नौकरी करने वालों के छोटे बचत पर भी मोदी सरकार की नीयत खराब, लगातार घटा रही है इंटरेस्ट रेट

2014 में सत्ता संभालते ही मोदी सरकार ने ईपीएफओ पर शेयर बाजार में निवेश के लिए दबाव बनाना शुरू किया। अंततः ईपीएफओ ने 5 फीसदी से शेयर बाजार में निवेश शुरू कर दिया, जो 15 फीसदी पहुंच गया है। लेकिन इसका लाभ हो रहा है या नहीं, सरकार के पास इसके आंकड़े नहीं हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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एस राहुल

नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान छोटी बचत योजनाएं आकर्षक या लाभप्रद नहीं रहीं। इन योजनाओं पर मिलने वाला ब्याज लगातार कम हो रहा है। इतना ही नहीं, सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि पर मिलने वाली ब्याज दर को भी कम कर दिया है। इसके चलते लोग ज्यादा ब्याज दर हासिल करने के लिए असुरक्षित निवेश, खासकर शेयर बाजार और म्युचुअल फंड की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

अभी 28 जून, 2019 को लघु बचत योजनाओं की ब्याज दर कम की गई है। पब्लिक प्रोविडेंड फंड पर पहले 8 फीसदी ब्याज मिलता था, उसे घटाकर 7.9 फीसदी कर दिया है। इसी तरह नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएसएस) पर भी ब्याज दर 7.9 फीसदी कर दी गई है। बच्चियों के लिए चलाई जा रही सुकन्या समृद्धि योजना पर भी .1 फीसदी ब्याज दर कम की गई है। इसी तरह किसान विकास पत्र, सीनियर सिटीजन्स स्कीम, पंचवर्षीय डिपोजिट स्कीम और अन्य डिपोजिट स्कीम पर ब्याज दर में .1 फीसदी की गई है।

दिलचस्प बात यह है कि मोदी के पहले कार्यकाल में आम चुनावों से पहले- सितंबर, 2018 में इन बचत योजनाओं की ब्याज दर में भारी बढ़ोतरी की गई थी। 20 सितंबर, 2018 को पीआईबी द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, सरकार ने एनएसएस की ब्याज दर 7.6 फीसदी से बढ़ाकर 8 फीसदी और इसी तरह सालाना सेविंग्स स्कीम्स में .3 से .5 फीसदी तक वृद्धि की थी। किसान विकास पत्र की ब्याज दर 7.3 से बढ़ा कर 7.7 फीसदी की गई थी। इसी तरह पब्लिक प्रोविडेंड फंड (पीपीएफ) स्कीम की ब्याज दर 7.6 से बढ़ा कर 8 फीसदी की गई थी।

जब मोदी ने पहली बार सत्ता संभाली थी, उस समय यानी 4 मार्च, 2014 को साल 2014-15 के लिए पीपीएफ की ब्याज दर 8.7 फीसदी, पांच साल वाली सीनियर सिटीजन्स सेविंग्स स्कीम की ब्याज दर 9.2 फीसदी, 5 साल वाली एनएससी की ब्याज दर 8.5 और 10 साल वाली एनएससीसी की ब्याज दर 8.8 फीसदी घोषित की गई थी और चुनाव को देखते हुए पिछले साल के मुकाबले ब्याज दर में बदलाव भी नहीं किया गया था।


शाॅर्ट टर्म सेविंग्स

मोदी सरकार ने शॉर्ट टर्म सेविंग्स पर अच्छी-खासी कटौती की है। 1 अप्रैल 2013 से वित्त वर्ष 2013-14 के लिए लागू ब्याज दर इस प्रकार थी- एक साल के लिए डिपोजिट पर 8.2 फीसदी, दो साल के लिए डिपोजिट पर 8.3 फीसदी, 3 साल के लिए डिपोजिट पर 8.4 फीसदी, पांच साल के लिए डिपोजिट पर 8.5 फीसदी ब्याज मिलता था, लेकिन 28 जून, 2019 को जारी नई ब्याज दर के मुताबिक, अब 1 से 3 साल तक के लिए डिपोजिट करने पर एक ही ब्याज दर 6.9 फीसदी कर दी गई है। जबकि पांच साल तक के लिए जमा कराने पर 7.7 फीसदी ब्याज मिलेगा।

यह ब्याज दर भी चुनाव से पहले बढ़ाई गई थी। वर्ना, 1 जुलाई, 2018 से लेकर 30 सितंबर, 2018 के बीच लोगों को 1 वर्ष के लिए 6.6 फीसदी, 2 वर्ष के लिए 6.7 फीसदी और 3 वर्ष के लिए पैसा जमा कराने पर 6.9 फीसदी ब्याज ही दिया गया। स्मॉल सेविंग्स स्कीम पर पहले साल में एक बार ब्याज दर बढ़ाई जाती थी जो साल भर की बचत पर मिलती थी। लेकिन इस सरकार ने ज्यादातर योजनाओं की ब्याज दर की गणना तिमाही आधार पर कर दी है। इस कारण सरकार अब हर तीन महीने में ब्याज दर बदल देती है। इस वजह से भी लोग अब इस पर ज्यादा भरोसा नहीं करते क्योंकि तीन महीने बाद नई ब्याज दर क्या होंगी, लोग इस असमंजस में रहते हैं।

अब बात करते हैं, कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) की। प्राइवेट सेक्टर और कंपनियों में काम करने वाले लोगों के लिए पीएफ बहुत महत्व रखता है। हर माह मिलने वाली तनख्वाह का एक हिस्सा पीएफ में जमा होता है जो आकर्षक ब्याज के साथ वापस मिलता है, बल्कि उसमें एक राशि पेंशन के तौर पर रिटायरमेंट के बाद मिलती है। कर्मचारी इसमें पैसा इसलिए रखना चाहते हैं, क्योंकि इस पर मिलने वाला ब्याज दूसरी लगभग सभी योजनाएं से बेहतर होता है।

एक समय, वर्ष 1989-90 से लेकर 1999-2000 तक पीएफ पर 12 फीसदी की दर से ब्याज मिला करता था, लेकिन 2000-2001 में अचानक पीएफ ब्याज की दर 9.5 फीसदी कर दी गई। उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। वैसे, उसके बाद कभी भी ब्याज दर 9.5 फीसदी तक नहीं पहुंची और कम ही होती चली गई। लेकिन जब दोबारा 2014 में बीजेपी सरकार आई तो उस समय पीएफ की ब्याज दर 8.75 फीसदी थी। 2013-14 और 2014-15 में पीएफ की ब्याज दर 8.75 फीसदी थी और 2017-18 में सबसे न्यूनतम 8.55 फीसदी पर पहुंच गई। हालांकि आम चुनाव को देखते हुए 2019-20 में ब्याज दर को बढ़ा कर 8.65 फीसदी किया गया था।


पीएफ का भी बुरा हाल

इतना ही नहीं, मोदी युग में पहली बार लगभग 5 करोड़ लोगों के पीएफ खातों को मेनटेन करने वाले कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने अनसेक्योर्ड इन्वेस्टमेंट (असुरक्षित निवेश) पर पैसा लगाया है। मोदी सरकार किस तरह शेयर बाजार को बढ़ावा देना चाहती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि2014 में सत्ता संभालने के बाद बीजेपी ने ईपीएफओ पर शेयर बाजार में पैसे लगाने के लिए दबाव बनाना शुरू किया।

अंततः 31 मार्च, 2015 को न्यासी बोर्ड बैठक में यह फैसला ले लिया गया। 6 अगस्त, 2015 से ईपीएफओ ने शेयर बाजार में पैसे निवेश करना शुरू कर दिया। पहले ईपीएफओ ने 5 फीसदी पैसा लगाया जो बढ़ते-बढ़ते 15 फीसदी तक पहुंच चुका है। लेकिन इसका फायदा हो रहा है या नुकसान, सरकार के पास इसके आंकड़े नहीं हैं।

यह बात तब पता चली, जब कोयबंटूर से सांसद पीआर नटराजन ने संसद में 15 जुलाई, 2019 को इस पर सवाल किया। नटराजन ने सवाल किया कि क्या ईपीएफओ के पैसे का निजी क्षेत्र में गैर बैंकिंग कंपनियों में निवेश किया गया है, जिन्होंने अभी तक बेहतर लाभ दिए हैं? श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने जवाब दिया कि ईपीएफओ निफ्टी-50, सेंसेक्स, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम और भारत 22 इंडसिज के साथ एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में निवेश कर रहा है।

लेकिन सरकार ने दूसरे सवाल का जवाब नहीं दिया। सवाल था, गत पांच वर्षों के दौरान प्राप्त औसत मुनाफों का क्षेत्रवार ब्यौरा क्या है? जवाब मिला- सूचना एकत्र की जा रही है और उसे सदन के सभा पटल पर रख दिया जाएगा। हैरानी की बात है कि 2015 से निवेश की प्रक्रिया शुरू हुई, संभव है कि हर साल ईपीएफओ की बैलेंस शीट बनती होगी, लेकिन सरकार ने उन सालों का ब्यौरा तक नहीं दिया।

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