प्रदूषण से हो सकती है 30 हजार लोगों की मौत, एम्स के डायरेक्टर की चेतावनी, 20 फीसदी बढ़ी मरीजों की तादाद

दिल्ली-एनसीआर में छाए धुएं-धुंधलके से 30 हजार लोगों की मौत की आशंका है, क्योंकि एम्स में पिछले कुछ दिनों में सांस के मरीजों की तादाद में 20 फीसदी मरीज बढ़े हैं। ये चेतावन एम्स के डायरेक्टर ने दी है।

फोेटो : सोशल मीडिया
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IANS

दिल्ली और एनसीआर में जारी धुएं और धुंध में किसी भी किस्म के मास्क और एयर प्यूरीफायर नाकाम साबित हो रहे हैं। यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में 30 हजार लोगों की संभावित मौत हो सकती है। यह कहना है एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया का।

लोगों को किसी किस्म की राहत नहीं मिल रही है। पूरे दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण स्तर बेहद बढ़ गया है। इस बारे में एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा है मौजूदा हालात के संदर्भ में एन95 मास्क और वायु शोधक सांस से संबंधित खतरों में लंबे समय तक संरक्षण प्रदान नहीं कर सकते हैं।

देश के प्रमुख श्वास-रोग विशेषज्ञों में से एक गुलेरिया ने कहा, "हम सभी को यह समझने की जरूरत है कि एन 95 मास्क और वायु शोधक (एयर प्यूरीफायर) लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते और न ही पूरी तरह से प्रभावी हैं। एन 95 मास्क और एयर प्यूरीफायर की बिक्री पिछले कुछ दिनों में प्रदूषण के कारण बढ़ गई है।" एन95 मास्क एक श्वसन यंत्र हैं, जो नाक और मुंह को कवर करता है।

प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के बाद गुलेरिया ने दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण संबंधी बीमारियों के कारण लगभग 30,000 अनुमानित मौतों का संकेत दिया है। गुलेरिया ने कहा, “मैं एक बार फिर चेतावनी देना चाहता हूं कि वर्तमान प्रदूषण के स्तर के कारण मरीजों की मौत हो सकती है.. खासकर उन लोगों की, जो सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं।” उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की ओपीडी में सांस के रोग से पीड़ित मरीजों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

गुलेरिया ने कहा, "प्रदूषण से बच्चे और वृद्ध सबसे अधिक रूप से प्रभावित हैं। ऐसे प्रदूषण को देखते हुए आज के बच्चे अगले 20 साल में फेफड़े की गंभीर बीमारी से पीड़ित होंगे।"

50 सिगरेट रोज पीने जैसी है दिल्ली की हवा

ध्यान रहे कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का सूचकांक 451 तक जा पहुंचा है, जबकि इसका अधिकतम स्तर 500 है। इस हवा में सांस लेने का मतलब है करीब 50 सिगरेट रोज पीने जितना धुआं आपके शरीर में चला जाता है। बीमार लोगों के अलावा स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी यह हवा हानिकारक है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, यह स्वास्थ्य की आपात स्थिति है, क्योंकि शहर व्यावहारिक रूप से गैस चैंबर में बदल गया है।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "धुंध एक जटिल मिश्रण है और इसमें विभिन्न प्रदूषक तत्व जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड और धूल कण मिले होते हैं। यह मिश्रण जब सूर्य के प्रकाश से मिलता है तो एक तरह से ओजोन जैसी परत बन जाती है। यह बच्चों और बड़ों के लिए एक खतरनाक स्थिति है। फेफड़े के विकारों और श्वास संबंधी समस्याओं वाले लोग इस स्थिति में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।"

डॉ. अग्रवाल ने कहा, "वायु प्रदूषण हर साल दिल्ली में 3,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है, यानी हर दिन आठ मौतें। दिल्ली के हर तीन बच्चों में से एक को फेफड़ों में रक्तस्राव की समस्या हो सकती है। अगले कुछ दिनों तक घर के अंदर रहने और व्यायाम या टहलने के लिए बाहर न निकलने की सलाह दी गई है।"

आईएमए ने दिल्ली-एनसीआर के सभी स्कूलों के लिए सलाह या एडवाइजरी जारी करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री से पहले ही अपील की है, ताकि रेडियो, प्रिंट और सोशल मीडिया जैसे विभिन्न मीडिया माध्यमों से इसे प्रसारित किया जा सके। 19 नवंबर को एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन को रद्द करने के लिए भी अनुरोध किया है।

दुर्घटनाओं का कारण भी बनती है धुंध

डॉ. अग्रवाल ने बताया, "जब भी आद्र्रता का स्तर उच्च होता है, वायु का प्रवाह कम होता है और तापमान कम होता है, जब कोहरा बन जाता है। इससे बाहर देखने में दिक्कत आती है और सड़कों पर दुर्घटनाएं होने लगती हैं। रेलवे और एयरलाइन की सेवाओं में भी देरी होने लगती है। जब वातावरण में प्रदूषण का स्तर उच्च होता है तो प्रदूषक कण कोहरे में मिल जाते हैं, जिससे बाहर अंधेरा छा जाता है। इसे ही स्मॉग कहा जाता है।" बुधवार सुबह यमुना एक्सप्रेस वे इसी धुंध के कारण बहुत से वाहन एक-दूसरे से टकरा गए।

डॉ अग्रवाल ने कहा कि, "धुंध फेफड़े और हृदय दोनों के लिए बहुत खतरनाक होती है। सल्फर डाइऑक्साइड की अधिकता से क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस हो जाती है। उच्च नाइट्रोजन डाइऑक्साइड स्तर से अस्थमा की समस्या बढ़ जाती है। पीएम10 वायु प्रदूषकों में मौजूद 2.5 से 10 माइक्रोन साइज के कणों से फेफड़े को नुकसान पहुंचता है। 2.5 माइक्रोन आकार से कम वाले वायु प्रदूषक फेफड़ों में प्रवेश करके अंदर की परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। रक्त में पहुंचने पर ये हृदय धमनियों में सूजन कर सकते हैं।"

प्रदूषण स्तर बढ़ने पर सावधानियां :

  • अस्थमा और क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस वाले मरीजों को अपनी दवा की खुराक बढ़ानी चाहिए।
  • स्मॉग की परिस्थितियों में अधिक परिश्रम वाले कामों से बचें।
  • धुंध के दौरान धीमे ड्राइव करें।
  • धुंध के समय हृदय रोगियों को सुबह में टहलना टाल देना चाहिए।
  • फ्लू और निमोनिया के टीके पहले ही लगवा लें।
  • सुबह के समय दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें।
  • बाहर निकलना जरूरी हो तो मास्क पहन लें।

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Published: 09 Nov 2017, 10:00 AM