भूख से देश में 75 लोगों की हो गई मौत, आखिर किस मुंह से वोट मांग रहे हैं मोदी!

सरकार माने या न माने, यह तथ्य है कि देश में अब भी ऐसे लोग हैं, जिन्हें इतना भी भोजन उपलब्ध नहीं कि जिंदा रह सकें। मोदी सरकार का सारा जोर यह साबित करने में लगा रहा कि भूख से कोई नहीं मरा। सरकार जो भी कहे, यह बात शीशे की तरह साफ है कि लोग भूख से ही मरे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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रवि प्रकाश

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश भर में भूख से 75 लोगों की मौत हो गई। लेकिन सरकार इसे भूख से मौत मानने को तैयार नहीं है। मशहूर सोशल एक्टिविस्ट और दिल्ली आईआईटी की रितिका खेड़ा, झारखंड की सिराज दत्ताऔर छत्तीसगढ़ की स्वाति नारायण ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है। इनमें से 45 मौतें साल 2017-18 के दौरान हुई हैं। इस दौरान अकेले झारखंड में 19 लोगों की मौत भूख से हुई है। नवजीवन के पास यह पूरी लिस्ट मौजूद है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भूख से सर्वाधिक मौतें झारखंड और उत्तर प्रदेश में हुई हैं। भूख से हो रही इन मौतों के वक्त केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी और झारखंड में मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व वाली बीजेपी गठबंधन की सरकारें सत्तासीन थीं, जो अब भी अपना काम कर रही है। इन सरकारों ने विज्ञापनों पर अरबों रुपये खर्च कर दावा किया है कि उनकी सरकार ने जो काम पांच साल में किया है, वह पिछले 70 साल में नहीं हुआ। ऐसे विज्ञापन भूख से हुई मौतों पर कुछ नहीं कहते।

इस दौरान यूपी में कुल 16 लोगों की भूख से मौत हुई है। सबसे ताजा मामला रायबरेली का है जहां पिछले साल 27 दिसंबर को सरयू देवी नामक एक महिला की भूख से मौत हो गई। उन्हें दिसंबर महीने का राशन नहीं मिला था और घर में खाने के लिए अन्न नहीं था। इससे पहले सीतापुर जिले के 45 वर्षीय मलीखे की मौत सितंबर में भूख से हो गई थी। उसका राशन कार्ड नहीं बन सका था। अधिकारियों ने उसे ऑनलाइन आवेदन करने को कहा था लेकिन उसे इसमें दिक्कत हो रही थी। अंततः उसका राशन कार्ड नहीं बन सका और उसकी भूख से मौत हो गई।

बहरहाल, इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली टीम के प्रमुख सदस्य सिराज दत्ता ने कहा कि पिछले पांच साल के दौरान भूख से 75 मौतों के बावजूद सरकार की बेरुखी हमें चिंतित करती है। मरने वाले अधिकतर लोग वंचित समुदायों-आदिवासी, दलित, मुसलमान थे। इसके बावजूद सरकारें इन मौतों को स्वीकार ही नहीं करतीं। यह देश के नागरिकों के लिए दुखद स्थिति है। अब चुनावों के दौरान विपक्ष इस रिपोर्ट को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।

झारखंड का हाल

महज 11 साल की संतोषी की मौत 28 सिंतंबर, 2017 को हुई थी। उसके घर में राशन नहीं था। वह भूख से तड़प रही थी और बुखार भी था। उसकी मां कोयली देवी ने पड़ोस के घरों से चावल पईंचा (उधार) मांगा लेकिन पहले से ही उधार ले चुकी कोयली को पड़ोसियों ने चावल देने से मना कर दिया। जब संतोषी भात-भात खाने की रट लगाए चिल्ला रही थी, तब कोयली देवी ने घर में मौजूद चाय पत्ती को पानी में उबाला। घर में चीनी भी नहीं थी। थोड़ा सा नमक था। उन्होंने नमक वाली लीकर चाय बनाई। बेटी को पीने को दिया।

इसके बावजूद संतोषी की जान नहीं बचायी जा सकी। वह भात-भात की रट लगाते हुए महज 11 साल की उम्र में ही मर गई। यह खबर न केवल देसी बल्कि विदेशी मीडिया की भी सुर्खियां बनी। वह झारखंड में भूख से होने वाली पहली मौत नहीं थी और न आखिरी। उससे पहले भी भूख से मौत के मामले आए थे और उस घटना के बाद भी कई और लोगों की भूख से मौत होने का दावा लोगों ने किया।

हालांकि, झारखंड की बीजेपी सरकार ने इन सभी मामलों को नकारते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार करायी और कहा कि इनकी मौत भूख से नहीं हुई है। इसके बावजूद अधिकतर लोगों ने माना कि सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। क्योंकि, लोगों के पास यह मानने के व्यापक आधार थे।

एक साल बाद पिछले साल सितंबर में जब इन पंक्तियों का लेखक संतोषी का परिवार से मिला, तब भी उसकी हालत सुधरी नहीं थी। यह परिवार सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड के कारीमाटी गांव में रहता है। इस लेखक के वहां पहुंचने से पहले कोयली देवी (संतोषी की मां) अपने तीन साल के बेटे प्रकाश को कोहड़ा के पत्ते का साग और भात खिला चुकी थीं। तब उनके घर में सिर्फ तीन हफ्ते का राशन (चावल) था।

संतोषी की मौत के बाद सरकार द्वारा दिए गए 50 हजार में से सिर्फ 500 रुपये बचे थे। किसी वजह से राशनबंद हो जाए, तब फिर से भूखमरी की नौबत आने की आशंका के बीच कोयली देवी अपनी सास के साथ इस लेखक से मुखातिब हुईं और बताया कि संतोषी की मौत के आठ महीना पहले से डीलर उन्हें राशन नहीं दे रहा था, क्योंकि उनका आधार कार्ड राशन डीलर के पीओएस मशीन से लिंक्ड नहीं था।

खैर, कोयली देवी आज भी उसी झोपड़ी में रहती हैं। ‘आधार’ की अनिवार्यता के कारण अपनी बेटी गंवा चुकीं कोयली देवी के परिवार में सरकारी सुविधा के नाम पर एक छोटा-सा शौचालय है, जो स्वच्छता अभियान के ‘स्मारक’ के बतौर खड़ा है, मानो वह ‘ताजमहल’ हो। हालांकि, उसमें पानी उपलब्ध नहीं है।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने तो सार्वजनिक तौर पर कहा है कि भूख से मौत के मामलों में सरकार झूठ बोल रही है। राशन कार्ड की आधार से लिंकिंग के कारण झारखंड में समस्या बढ़ी है और लोगों के भूख से मरने के मामले सामने आए। इसके बावजूद सरकार इसका निदान खोजने की जगह भुखमरी के शिकार लोगों के परिवार वालों की बातें झूठी साबित करने में लगी है।

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