मनरेगा के 20 साल: कांग्रेस का मोदी सरकार पर वार, रखीं 4 बड़ी मांगें, बोले- मजदूरों को समय पर नहीं मिलता हक
जयराम रमेश ने कहा कि वित्त मंत्रालय के नियमों के मुताबिक, किसी भी सरकारी योजना को वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में बजट का 60 फीसदी से अधिक खर्च करने की अनुमति नहीं है। लेकिन मंत्रालय ने सिर्फ 5 महीनों में ही 60 फीसदी बजट खत्म कर दिया है।

देश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को कानून बने आज 20 साल पूरे हो गए। इस मौके पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक विस्तृत पोस्ट शेयर करते हुए मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि आज जहां हमें दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक कल्याण योजना की उपलब्धियों का जश्न मनाना चाहिए था, वहीं मौजूदा सरकार की वजह से हमें इसके अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंता करनी पड़ रही है।
बजट और खर्च पर उठाए सवाल
जयराम रमेश ने कहा कि वित्त मंत्रालय के नियमों के मुताबिक, किसी भी सरकारी योजना को वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में बजट का 60 फीसदी से अधिक खर्च करने की अनुमति नहीं है। लेकिन मंत्रालय ने सिर्फ 5 महीनों में ही 60 फीसदी बजट खत्म कर दिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि इसका सीधा असर देश के करोड़ों ग्रामीण परिवारों के रोजगार और भविष्य पर पड़ेगा।
'मनरेगा को कमजोर करने की रणनीति'
जयराम रमेश ने मनरेगा के सामने खड़ी चुनौतियों को गिनाते हुए मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए।
जयराम रमेश के आरोप:
पिछले 11 वर्षों से मनरेगा को पर्याप्त बजट नहीं मिला है। महंगाई लगातार बढ़ने के बावजूद पिछले तीन साल से बजट लगभग स्थिर रखा गया है, जिससे योजना की मांग-आधारित दृष्टि का मजाक बन गया है।
वेतन भुगतान में देरी आम हो गई है। 15 दिनों की वैधानिक समयसीमा के बाद भी मजदूरों को पैसे नहीं मिलते और मुआवजा भी नहीं दिया जाता। हर साल 20-30 फीसदी बजट पिछले साल के बकाया चुकाने में खर्च हो जाता है।
मजदूरी दरों में वृद्धि बेहद कम हुई है। जयराम रमेश ने कहा कि पिछले ग्यारह सालों में मजदूरी में बमुश्किल ही इजाफा हुआ है, जिससे ग्रामीण परिवार स्थिर आय के संकट से जूझ रहे हैं।
तकनीकी बाधाओं से लाखों मजदूर वंचित है। NMMS ऐप और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) जैसी व्यवस्थाओं के कारण 2 करोड़ से अधिक श्रमिकों को उनका कानूनी हक, यानी काम और भुगतान नहीं मिल पाया है।
कांग्रेस की मांग
जयराम रमेश ने अपनी पोस्ट में कांग्रेस पार्टी की ओर से चार बड़ी मांगें भी रखीं:
मनरेगा का बजट बढ़ाया जाए और मजदूरी का समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए।
न्यूनतम मजदूरी 400 रुपये प्रतिदिन तय की जाए, ताकि ग्रामीण परिवारों की वास्तविक आय बढ़ सके।
मजदूरी दर तय करने के लिए एक स्थायी समिति का गठन किया जाए।
ABPS और NMMS जैसी तकनीकों को अनिवार्य करने पर रोक लगाई जाए, क्योंकि ये मजदूरों के लिए अतिरिक्त मुश्किलें पैदा कर रही हैं।
'सरकार ने मनरेगा को संकट में डाला'
जयराम रमेश ने कहा कि मनरेगा कभी गरीबों और ग्रामीणों की 'जीवनरेखा' मानी जाती थी, लेकिन मौजूदा सरकार की नीतियों और लापरवाह रवैए ने इसे संकट में डाल दिया है।
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Published: 05 Sep 2025, 3:08 PM