मोदी जी, रामायण का लंका कांड याद कीजिए, भगवान राम और विभीषण का संवाद याद कीजिए, उनकी सीख याद कीजिए!

महज एक राज्य का चुनाव जीतने के लिए बीजेपी कुछ भी करने को आतुर है। प्रधानमंत्री विमर्श की सारी मर्यादाओं का न सिर्फ उल्लंघन कर रहें है, बल्कि शालीनता और सौम्यता से एक किस्म की शत्रुता भी है।

फोटो: सोशल मीडिया
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तसलीम खान

गुजरात चुनाव में राजनीतिक विमर्श का स्तर जहां पहुंच गया है, उससे संकेत मिलते हैं कि महज एक राज्य का चुनाव जीतने के लिए बीजेपी क्या कुछ नहीं करने को आतुर है। सबसे चिंता की बात तो यह है कि इसकी अगुवाई कोई और नहीं देश के प्रधानमंत्री कर रहे हैं। अपने भाषणों में वे जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह विमर्श की सारी मर्यादाओं का न सिर्फ उल्लंघन है, बल्कि शालीनता और सौम्यता से एक किस्म की शत्रुता भी है।

लेकिन स्थिति अचानक यहां तक नहीं पहुंची है। इसकी जड़ें संघ की उस विचारधारा से जुड़ी हैं जिसकी परिणति आज हम देख रहे हैं। चिंता की बात यह है कि जिन भगवान राम के नाम पर यह सब किया जा रहा है, उनको ही बीजेपी समझने को तैयार नहीं है।

मैंने गोस्वामी तुलसीदास कृत रामायण अपने बचपन में खूब सुनी है। इसके लंका कांड ने मुझे सदा बेहद आकर्षित किया है, क्योंकि इसमें व्यक्ति और सत्ता पर बैठे राजनेता के चरित्र का सटीक वर्णन सीधे भगवान राम के श्रीमुख से सुनाई देता है।

लंका कांड के 80वें दोहे में बताया जाता है कि राम और रावण के बीच संग्राम शुरू होने वाला है। सामने रावण की सुसज्जित सेना है और दूसरी तरफ संसाधन रहित भगवान राम की सेना। यह दृश्य देखकर विभीषण इस बात से आशंकित हो उठते हैं कि इतनी शक्तिशाली सेना का मुकाबला कैसे किया जाएगा। विभीषण अपनी शंका व्यक्त करते हैं:

रावन रथी विरथ रघुवीरा।

देखि विभीषण भयउ अधीरा॥

अधिक प्रीति मन भा संदेहा ।

बंदि चरन कह सहित सनेहा ।।

विभीषण का यह कथ्य आज के उदारवादी समाज और बुद्धिजीवियों की बेचैनी को दर्शाता है, जो मोदीमय मीडिया के प्रचार तंत्र से ओत-प्रोत समाचारों की बाढ़ से चिंतित है। इस प्रचार तंत्र ने मोदी और उनकी बीजेपी को अजेय के तौर पर पेश किया है। साथ ही यह भी सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि विपक्ष उनके सामने शक्तिविहीन और संसाधन रहित है। इस मीडिया तंत्र ने मोदी को एक ऐसे रथ पर सवार कर दिया है, जो बिना किसी बाधा के अग्रसर है, जिसमें हर प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हैं। लेकिन मोदी और बीजेपी इन अस्त्रों को जिस रूप में सामने ला रहे हैं, उसने मर्यादा, शालीनता और सौम्यता की सारी सीमाओँ का उल्लंघन किया है।

जिस सत्ता रूपी रथ पर सवार मोदी किसी को कुछ नहीं समझते, शायद वे भूल जाते हैं कि इस रथ की असली परिभाषा क्या है। रामायण के लंका कांड में विभीषण की अधीरता और बेचैनी का जबाव जब भगवान श्रीराम देते हैं, तो वे रथ की व्याख्या करते हैं। विभीषण का प्रश्न था:

नाथ न रथ नहीं तन पग त्राना।

केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।

विभीषण यहां कह रहे हैं कि आपके पास रथ तक नहीं है, जबकि सामने शक्तिशाली दुश्मन है, कैसे मुकाबला किया जाएगा। यही स्थिति देश के उदारवादी समुदाय की है। उसे भी लगता है कि मोदी के शक्तिशाली तंत्र के सामने विपक्ष बेबस सा है। विभीषण के इस प्रश्न का जवाब भगवान राम उन्हें सखा कहकर संबोधित करते हुए देते हैं:

सुनहु सखा कह कृपानिधाना।

जेहिं जय होई सो स्यंदन आना।।

राम के श्रीमुख से सखा शब्द सुनकर ही विभीषण की सारी चिंताएं दूर हो जाती है। वे विभीषण को झिड़कते नहीं, ये जानने के बावजूद कि उनकी जीत निश्चित है, वे विभीषण की बात ध्यान से सुनते हैं। भगवान श्रीराम रथ को परिभाषित करते हैं:

सौरज धीरज तेहि रथ चाका।

सत्य सील दृढ़ ध्वज पताका।।

अर्थात धीरज ही रथ के चक्के यानी पहिए हैं, और सत्य और शील, रथ पर लहराने वाली पताका है।

बल बिबेक दम परहित घोरे।

छमा कृपा समता रजु जोरे।।

अर्थात विवेक शक्ति है और क्षमा, कृपा और समानता लाती है।

त्रेता युग के इस वार्तालाप से निकलकर जब हम वर्तमान में आते हैं, तो पता चलता है कि सत्ता के शिखर पर बैठा व्यक्ति आलोचना तो दूर की बात, किसी महत्वपूर्ण विषय या स्थिति पर दूसरों की चिंता तक को सहन नहीं कर पाता है। बीजेपी के कई बड़े नेता खुलेआम कहते रहे हैं कि वर्तमान केंद्र सरकार मात्र ढाई लोग ही चला रहे हैं, और इसमें किसी और की बात सुनने की गुंजाइश ही नहीं है। ऐसे में यदि किसी ने सरकार की किसी नीति, निर्णय और नियमों को लेकर शंका जताई भी, तो उसे झिड़क कर खामोश करा दिया जाता है। सत्ता में बैठे यह ढाई लोग उस रथ पर सवार हैं, जिसकी परिभाषा उस रथ के उलट है, जिसका वर्णन भगवान राम के श्रीमुख से हुआ है।

जिस धीरज को श्रीराम, रथ के चक्के बता रहे हैं, वह तो केंद्र की मोदी सरकार के पास है ही नहीं। एक-एक कर संस्थानों को धराशायी करना, असहमति की आवाज़ों को खामोश करना, असहिष्णुता के दानव को खुला छोड़ देना, यह सब कोई भी ऐसी सरकार नहीं करती, जिसके पास धीरज होता है। भगवान राम इस संदर्भ में आगे कहते हैं:

ईस भजन सारथी सुजाना ।

बिरति चर्म संतोष कृपाना ।।

ईश्वर का ध्यान करना और उसका स्मरण करना, रथ के सारथी के समान हैं। यहां भगवान राम ईश्वर की बात कर रहे हैं, न कि किसी विशेष भगवान की। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने अपने रथ का जिसे सारथी बनाया है, उसका ईश्वर से दूर-दूर का वास्ता नजर नहीं आता। भगवान राम युद्ध में प्रयोग होने वाले अस्त्र शस्त्रों की व्याख्या भी करते हैं। वे कहते हैं:

दान परसु बुद्धि सक्ति प्रचंडा ।

बर बिग्यान कठिन कोदंडा ।।

यानी युद्ध करने के लिए इस्तेमाल होना वाला फरसा दरअसल दान है और बुद्धि प्रचंड शक्ति है, तो श्रेष्ठ विज्ञान, सुदृढ़ धनुष। लेकिन केंद्र सरकार, दान तो दूर की बात, मजदूरों को मनरेगा के तहत दिए जाने वाले भत्ते में भी कटौती करने पर आमादा है। एलपीजी सब्सिडी खत्म कर दी गई और तमाम कल्याणकारी योजनाओं को रद्द कर दिया गया। भगवान श्रीराम जिस विज्ञान को श्रेष्ठ बता रहे हैं, उसी को बीजेपी नेता झुठलाने पर तुले हुए हैं। आपको याद होगा कि हाल ही में असम के बीजेपी नेता ने कहा था कि कैंसर जैसी बीमारियां पिछले जन्मों और कर्मों के पापों के कारण होती हैं।

विभीषण की शंकाओं को दूर करते हुए भगवान श्रीराम उस तरकश को भी परिभाषित करते हैं, जिसमें तीर रखे जाते हैं। वे कहते हैं:

अमल अचल मन त्रोन समाना ।

सम जम नियम सिलीमुख नाना ।।

यहां श्रीराम कह रहे हैं कि मन की स्वच्छता और अडिगता तरकश हैं, जबकि शांति, आत्मानुशासन और नियम अन्य अस्त्र। लेकिन गुजरात में जिस शाब्दिक और देह भाषा का प्रदर्शन प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के नेता कर रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि इनके मन में कितनी कटुता, और दूसरे दलों के लिए घृणा भरी हुई है। इनके भाषणों से वैमनस्य और ध्रुवीकरण करने की बू आती है और दूर-दूर तक इनका संबंध उन शब्दों से नहीं है जिसका वर्णन स्वंय भगवान श्रीराम करते हैं।

कवच अभेद बिप्र गुर पूजा ।

एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।

यहां भगवान श्रीराम कह रहे हैं कि समाज में जो आयु और ज्ञान की दृष्टि से पूज्यनीय जन हैं, उनके शुभ संदेश और आशीर्वाद इस रथ पर सवार योद्धा के वास्तविक रक्षा-कवच हैं। यह सारी व्यवस्था विजय को सुनिश्चित करने वाली मूल्य-व्यवस्था है। लेकिन क्या प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी समाज के उन लोगों की बातों को सुनती है जो न सिर्फ आयु, बल्कि ज्ञान में भी श्रेष्ठ और पूज्यनीय हैं। सर्वविदित है कि जिस अर्थशास्त्री ने पूरी दुनिया को 2008 के आर्थिक संकट के प्रति सचेत किया था, उसे आरबीआई गवर्नर के पद से हटा दिया गया। जिस अर्थशास्त्री का लोहा पूरी दुनिया मानती है, उन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संसद में मजाक उड़ाया गया। नोटबंदी और जीएसटी पर जिन मनमोहन सिंह की भविष्यवाणी शत प्रतिशत सत्य साबित हुई, उन पर पाकिस्तान के साथ साजिश कर गुजरात में बीजेपी को हराने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे हैं प्रधानमंत्री।

जिस तरह गुजरात चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी और लगभग पूरी केंद्र सरकार और कई राज्यों के मुख्यमंत्री कामकाज छोड़कर सिर्फ एक राज्य का चुनाव जीतने के लिए जुटे हुए हैं, उससे यह तो स्पष्ट हो ही गया कि इनका लक्ष्य मात्र चुनाव जीतना है, न कि किसी किस्म का जीवन मूल्य या शासन का आदर्श स्थापित करना। जिस सत्ता रूपी रथ पर सवार प्रधानमंत्री अहंकार में डूबकर राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ रहे हैं, वह उस परिभाषा के एकदम विपरीत है, जो विभीषण से संवाद में भगवान श्रीराम बताते हैं। भगवान राम कहते हैं:

सखा धर्ममय अर रथ जाकें ।

जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ।।

महा अजय संसार रिपु जीति सकई सो बीर ।

दारें अर रथ होई दृढ़ सुनहा सखा मतिधीर ।।

यानी इस रथ पर जो योद्धा सवार है, वह अपने और पराए के अंतर से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धता के बोध से भरा होता है। हजार बार दोहराए गए झूठ के भरोसे विश्व युद्ध भले ही जीता जा सकता हो, मानव बने रहने का युद्ध मर्यादा के सहारे ही जीता जाता है। झूठ के सहारे जीते गए युद्धों ने मनुष्य को हिंसक पशु बनाया है और धरती को नरक।

लेकिन इन दोहों की वास्तविक व्याख्या को प्रधानमंत्री क्या समझेंगे, जो अपने भाषणों में एक के बाद एक झूठ का इस्तेमाल करते हैं, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। जो सिर्फ मैं-मैं और मैं में ही विश्वास करते हैं, और पराए यानी दूसरे के विषय में विषैली बातें करते हैं।

याद करना होगा कि 80 के दशक में जब टोयोटा कंपनी के बने वाहन को रथ बताकर लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की यात्रा शुरू की थी, तो उसका परिणाम क्या हुआ था। जिस कथित धर्म रथ पर सवार होकर उन्होंने देश में रामराज्य की स्थापना का सपना दिखाया था, उस सपने ने कैसे देश के सांप्रदायिक सौहार्द्र को नष्ट किया था। कैसे सारे नियमों को ताक पर रखकर बाबरी विध्वंस को अंजाम दिया गया था। कैसे उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने राजधर्म का पालन न करते हुए लोकतांत्रित संस्थाओं को तहस-नहस किया था।

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