बीएचयू ने शुरू किया ‘आदर्श बहू’ बनाने का कोर्स, बुद्धिजीवियों ने बताया समाज को पीछे ले जाने वाला कदम

युवा कौशल भारत के तहत 3 महीने की इस ट्रेनिंग में लड़कियों को पारस्परिक कौशल, समस्या सुलझाने, तनाव पर नियंत्रण रखने की कला, कंप्यूटर और फैशन की जानकारी के साथ विवाह कौशल और सामाजिकता के भी गुण सिखाए जाएंगे।

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नवजीवन डेस्क

देश के प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्रों में से एक माना जाने वाला बनारस का काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) अब लड़कियों को आदर्श बहू बनने की ट्रेनिंग दे रहा है। इसके लिए बीएचयू के आईआईटी विभाग में तीन महीने का कोर्स शुरू किया गया है। यंग स्किल्ड इंडिया ने इसके लिए तीन महीने का कोर्स मॉड्यूल तैयार किया है। यंग स्किल्ड इंडिया के सीईओ नीरज श्रीवास्तव ने इसके बारे में बताया कि इस कोर्स से न सिर्फ लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि उनका सामाजीकरण भी होगा। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत समाज में बढ़ती हुई समस्याओं को देखते हुए की जा रही है।

ऐसे समय में जब महिलाएं समाज के हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, बल्कि उनसे आगे निकल रही हैं और नेतृत्व कर रही हैं, तब एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में इस तरह का कोर्स शुरू करना इसके पीछे की सोच पर सवाल खड़े करता है। इसको लेकर आईआईएमसी में अध्यापक और बीएचयू में ही पढ़े आनंद प्रधान ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस कदम को दकियानूसी और युवतियों को पीछे धकेलने वाला बताया है। उन्होंने कहा, “ये सुन कर ही बहुत अजीब लग रहा है, क्योंकि एक यूनिवर्सिटी का काम देश के लोगों को चाहे वह स्त्री हों या पुरुष एक बेहतर नागरिक बनाने का होता है।”

आनंद प्रधान ने कहा कि ये अभी स्पष्ट तौर पर तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन लगता है कि इस सोच के पीछे पिछले साल लड़कियों का बगावती रुख और उनके द्वारा किया गया आंदोलन कारण हो सकता। उन्होंने कहा, “उम्मीद थी कि यंग स्किल्ड इंडिया के तहत सरकार बड़ी संख्या में लड़कियों को बेहतर प्रोफेसर, पायलट, नेता, वकील, लेखक, उद्यमी, समाजसेवी बनाने के लिए प्रशिक्षित और प्रेरित करेगी। लेकिन इससे तो साफ दिख रहा है कि ये लोग लड़कियों को वापस उस दकियानूसी सोच के दायरे में ही सीमित कर देना चाहते हैं, जिसमें महिलाओं को केवल मां, बहन, बेटी और बहू की भूमिका में ही देखा जाता है।”

वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने बीएचयू के इस कदम की निंदा की है और लोगों से इसका विरोध करने की अपील की है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, बीएचयू के संस्थापकों में से एक और वहां के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष मेरे नाना हरिनाम पांडे को भी इस फैसले से काफी धक्का लगा होता। उन्होंने मेरी मां शिवानी सहित अपनी नातिनों को कॉलेज में भेजा और अपनी वसीयत में भाईयों के साथ उन्हें भी उत्तराधिकारी बनाया था।

संगीत निर्देशक विशाल डडलानी ने भी बीएचयू के इस कदम पर आश्चर्य जताया है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि इसके पीछे की मूर्खता और घोर लैंगिकता अद्भुत है।

गौरतलब है कि अभी से लगभग ठीक एक साल पहले बीएचयू देश की सुर्खियों में छाया हुआ था। मामला था विश्वविद्यालय में आए दिन होने वाली छेड़खानी के खिलाफ वहां की छात्राओं का आंदोलन। लड़कियों की मांग थी कि विश्वविद्यालय परिसर में आए दिन होने वाली छेड़खानी पर रोक लगे। कई दिनों तक आंदोलन चलता रहा, विश्वविद्यालय प्रशासन और जिला प्रशासन से लड़कियों की जोर-आजमाइश होती रही और फिर आखिर में वही हुआ कि प्रशासन ने रात के अंधेरे में लड़कियों पर लाठीचार्ज कर आंदोलन को कुचल दिया। इस पूरे प्रकरण में विश्वविद्यालय प्रशासन का दमनात्मक रवैया कई दिनों तक सुर्खियों में रहा था। अब उस घटना के लगभग एक साल बाद महिलाओं को आदर्श बहू बनाने के लिए एक कोर्स शुरू कर एक बार फिर यह ऐतिहासिक विश्वविद्यालय सुर्खियों में है। बीएचयू के इस अजीबोगरीब फैसले पर रघुवीर सहाय की कुछ पंक्तियां बरबस याद आने लगती हैंः

पढ़िए गीता, बनिए सीता

किसी मूर्ख की बन परिणीता

निज घर बार बसाइये।

होंय कंटीली आंखें गीली

लकड़ी सीली, तबियत ढीली

घर की सबसे बड़ी पतीली

भरके भात पसाइए।।

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