 34 फिल्मों में सैकड़ों गाने आप लिख चुके हैं। आपने कुछ फिल्मों की कहानी भी लिखी है। लेकिन वह कौन सा एक गीत है जो आपको सबसे गहरा लगता है?

बाजीराव मस्तानी का 'आयत की तरह'। मैं खुद नहीं जानता कि यह कैसे लिखा गया। आप दो लाइन देखिये ‘तुझे याद कर लिया है आयत की तरह, कायम तू हो गई है रवायत की तरह ’। यह सब अल्लाह का करम है।

आप मुशायरों का भी सबसे महंगा चेहरा हैं...

महंगा? नहीं, ऐसी बात नहीं है। बस लोगों की मोहब्बत और थोड़ा फिल्मी दुनिया का असर है। और आजकल विदेशों में भी मुशायरे पढ़ रहा हूं, इसलिए लोग कहते होंगे। वैसे मैं तो एक किसान का बेटा हूं। गांव का आदमी हूं। अभी कुछ दिन पहले जावेद अख्तर साहब के साथ अमेरिका गया था। वहां लोगो की मुहब्बत ने अपनेपन का अहसास कराया। पैसा सिर्फ जरूरत की चीज है, उससे ज्यादा नहीं।

आजकल मुशायरों की लोकप्रियता में कमी आ गयी है, इस पर आपका क्या कहना है?

हां, आजकल लोग तमाशा ज्यादा कर रहे हैं। मुशायरों के स्तर में गिरावट आयी है। अच्छी शायरी की जगह भीड़ को पसंद आने वाली गैर-जिमेदाराना शायरी हो रही है। हमारी समाज के प्रति एक नैतिक जिम्मेदारी है और हमें इसका एहसास हमेशा होना चाहिए। शायरों को भी समझना चाहिए कि सिर्फ वाहवाही के चक्कर में फिजा में जहर ना घोल दें, इसलिए मोहब्बत पर बात करें।

आज हर तरफ नफरत का बोलबाला है, हर जगह की फिजा जहरीली दिखाई दे रही है, आपको क्या लगता है?

बिल्कुल, माहौल में बदलाव आया है, सांप्रदायिकता तेजी से बढ़ गयी है, बल्कि बहुत ज्यादा हो गई है। मगर इसके लिए सिर्फ बहुसंख्यक समुदाय को दोष देना ठीक नहीं है, अल्पसंख्यकों के कथित रहनुमाओं ने भी यह हालात पैदा किये हैं। बहुसंख्यकों की आबादी चार गुना ज्यादा है, अब अगर वे 25% भी साम्प्रदयिक होते हैं तो बराबर हो जाते हैं। मुस्लिम नेताओं की सांप्रदायिक टिप्पणियों ने हिन्दू तबके को सांप्रदायिक होने का अवसर दिया है। हिंदुस्तान के सारे हिंदू सांप्रदायिक नहीं हैं। अब जैसे मैंने 34 फिल्में की हैं और सभी के निर्देशक और निर्माता हिंदू ही हैं। वैसे भी बॉलीवुड में हिंदू-मुस्लिम वाला मामला नहीं है।

इस नफरत को खत्म करने का तरीका क्या है?

नफरत को सिर्फ मोहब्बत हरा सकती है। सबसे पहले तो मुस्लिम नेताओं को बहुत सोच-समझकर बोलना होगा। उन्हें ऐसी किसी भी बात से परहेज करना होगा, जिससे ध्रुवीकरण होता है। भगवा सरकार सिर्फ इसी बदजुबानी की देन है। हम लोगों को बेइंतहा शिद्दत से हिंदू भाइयों के साथ अच्छे संबंध कायम करने होंगे। मोहब्बत साझा की जाए तो मोहब्बत पैदा होगी। आजकल की घटनाएं नफरतों की देन हैं और हालात वाकई मुश्किल हो चुके हैं। जैसा मैं कहता हूं, ‘जिंदगी नाकामियो के नाम हो, इससे पहले कोई अच्छा काम हो...’।

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