अलीगढ़: जिन्ना के बहाने  कैंपस में तनाव पैदा करने के सांप्रदायिक मंसूबों को विफल कर रहा है एमएमयू का आंदोलन

एएमयू के छात्र और शिक्षक दोनों ही पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर हमले और छात्रों पर पुलिस बर्बरता की हाई कार्ट के न्यायाधीश से समयबद्ध जांच कराने की मांग उठा रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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भाषा सिंह

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्रों के जबर्दस्त आंदोलन के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। बजरंग दल, हिंदू युवा वाहिनी जैसे उग्र हिंदू संगठनों की सारी कोशिशों के बावजूद एएमयू परिसर में यह मामला अब तक हिंदू-मुस्लिम या जिन्ना बनाम राष्ट्रवाद का नहीं बन पाया है। इसकी बड़ी वजह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ और अध्यापकों का समझदारी भरा नेतृत्व और उनके पक्ष में खड़े सिविल सोसायटी, देश के तमाम विश्वविद्यालय, आठ देशों से आया समर्थन है।

इन सबकी वजह से एएमयू में यह आंदोलन पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी के सम्मान और सुरक्षा के सवाल और छात्रों की सुरक्षा के सवाल पर केंद्रित है। इस कारण एएमयू के आंदोलन का फलक बहुत व्यापक है। जिस तरह से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चले छात्रों के आंदोलन ने लोकतंत्र की रक्षा के सवाल उठाए थे, एएमयू का आंदोलन भी उसी राह पर बढ़ रहा है। एएमयू के छात्र और शिक्षक दोनों ही पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर हमले और छात्रों पर पुलिस बर्बरता की हाई कार्ट के न्यायधीश से समयबद्ध जांच कराने की मांग उठा रहे हैं। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब अध्यापकों ने जुलूस निकालकर प्रशासन को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा और इंसाफ की गुहार लगाई।

अलीगढ़: जिन्ना के बहाने  कैंपस में तनाव पैदा करने के सांप्रदायिक मंसूबों को विफल कर रहा है एमएमयू का आंदोलन

बड़ी तादाद में लड़कियों की भागीदारी इस आंदोलन को खास बनाती है। देर शाम तक भारी तादाद में लड़कियां आंदोलन में शिरकत करती हैं, नारे लगाती हैं। अलीगढ़ वीमेन्स मुस्लिम कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष नबा नसीम ने नवजीवन को बताया कि यह सरकारी तंत्र का छात्रों पर हमला है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के आने के बाद से इसमें और तेजी आई है। ये लोग जेएनयू-बीएचयू के बाद अब एएमयू पर हमला कर रहे हैं। वे हमारी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला कर रहे हैं। हम इस हमले के खिलाफ उतरे हैं और जीतकर ही वापस जाएंगे।

एमएमयू छात्रसंघ के अध्यक्ष मसकूर अहमद व्हील चेयर पर आंदोलन चला रहे हैं। पुलिस की मार की वजह से उनके गले में गहरी चोट लगी है, लेकिन वह आंदोलन की कमान संभाले हुए हैं। उन्होंने बताया कि यह संघ-बीजेपी के लोगों का दुष्प्रचार है कि एएमयू में सिर्फ मुसलमान पढ़ते हैं। यहां बड़ी संख्या में लगभग 50 फीसदी गैर-मुस्लिम छात्र, शिक्षक और कर्मचारी हैं। उन्होंने कहा, आजतक के इतिहास में परिसर में कभी कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ। यह सारी लड़ाई हम अपने मेहमान और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं। वे हमारे मेहमान थे, हम उन्हें लाइफटाइम अचिवमेंट अवार्ड देने जा रहे थे। हम उनकी रक्षा के लिए सामने आए। पुलिस ने हम पर जिस तरह से हमला किया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्रों को चोट लगी है, उसने तमाम छात्रों को गहरे आक्रोश से भर दिया है। हम हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे। इससे साफ लगता है कि पुलिस-प्रशासन एएमयू को बदनाम करने पर लगा हुआ है। इस बहाने वे कर्नाटक चुनाव और 2019 के चुनाव में ध्रुवीकरण करना चाहते हैं, जो हम होने नहीं देंगे।”

एएमयू पहुंचकर एक और बहुत दिलचस्प बात ये पता चली कि यहां का छात्रसंघ अभी तक पुलिस प्रशासन के साथ बहुत सौहार्दपूर्ण रिश्तों के लिए जाना जाता रहा है। ऐसा पहली बार हुआ है कि पूरे परिसर में जिले के एसएसपी के खिलाफ पोस्टर लगे हुए हैं। उन्हें आरएसएस से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। 30 अप्रैल को एसएसपी राजेश पांडे (जिनका तबादला कर दिया गया था) के लिए छात्रसंघ के दफ्तर में विदाई समारोह का आयोजन किया गया था, जिसमें उन्हें सर सय्यद अहमद का पोट्रेट देकर सम्मानित किया गया था। लेकिन मौजूदा एसएसपी के खिलाफ छात्रों में काफी गुस्सा देखा जा रहा है।

एमएमयू में बीए (राजनीतिक शास्त्र ) के प्रथम वर्ष के छात्र कामरान ने बताया कि संघ और बीजेपी के लोग जानबूझकर इस विश्वविद्यालय की छवि को खराब करने पर तुले हैं। वे हमारे भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। छात्रसंघ के उपाध्यक्ष सज्जाद सुब्हान कहते हैं कि एसएसपी के साथ-साथ बीजेपी के सांसद की भूमिका भी शर्मनाक है। यह बहुत अच्छा है कि अलीगढ़ शहर ने बीजेपी-संघ का सांप्रदायिक दांव चलने नहीं दिया।

एएमयू टीचर्स एसोसिएशन के सचिव प्रो नजरूल इस्लाम ने बताया कि हम छात्रों के पक्ष में इसलिए उतरे, क्योंकि विश्वविद्यालय के इतिहास में छात्रों पर कभी इतना बर्बर लाठीचार्ज नहीं किया गया। छात्रसंघ एक कार्यक्रम करने जा रहा था, जिसे खराब करने के लिए कुछ बाहरी तत्वों ने हमला किया, इसका विरोध करना तो हम सबका काम था। उन्होंने कहा कि पुलिस ने इन बाहरी तत्वों को रोकने की बजाय उन्हें छूट दे दी। इसके विरोध में एफआईआर कराने जा रहे छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। प्रो नजरूल इस्लाम कहते हैं, “एमएमयू का नाम और इज्जत है, इसे हम लोगों को खराब नहीं करने देंगे।”

विश्वविद्यालय में पढ़ा रहीं तनुष्का सर्वेश ने भी कहा कि दरअसल एएमयू को बदनाम करके बीजेपी और संघ बड़ा राजनीतिक लाभ उठाना चाहती हैं। फाइन आर्ट्स विभाग के छात्र दानिश ने कहा कि सही तरीके से एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और यह छात्रों का हक है।

एएमयू के जनसंपर्क अधिकारी उमर ने बताया कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत इस विश्वविद्यालय को लेकर एक खराब छवि बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा, “मेरा सवाल यह है कि जो लोग एमएमयू पर सवाल उठा रहे हैं, इसे मिनी पाकिस्तान जैसे आपत्तिजनक नामों से नवाज रहे हैं, ऐसे लोगों का वजूद क्या है, ये लोग हैं क्या, उन्होंने देश के लिए किया क्या है?”

एएमयू में अध्यापक रहे एम रहमान बताते हैं कि जिन्ना की फोटो तो महज झूठा बहाना है, बीजेपी-संघ जानबूझकर अपनी गंदी सोच के तहत इस विश्वविद्यालय को बदनाम कर रहे हैं। वे सांप्रदायिकता फैलाना चाहते हैं और इसलिए ये सब कर रहे हैं, लेकिन एएमयू उनके मंसूबों को नाकाम कर रहा है।

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