सरकार विरोधी रुख का दिखावा कर गांवों के ध्रुवीकरण की तैयारी में संघ

शहरों में हवा का रुख बेहद खिलाफ है इसलिए संघ ने गांवों का रुख करने का फैसला किया है ताकि भोले किसानों और युवाओं को गुमराह कर उनके बीच हिंदुत्व का कार्ड खेला जाए

फोटो : IANS
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आईएएनएस के लिए संदीप पौराणिक

देश में जारी सत्ता विरोधी लहर से संघ परेशान है, और उसने जानबूझकर ऐसे बयान और संदेश देना शुरु कर दिए हैं जिससे लगे कि आरएसएस सरकार से नाराज है और लोग भ्रमित होकर संघ के साथ जुड़ें। जबकि यह तथ्य है कि संघ और बीजेपी अलग नहीं हैं, क्योंकि बीजेपी का जन्म संघ की कोख से ही हुआ है। शहरों में हवा का रुख बेहद खिलाफ है इसलिए संघ ने गांवों का रुख करने का फैसला किया है, ताकि गांव के भोले किसानों और नौजवानों को गुमराह कर उनके बीच हिंदुत्व का कार्ड खेला जाए और ध्रुवीकरण के सहारे चुनावी मकसद हासिल किया जाए।

दरअसल, बेशुमार बढ़ती बेरोजगारी, बुरे हाल में अर्थव्यवस्था, नोटबंदी के ताजे जख्म पर जीएसटी का नमक, किसानों और कृषि क्षेत्र की दुर्दशा, ये वह सारे तथ्य हैं जिनसे सत्तारुढ़ बीजेपी, उसके मुखौटे नरेंद्र मोदी और इनका मातृ संगठन आरएसएस बुरी तरह घबरा गया है। बेरोजगारी, जीएसटी और डावांडोल हुई अर्थव्यवस्था ने शहरों के मध्यम और निम्न वर्ग की कमर तोड़ दी है, और इस वर्ग का गुस्सा अब खुलकर सामने आने लगा है। सोशल मीडिया से लेकर बड़े अर्थशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों ने तर्कों के साथ देश की खराब होती हालत का आइना दिखाया है और इसका सबसे ज्यादा असर शहरी लोगों पर हो रहा है।

इसी से निपटने के लिए विकास की राह छोड़, अब आरएसएस ने गांवों का रुख करने का फैसला किया है, ताकि 2019 के लिए जमीन तैयार की जा सके। अगले लोकसभा चुनाव में करीब डेढ़ साल है और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव अब सिर पर हैं, लेकिन बीजेपी के खिलाफ जारी असंतोष साफ नजर आ रहा है। ऐसे में संघ ने बीजेपी की जीत के लिए नए सिरे से रणनीति बनाकर जमावट शुरू करने की कोशिशें शुरु कर दी हैं।

भोपाल में हाल ही में हुई संघ की तीन दिन की बैठक में जब एक सुर से यह बात सामने आई कि किसान, नौजवान और कारोबारियों से लेकर राज्यों के कर्मचारियों तक में आक्रोश है, तो संघ के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगीं।

सूत्रों के अनुसार संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की इस बैठक में यह बात भी खुलकर सामने आई कि शहरों में लोगों के आक्रोश और असंतोष को देखते हुए उनके बीच जाना ठीक नहीं होगा। इसीलिए रणनीति यह बनाई गई कि अब गांवों और कस्बाई इलाकों का रुख किया जाए। इसके लिए गांवों और कस्बों में शाखाएं लगाने के साथ ही संघ के सहयोगी या आनुषांगिक संगठनों को सक्रिय करने का फैसला किया गया।

इस बैठक में तय किया गया कि किसानों से सीधे संवाद किया जाए ताकि सरकार के प्रति उनकी नाराजगी को कुछ कम किया जा सके। साथ ही किसानों को उनकी फसलों का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए सरकार पर भी दबाव बनाने का काम किया जाए, या फिर कम से कम ऐसा संदेश दिया जाए।

संघ की इस रणनीति को आरएसएस के सर कार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने भी स्वीकारा है कि, “संघ अब ग्रामीण इलाकों पर विशेष ध्यान देगा, क्योंकि वहां सामाजिक बदलाव बड़ी चुनौती है। चाहे वह हिंदुत्व को लेकर हो या फिर सामाजिक संदर्भ के लिए, वहां के युवाओं को साथ लिया जाएगा।” उन्होंने कहा कि, "देश की 60 फीसदी आबादी गांवों में बसती है। वहां के किसान और नौजवान संघ से जुड़ें, इसकी कोशिश तेज होगी।"

संघ की भोपाल बैठक से निकले संदेश पर वरिष्ठ पत्रकार भारत शर्मा का कहना है, "संघ वास्तव में बीजेपी के लिए काम करता है, उसके कई मुखौटे हैं। जैसे- किसान संघ, विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ आदि। इनके जरिए संघ सरकार के खिलाफ भी आवाज उठवाता रहता है, ताकि आम लोगों को लगे कि संघ के संगठन भी नीतियों का विरोध कर रहे हैं।"

शर्मा आगे कहते हैं, "संघ अपने को सामाजिक और गैर राजनीतिक संगठन बताता है, मगर ऐसा है नहीं। वह तो पर्दे के पीछे से सारा खेल खेलता है। जब चुनाव करीब आते हैं, संघ अपनी तरह से जमीनी स्तर पर काम शुरू कर देता है। उसे पता है कि असंतोष बढ़ रहा है, इसीलिए उसके अनुषांगिक संगठन सरकार के खिलाफ आवाज उठाकर जनता में भ्रम पैदा करते हैं।"

वहीं कांग्रेस नेता व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है, "बीजेपी 2014 के चुनाव में यूपीए की सत्ता के खिलाफ बने माहौल में जीत गई, मगर अब उसकी हकीकत सामने आने लगी है, उसके खिलाफ माहौल बन रहा है, जिससे वह डरी हुई है। ऐसे में वह समाज को बांटकर चुनाव जीता चाहती है। इसके लिए उसके पास संघ जैसा संगठन है। संघ अभी शहरी इलाकों में हिंदुत्व के नाम पर समाज को बांटकर ध्रुवीकरण करता रहा है, अब वह हिंदुत्व के नाम पर गांव में भी ध्रुवीकरण चाहता है।"

यहां बताना लाजिमी होगा कि संघ ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने तीन मुद्दों- राममंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता से पीछे नहीं हटा है। इस मामले में बीजेपी की प्रदेश इकाई के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने कहा, "संघ 1925 से समाज के लिए काम कर रहा है, उसका शहरी और ग्रामीण इलाकों में अपनी स्थापना से काम चल रहा है। देश की 70 फीसदी आबादी गांव में रहती है, शहरी लोग विचारधारा को जल्दी समझ लेते हैं। गांव तक विस्तार करने में वक्त लगना स्वाभाविक है। इस वजह से संघ ने ग्रामीण क्षेत्र में विस्तार की योजना बनाई होगी। संघ को बेवजह राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए।"

दरअसल संघ की इस बैठक में जीएसटी, नोटबंदी, किसानों, व्यापारियों, युवाओं की समस्याओं पर देशभर से आए करीब 350 प्रतिनिधियों ने फीडबैक दिया। इसके बाद ही संघ की चिंता बढ़ गई और उसे नई रणनीति पर काम करने को मजबूर होना पड़ा। संघ जानता है कि वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव, बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर के कारण जीता था, और इस समय देश में लगभग वैसी ही सत्ता विरोधी लहर चल पड़ी है। इसलिए संघ सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व कार्ड खेलकर ही जीत पक्की करना चाहता है।

(इस लेख को भाषा की शुद्धता और सिलसिलेवार पेश करने के लिए संपादित किया गया है)

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