लागू हुई नई शिक्षा नीति तो 10वीं-12वीं की तरह इन कक्षाओं में भी होंगी बोर्ड परीक्षाएं

शिक्षा के प्रारंभिक स्तर पर क्योंकि बच्चे बोर्ड परीक्षा का तनाव महसूस नहीं करते, लेकिन 10वीं-12वीं में अच्छे प्रदर्शन के दबाव के कारण बच्चे स्कूल में पढ़ाए गए विषयों को खुद से पढ़ने के बजाए कोचिंग सेंटरों पर निर्भर हो जाते हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

भारतीय शिक्षा प्रणाली में अब तक 10वीं और 12वीं कक्षा में ही स्टूडेंट्स को बोर्ड परीक्षाएं देनी होती थीं। लेकिन नई शिक्षा नीति के प्रस्तावित प्रावधान के अनुसार अब कक्षा 3, 5 और 8 में भी बच्चों को बोर्ड परीक्षा देनी पड़ सकती हैं। शिक्षा के वर्तमान प्रारूप के कई नकारात्मक प्रभावों का हवाला देते हुए इस नयी शिक्षा नीति का प्रस्ताव रखा गया है।

अगर इस प्रस्ताव के तहत नयी शिक्षा प्रणाली को लागू किया जाता है तो 10वीं और 12वीं की तरह कक्षा 3, 5 और 8 के स्टूडेंट्स को भी बोर्ड परीक्षा देनी होंगी। आईए जानते हैं कि वर्तमान बोर्ड परीक्षाओं का प्रारूप बच्चों के लिए किस तरह गलत माना जा रहा है।

प्रस्तावित नयी शिक्षा नीति में कहा गया है कि पूरी स्कूली शिक्षा के दौरान 10वीं और 12वीं में सिर्फ दो बार ऐसा मौका आता है, जब बोर्ड परीक्षा आयोजित की जाती हैं। इससे बच्चों पर काफी ज्यादा दबाव होता है। स्कूली शिक्षा के दौरान सिर्फ अहम पड़ावों पर बोर्ड परीक्षा होने से कोचिंग का व्यापार भी बहुत तेजी से फल फूल रहा है।

शिक्षा के प्रारंभिक स्तर पर क्योंकि बच्चे बोर्ड परीक्षा का तनाव महसूस नहीं करते हैं, लेकिन 10वीं और 12वीं में छात्रों पर अच्छे प्रदर्शन का काफी ज्यादा दबाव रहता है। नतीजा यह निकलता है कि बच्चे स्कूल में पढ़ाए गए विषयों के लिए खुद से पढ़ाई करने के बजाए कोचिंग सेंटरों पर निर्भर हो जाते हैं।


इन दो अहम पड़ावों पर ज्यादा अंक लाने की होड़ में विषयों को अच्छी तरह समझने, उस पर सोचने, विश्लेषण करने और सीखने की छात्रों की ललक पीछे रह जाती है। ऐसे में वे महज अंक प्राप्ति के लिए एक निश्चित दायरे में रहकर कुछ चुनिंदा विषयों को अच्छे से जानने के बजाय उन्हें रटना शुरू कर देते हैं और इस चक्कर में उनका चहुंमुखी विकास नहीं हो पाता।

छात्रों के लिए ऐसे कामगर सिद्ध होगी नयी शिक्षा नीति

प्रस्तावित नई शिक्षा नीति का मकसद छात्र छात्राओं के लिए बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाना है। नयी शिक्षा नीति में इस तरह के बदलाव किये जाएं, जिससे वे विषयों को रटने की बजाए उन्हें गहनता से सीखें और समझें।

बोर्ड परीक्षाओं के पाठ्यक्रम को इस तरह डिजाइन किया जाए कि सिर्फ स्कूल में पढ़ाए गए विषयों के आधार को समझकर और सेल्फ स्टडी की बदौलत छात्र बिना कोचिंग का सहारा लिए बोर्ड परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन कर सकें। इसके अलावा इस नई नीति में एक साल में दो बार बोर्ड परीक्षा करवाने का भी प्रस्ताव रखा गया है।

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