तनातनी के बीच सरकार ने दी सफाई, रिजर्व बैंक की स्वायत्ता जरूरी, लेकिन पटेल के इस्तीफे की खबरों ने जोर पकड़ा

आरबीआई और केंद्र सरकार का झगड़ा जब खुलकर सड़क पर आ गया और बात हाथ से निकलने लगी तो सरकार ने सफाई दी है कि रिजर्व बैंक की स्वायत्ता बेहद जरूरी है और सरकारों ने हमेशा इसका सम्मान किया है। लेकिन इसी बीच यह खबर भी जोर पकड़ रही है कि रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं।

फोटो : Getty Images
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नवजीवन डेस्क

एक के बाद एक स्वायत्त संस्थाओं पर हमले करती जा रही केंद्र की मोदी सरकार की रिजर्व बैंक में दखलंदाज़ी से दोनों के बीच मतभेद गंभीर स्थिति में पहुंच गए हैं। खबरें जोर पकड़ने लगी है कि सरकारी की लगातार दखलंदाज़ी और सूत्रों की मानें तो धमकी के बाद गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा तक दे सकते हैं।

ऐसे में सरकार की तरफ से पहली बार रिजर्व बैंक मामले पर सफाई आई है। वित्त मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है कि, “केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता आरबीआई एक्ट के दायरे में आवश्यक और सरकार की जरूरत है। भारत में सरकारों ने इसका सम्मान किया है। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ही, अपने कामकाज में जनहित और भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए काम करती रही हैं। इसके लिए सरकार और बैंक के बीच समय-समय पर कई मुद्दों पर सलाह-मशविरा होता रहता है। जो भी अंतिम निर्णय होते हैं सिर्फ वही सामने लाए जाते हैं। इस तरह के सलाह-मशविरे में सरकार कई मुद्दों पर अपना आंकलन सामने रखती है और उसके संभावित हल का सुझाव देती है। सरकार आगे भी ऐसा ही करती रहेगी।”

तनातनी के बीच सरकार ने दी सफाई, रिजर्व बैंक की स्वायत्ता जरूरी, लेकिन  पटेल के इस्तीफे की खबरों ने जोर पकड़ा

दरअसल पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच तकरार की खबरें सुर्खियां बनी हुई हैं। अब तो खबरें आ रही हैं कि रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे की नौबत तक आ सकती है। खबरों में मतभेदों की जो बातें सामने आई हैं उसकी मुख्य वजह यह है कि सरकार रिजर्व बैंक की धारा 7 लागू करने पर विचार कर रही है। इस धारा के तहत केंद्र सरकार आरबीआई के गवर्नर को सीधे तौर पर आम जनता से जुड़े मामलों में दिशा-निर्देश दे सकती है। हालांकि, यह एक तथ्य है कि इस धारा का आजादी के बाद से अब तक इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसी बात से स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मतभेद विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुके हैं इसकी भनक पिछले दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य और गवर्नर उर्जित पटेल के बयानों से भी मिल रही थी। मंगलवार को ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने रिजर्व बैंक की तीखी आलोचना करते हुए कहा था कि आरबीआई बड़े पैमाने पर कर्ज देने वाले बैंकों पर अंकुश लगाने में असफल रहा है। जेटली ने सार्वजनिक रूप से एनपीए समस्या के लिए रिजर्व बैंक को जिम्मेदार ठहराया था। सरकारी सूत्रों के हवाले से खबरें यह भी सामने आईं कि पिछले कुछ महीनों में समय-समय पर कई मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक को पत्र भी भेजे हैं। कहा जा रहा है कि इन पत्रों को धारा 7 के तहत अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए भेजा गया, लेकिन औपचारिक रूप से इसे स्वीकार नहीं किया गया है।

लेकिन, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की टिप्पणी एक तरह से इस बात को साबित करती है। शुक्रवार को उन्होंने कहा था कि रिजर्व बैंक की आजादी की उपेक्षा करना खतरनाक हो सकता है। खुद गवर्नर उर्जित पटेल ने भी रिजर्व बैंक की स्वायतत्ता पर हमले को अवांछित करार दिया था।

सरकार ने बजाहिर तो केंद्र और रिजर्व बैंक के बीच भड़की आग पर बयान जारी कर ठंडा पानी डालने की कोशिश की है, लेकिन यहां से मामला सुलझता है या फिर तकरार को बढ़ता देख सरकार औपचारिक रूप से धारा 7 लागू करने का ऐतिहासिक फैसला लेती है। कहा जा रहा है कि सरकार अगर ऐसा करती है तो उर्जित पटेल के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा। ऐसी स्थिति में फिलहाल यही कहा जा सकता है कि आने वाले दिन काफी नाटकीय और उलटफेर भरे हो सकते हैं।

गौरतलब है कि केंद्र में मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद चार साल के कार्यकाल में तीन बड़े अधिकारी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें अरविंद सुब्रमण्यम, अरविंद पनगढ़िया और रघुराम राजन शामिल हैं। सुब्रमण्यम ने मुख्य आर्थिक सलाहकार पद से करीब चार वर्ष के बाद इस्तीफा दिया है। उन्होंने पद छोड़ने की वजह पारिवारिक प्रतिबद्धताएं बताई हैं। हालांकि वर्ष 2014 में उनकी नियुक्ति तीन वर्षों के लिये की गई थी, लेकिन 2017 में कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दे दिया गया था।

इनके अलावा अरविंद पनगढ़िया ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से 31 अगस्त को इस्तीफा दे दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग का गठन किया था, तब पनगढ़िया को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए उपाध्यक्ष चुना गया था।

उनसे पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर रहे रघुराम राजन ने इस्तीफा दे दिया था। राजन भारत आने से पहले शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में फाइनेंस के प्रोफेसर थे। साथ ही वे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में मुख्य अर्थशास्त्री भी रह चुके हैं। जून 2016 में राजन ने रिजर्व बैंक कर्मचारियों को एक पत्र लिखकर अपना कार्यकाल समाप्त होने का ऐलान किया

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