नीतीश सरकार की नाकामियों का एक और नमूना, बाढ़ पीड़ितों की 'प्लेटफार्म' पर कट रही जिंदगी

गोपालगंज जिले के बरौली प्रखंड के देवपुर गांव के रहने वाले मुकेश कुमार का कच्चा मकान गंडक नदी की तेजधार में भरभरा कर गिर गया। इनके रहने के लिए अब घर नहीं है। अब तो ये रतनसराय रेलवे स्टेशन के प्लेटाफॉर्म पर शरण लिए हुए हैं।

फोटो: IANS
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मनोज पाठक, IANS

गोपालगंज जिले के बरौली प्रखंड के देवपुर गांव के रहने वाले मुकेश कुमार का कच्चा मकान गंडक नदी की तेजधार में भरभरा कर गिर गया। इनके रहने के लिए अब घर नहीं है। अब तो ये रतनसराय रेलवे स्टेशन के प्लेटाफॉर्म पर शरण लिए हुए हैं। इस साल कच्चे मकान की कौन कहे, पुराने पक्के मकान भी गंडक के तेज बहाव को नहीं झेल सके।

थाना रोड निवासी मनोज गिरि के मकान का एक हिस्सा गिर पड़ा है। मनोज अब अन्यत्र शरण लिए हुए हैं। वैसे, यह स्थिति केवल इन लोगों की ही नहीं है। कई ऐसे लोग हैं, जिनके घर या तो बाढ़ के पानी में गिर गए हैं या गांव जलमग्न हैं, वे सरकारी भवनों या रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर शरण लिए हुए हैं।

बरौली प्रखंड के प्यारेपुर, सिसई, नवादा, देवापुर सहित कई गांव बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। कई बाढ़ पीड़ितों को बाढ़ तथा बारिश के दौरान टूटे और क्षतिग्रस्त घरों को अब फिर खड़ा करने की चिंता है तो कई पीड़ितों को फि घर जाकर गृहस्थी बसाने की चिंता है। बाढ़ से घिरे गांव व विस्थापित परिवारों के सामने गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है।

प्लेटफॉर्म पर जिंदगी गुजार रहे बाढ़ पीड़ितों को शौचालय, पेयजल की समस्या का सामना तो करना ही पड़ रहा है, इन्हें भर पेट भोजन नसीब नहीं हो रहा है। बरौली प्रखंड के सिसई गांव के रहने वाले शिवजी ठाकुर कहते हैं कि बाढ़ से पूरा गांव बर्बाद हो गया, अब तक कहीं से कुछ राहत नहीं मिली है।

उन्होंने कहा, "हमलोग प्लेटफॉर्म पर परिवार के साथ शरण लिए हुए हैं, लेकिन यहां शौचालय की व्यवस्था नहीं है, पेयजल की समस्या है। सामुदायिक किचन चलाया जा रहा है, लेकिन वह नाकाफी है।"


गांव छोड़कर विस्थापित की जिंदगी गुजार रहीं बाढ़ पीड़ित सुनीता देवी व आशा देवी कहती हैं, "बाढ़ के पानी में सब कुछ बर्बाद हो गया है। घर में कुछ नहीं बचा है। विस्थापित होकर 25 जुलाई से बांध पर शरण लिए हुए हैं। बच्चों के लिए खाना बनाने के बाद हम मवेशी के लिए चारे के जुगाड़ में लग जाते हैं। चारों ओर तबाही है। गांव तो पूरी तरह डूब चुका है। सबकुछ बर्बाद हो चुका है। अब आगे की गृहस्थी कैसे चलेगी भगवान ही जानें।"

बाढ़ पीड़ितों का तो यहां तक कहना है कि उन्होंने खुद तिरपाल टांगकर झोपड़ी बनाई है। इन्हें प्रशासन की ओर से तिरपाल तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। इधर, कोरोना काल में बाढ़ पीड़ितों के लिए 'कोरोना का भय' पुरानी बात हो गई है। इन स्थानों पर प्रतिदिन, प्रतिक्षण सोशल डिस्टेंसिंग का नियम टूटा रहा है। गोपालगंज आपदा विभाग के प्रभारी शम्स जावेद ने कहा कि सरकार से पॉलीथिन की मांग की गई है। उन्होंने बताया कि बाढ़ पीड़ितों के लिए सामुदायिक किचेन खोले गए हैं। साथ ही कोरोना जांच के लिए 136 लोगों के नमूने लिए गए हैं।

वैसे तो राज्य के 16 जिलों की 63 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है, लेकिन गोपालंगज जिले के पांच प्रखंडों, 61 पंचायतों की दो लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित है। इस जिले में 11 राहत शिविर चल रहे हैं तथा 253 सामुदायिक किचेन चल रहे हैं।

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