2017: भारतीय अर्थव्यवस्था से नाउम्मीदी का साल

2017 में मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को लेकर जिन तस्वीरों को सामने रखा, उनकी वास्तविकता बेहद अलग है। 2018 और भी बुरा दिखता है क्योंकि लोगों को अभी भी नोटबंदी के असर का पूरा अनुभव करना बाकी है।

फोटो: सोशल मीडिया
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रमन स्वामी

2017 एक मजबूत आर्थिक पुनरुत्थान, जीवंत बाजार और सुशासन के रूप में जाना जाएगा। और खुशियों के साथ नए साल के शुरू होते ही लोगों की आशाएं ज्यादा होंगी, सभी आर्थिक संकेतक तेजी से बढ़ रहे हैं, अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, राजकोषीय घाटा नियंत्रण में है, और यह आने वाले वक्त में और फलेगा-फूलेगा।

माफी चाहूंगा, यह सच्ची खबर नहीं थी। हमने अब तक जो आपको बताया, वह एक झूठी खबर थी। और यह खबर पीएम मोदी की टीम की ओर से दी गई थी, जिसे बंधक मीडिया ने देश के सामने प्रसारित किया।

आइए दोबारा शुरू करते हैं, बिना किसी विशेषण यानी अच्छे और बुरे शब्दों के, ज्यादा से ज्यादा या जितना हो सके आर्थिक शब्दजाल का इस्तेमाल करते हैं।

तो साल के अंत में खबर यह है कि राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है। 29 दिसंबर को संसद में सरकार ने यह बताया कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2017 से नवंबर 2017 के बीच राजकोषीय घाटा देश के सालाना बजटीय लक्ष्य का 112 फीसदी है, जबकि राजस्व घाटा बजट राशि का 152.2 फीसदी है। लेकिन इसे आम आदमी की भाषा में क्या कहेंगे? इसका मतलब यह है कि वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में आत्मविश्वास के साथ राजकोषीय घाटा के नियंत्रण में रहने का पूर्वानुमान किया था, और इसे 3.5 फीसदी बताया था, जो नवंबर के महीने में ही गलत साबित हो गया। और वित्तीय वर्ष 2017-18 के अगले चार महीने में इसके ऐसा ही रहने का अनुमान है।

इसका अर्थ यह भी है कि यह दावा भी गलत साबित हुआ है कि जीएसटी कर राजस्व को बढ़ावा देगा। इसके विपरीत, सरकार के आंकड़ों के मुताबिक जीएसटी से मिला टैक्स नवंबर के महीने में अपने सबसे निम्नतम स्तर पर आ गया है। वास्तव में, नवंबर में जीएसटी के तहत कुल संग्रह टैक्स में अक्टूबर की तुलना में गिरावट आई है और अक्टूबर में जमा टैक्स सितंबर से कम था।

इसका मतलब यह है कि जुलाई में जीएसटी लागू होने के बाद जो नुकसान व्यवसाय को पहुंचा था, वह अभी भी जारी है। इस संदर्भ में इसका यह भी मतलब है कि कम कर संग्रह होने की वजह से मोदी सरकार के पास अचानक उधार लेने के फैसले के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। लेकिन 2017 की शुरूआत में वित्त मंत्री ने कहा था कि ऐसी नौबत नहीं आएगी। लेकिन अब उन्हें अपनी ही कही गई बातों से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आसान शब्दों में कहें तो उन्हें एक गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ा है, जहां व्यय और राजस्व में अंतर पहले से ही चौंका देने वाली हालत में है। यह अप्रैल-नवंबर के बीच 6.12 लाख करोड़ रुपये रहा। यह सरकार विरोधी अर्थशास्त्रियों द्वारा दिए गए फर्जी आंकड़े नहीं हैं, और न ही 6.12 लाख रुपये का आंकड़ा काल्पनिक या अनुमानित है। इस आंकड़े को सीएजी ने आधिकारिक तौर पर जारी किया है। यह तब और डरावना हो जाता है, जब इसकी तुलना आप पिछले साल 2016-17 से करते हैं। उस वक्त राजकोषीय घाटा लक्ष्य का 86 प्रतिशत था। इस साल यह अंतर पहले से ही बड़ा हो गया है, यह नवंबर में लक्ष्य से 112 प्रतिशत अधिक था। मार्च 2018 में यह आंकड़ा मौजूदा आंकड़े से और ज्यादा चिंताजनक हो सकता है।

इस बारे में वित्त मंत्री से बेहतर कोई नहीं जानता। और यही वजह है कि उन्होंने तुरंत 50,000 करोड़ रुपये उधार लेने का फैसला किया है। 27 दिसंबर को जब कर्ज लेने की खबर आई तो उस समय शेयर बाजार में डर देखने को मिला।

मार्केट ऑपरेटर्स स्पष्ट रूप से सकारात्मक विचार रखते हैं। वे उन सब बातों पर भरोसा करते हैं जो प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री उन्हें बता रहे है - जैसे कि एफडीआई से खुशहाली आएगी, भारत 2020 तक एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन जाएगा, देश स्वच्छ हो जाएगा, सभी बेटियां शिक्षित और महिलाएं बलात्कार से सुरक्षित हो जाएंगी, बेरोजगारी कुल स्व-रोजगार से बदल जाएगी, डिजिटल भारत कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर ले जाएगा, नोटबंदी व्यवस्था को शुद्ध कर देगा, जीएसटी से हर मसले का हल होगा इत्यादि, इत्यादि।

मार्केट ऑपरेटर्स को उस वक्त झटका लगा जब उन्होंने सुना कि जीएसटी से जमा होने वाला पैसा बेहद कम है, राजकोषीय घाटा अनिश्चित है और सरकार को इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए कर्ज लेना पड़ेगा। उन्हें राहत तब जाकर मिली जब वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाते हुए कहा कि परेशान न हों, सिर्फ एक बार उधार लिया जा रहा है, सबकुछ नियंत्रण में है। उन्होंने यह भी कहा कि यह हमारी गणना में सिर्फ एक अनापेक्षित गिरावट है।

इस साल अन्य दूसरे मोर्चों से भी अप्रत्याशित आंकड़े सामने आए। इनके मुताबिक ऑनलाइन धोखाधड़ी बढ़ गई है और डिजिटल भारत सुरक्षित नहीं रहा। राज्यसभा में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह माना कि साल 2017 में 25,800 धोखाधड़ी के मामले समने आए हैं, जिनमें 179 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी क्रेडिट-डेबिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग से जुड़ी हैं। वहीं रिजर्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक, क्रेडिट-डेबिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिंग से लेन-देन को लेकर धोखाधड़ी के 10, 220 मामले सिर्फ दिसंबर की तिमाही में दर्ज किए गए हैं। यहां सवाल उठता है कि क्या देश धोखाधड़ी से मुक्त हो रहा है? क्या इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन वास्तव में सुरक्षित हैं?

इस साल खेती-बाड़ी से जुड़ी व्यवस्था चौपट हो गई, और छोटे उद्यम बुरी तरह प्रभावित हुए। देश के केंद्रीय, उत्तरी और पश्चिमी हिस्से में मंझोले किसान बगावत पर उतर आए हैं। यह हालत उन जगहों की है जहां बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 90 फीसदी सीटें मिली थीं।

आखिरकार, जैसा कि सभी जानते हैं कि अप्रैल-जून 2017 में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर गिरकर 5.7 प्रतिशत तक आ गई थी। सच्चाई यह है कि निकट भविष्य में ग्रामीण मांग में सुधार की उम्मीद बहुत कम है क्योंकि जुलाई-सितंबर के संशोधित जीडीपी के आंकड़े (6.2%) में कृषि क्षेत्र का खराब प्रदर्शन जारी है।

साल खत्म होने को है, शायद यह बेहतर होगा कि पीएम मोदी की टीम को यह आग्रह करने की अनुमति दी जाए कि गलती हो गई है तो माफ कीजिए, कुछ अच्छा लगे तो याद कीजिए। अफसोस की बात यह है कि 2017 में बड़ी-बड़ी बातों के जरिए लोगों को सांत्वना देने के अलावा मोदी सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे अच्छा महसूस किया जा सके। 2018 और भी बुरा दिखता है क्योंकि लोगों को अभी भी नोटबंदी के असर का पूरा अनुभव करना बाकी है। अगर आपको लगता है कि 2017 दर्दनाक था, तो अगले 12 महीनों की प्रतीक्षा करें।

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