भीमा-कोरेगांवः बरसी पर रहा पुलिस का पहरा, चंद्रशेखर बोले- संविधान की हत्या पर उतारू बीजेपी को सिखाएंगे सबक

भीमा-कोरेगांव संघर्ष की 201वीं वर्षगांठ पर मंगलवार को दलित समाज के हजारों लोगों ने भारी सुरक्षा के बीच महाराष्ट्र के पुणे स्थित गांव पहुंचकर ‘जय स्तंभ’ पर श्रद्धांजलि अर्पित की। भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद को वहां जाने की इजाजत नहीं दी गई थी।

फोटोः सोशल मीडिया
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भाषा सिंह

भीमा-कोरेगांव संघर्ष की 201वीं वर्षगांठ के मौके पर मंगलवार को हजारों लोगों ने महाराष्ट्र के पुणे स्थित गांव पहुंचकर 'जय स्तंभ' पर श्रद्धांजलि अर्पित की। भारी सुरक्षा इंतेजाम के बीच प्रकाश आंबेडकर समेत कई दलित नेताओं के नेतृत्व में कई दलित संगठनों के लोग श्रद्धांजलि स्थल पर पहुंचे। एहतियात के तौर पर प्रशासन ने इलके में भारी पुलिस बंदोबस्त कर रखा था और इलाके में इंटरनेट सेवा पर भी पाबंदी लगा दी गई थी। इससे एक दिन पहले हाईकोर्ट ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को भीमा-कोरेगांव में सभा की इजाजत देने से इनकार कर दिया था, जिसकी वजह से वह वहां नहीं जा सके। इससे पहले उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से अपनी यात्रा शुरू कर 29 दिसंबर को मुंबई पहुंचे भीम आर्मी के अध्यक्ष और युवा दलित नेता चंद्रशेखर आजाद को घंटों होटल में नजरबंद रखने क बाद पुलिस ने हिरासत में ले लिया था।

चंद्रशेखर आजाद 2019 में बीजेपी को हटाने का नारा देकर अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता का ऐलान कर चुके हैं। मुंबई-पूणे में सभा की मंजूरी नहीं मिलने के बावजूद चंद्रशेखर की आगवानी में बड़ी संख्या में उत्साही युवकों का पहुंचना समाज में बड़े परिवर्तन की सुगबुगाहट है। वह राष्ट्रीय स्तर पर अपने संगठन का विस्तार करने और इसकी राजनीतिक धमक का अहसास कराने के मिशन में जुट गए हैं। इसी के तहत देश भर में जा-जाकर रैलियां और सभाएं कर रहे हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि वह सामाजिक स्तर पर संगठन को मजबूत करेंगे, लेकिन चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन राजनीतिक हलकों में खासतौर से क्षेत्रीय पार्टियों में चंद्रशेखर को लेकर खलबली है। नवजीवन के लिए भाषा सिंह ने चंद्रशेखर आजाद से बातचीत की है। पेश हैं उसके अंश।

मुंबई, पूणे और भीमा-कोरेगांव में प्रशासन की मंजूरी नहीं मिलने के बावजूद आप अपने कार्यक्रम को जारी रखे हुए हैं। क्या लक्ष्य है?

सीधी सी बात है, यह देश किसी के बाप का नहीं है। हम सबका है। बाबा साहेब ने जो संविधान दिया है, उससे चलेंगे हम सब। मुझे जिस तरह से मुंबई में नजरबंद रखा, पूणे में मंजूरी नहीं दी, यह संविधान की हत्या है। यह बर्दाश्त नहीं है। यह अघोषित आपातकाल है। बीजेपी और उसकी सरकार में बैठे लोग चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस हों, सब खुद को संविधान से ऊपर मान बैठे हैं। उन्हें याद रखना चाहिए, जनता बैठा सकती है तो उतार भी सकती है। हम सिखाएंगे सबक।

भीमा-कोरेगांव क्यों जाना चाहते हैं?

यह हमारे संघर्ष का प्रतीक है। यह हमारा अधिकार है। हमारे समाज ने यहां आजादी-बराबरी के लिए लड़ाई लड़ी। मैं इस संघर्ष के समर्थन में हूं। क्या यह मेरा हक नहीं है? क्या वह देश का हिस्सा नहीं है, जो मैं वहां नहीं जा सकता ?

देश 2019 के चुनाव के लिए तैयार हो रहा है। क्या संभावना देख रहे हैं?

मोदी सरकार का जाना तय है। यह मनुवादी सरकार है। इन्होंने देश को साढ़े चार साल में बुरी तरह से लूट लिया और अब खिसकने की तैयारी है। यह सरकार, दलितों-पिछड़ों-मुसलमानों के खिलाफ काम कर रही है। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम का समाज परिवर्तन का जो लक्ष्य था, वह हमें हासिल करना है और समाज-राजनीति को वहीं ले जाना है।

आप लगातार संविधान बचाने, लोकतंत्र बचाने की बात कर रहे हैं, दिक्कत क्या नजर आ रही है ?

देश में कानून का राज नहीं रह गया। आगरा में हमारे समुदाय की बहन अंजलि को जिंदा जला रहे हैं, बुलंदशहर में पुलिस अधिकारी को भीड़ मार देती है, सुप्रीम कोर्ट के जज बाहर आकर गुहार लगाते हैं, आरबीआई गर्वनर इस्तीफा देते हैं, सीबीआई को बर्बाद कर दिया, देश का ऐसा हाल कभी नहीं रहा। लोकतंत्र पर राजतंत्र हावी है। मोदी और योगी को लोकतंत्र पर भरोसा नहीं।

आप लगातार अल्पसंख्यकों के हकों की बात कर रहे हैं, क्या वह आपके साथ आएंगे?

मैं साफ बात करने वाला आदमी हूं। सच्चर कमिटी की रिपोर्ट हमने पढ़ी है और हमें लगता है कि उनकी हालत खराब है। बड़ी आबादी है उनकी और अभी तक वे देश के खिलाफ तो काम करते नहीं आए, जबकि बीजेपी-संघ उन्हें भड़काने के सारे काम करते रहते हैं। उन पर हमले भी सीधे और तीखे हैं। इतनी असुरक्षा का भाव ठीक नहीं है। सिर्फ उनके लिए ही नहीं, हमारे आपके लिए भी, हमारे लोकतंत्र के लिए भी। लिहाजा, हमें साथ आना ही चाहिए, यह स्वाभाविक भी है। गाय के नाम पर उन्हें रोज मारा जा रहा है, नोएडा में पार्क में नमाज पढ़ने पर फसाद, लेकिन फिर भी ये समुदाय खुद को काबू में रखे हुए है। मेरा यह मानना है कि ये गलत है, ऐसा नहीं होना चाहिए। भीम आर्मी की तरफ से हम इसका विरोध करते हैं और दलित-मुस्लिम एकता के लिए काम करने की जरूरत है।

दलितों के साथ-साथ समाज में बड़े पैमाने पर युवाओं में भारी बेचैनी है..

आज, युवाओं को नेतृत्व देने की जरूरत है, कमान उनके पास होनी चाहिए। प्रधान सेवक हैं, वह तो देश में ही नहीं रहते। वह टूरिंग पीएम हैं। युवाओं के नाम पर सत्ता में आए और सबसे ज्यादा उन्हें ही ठगा। पीएम देश की किसी समस्या पर मुंह नहीं खोलते, एक ट्वीट तक नहीं करते। इसलिए युवाओं में भारी बेचैनी है और वह अब जवाब देना चाहता है।

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