उत्तराखंड देवस्थानम बोर्ड के गठन पर त्रिवेंद्र सरकार को झटका, बीजेपी नेता की याचिका पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड की बीजेपी सरकार द्वारा श्राइन बोर्ड की तर्ज पर पर्वतीय क्षेत्रों के तीर्थ स्थलों पर नियंत्रण के लिए देवस्थानम बोर्ड बनाने के खिलाफ बीजेपी के ही सांसद डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

उत्तराखंड में चार धामों समेत 51 तीर्थ स्थानों के सरकारी नियंत्रण के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को बीजेपी के ही राज्यसभा सांसद डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है।

बीजेपी सांसद डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने श्राइन बोर्ड की तर्ज पर पर्वतीय क्षेत्रों के तीर्थ स्थलों को नियंत्रित करने के लिए देवस्थानम बोर्ड बनाने के उत्तराखंड सरकार के निर्णय को असंवैधानिक और हिंदू धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगराजन की पीठ ने याचिकाकर्ता और प्रदेश सरकार के वकीलों की दलील सुनने के बाद राज्य सरकार को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।

सुब्रह्मण्यम स्वामी, जो कि बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं, ने तीन दिन पहले एक ट्वीट के जरिए जानकारी दी थी कि सोमवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट में वहां की सरकार द्वारा उत्तराखंड श्राईनबोर्ड के गठन के कदम के खिलाफ दाखिल याचिका को मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगराजन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

उत्तराखंड की बीजेपी सरकार के इस कदम का चार धाम तीर्थ पुरोहितों ने खुला विरोध किया है। हालांकि राज्य सरकार ने भले ही बीजेपी से जुड़े कुछ तीर्थ पुरोहितों को समझाकर शांत कर दिया है, लेकिन अभी भी कई पंडे और पुजारियों के धड़े सरकार के कदम के विरोध पर खुलकर डटे हुए हैं। उत्तराखंड के इस श्राईन बोर्ड में केवल उन 51 धार्मिक स्थलों और मंदिरों को शामिल किया गया है, जो पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित मंदिर हैं। इनमें बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और जमनोत्री धाम भी शामिल हैं। इन धामों के तीर्थ पुरोहितों ने सवाल उठाए थे कि हरिद्वार और तराई क्षेत्र के अन्य बड़े और चर्चित मंदिरों को श्राईन बोर्ड में शामिल क्यों नहीं किया गया है।

केदारनाथ के कांग्रेस विधायक मनोज रावत ने राज्य की बीजेपी सरकार के इस कदम को उत्तराखंड के हितों के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा, “देश-विदेश में धार्मिक आस्था के लिए चार धाम यात्रा से उत्तराखंड की पहचान बनी है। शीर्ष धर्म स्थानों को नौकरशाही के नियंत्रण में लाने का देश-दुनिया में गलत संदेश गया है। अब हालात ये हैं कि सदियों से जो तीर्थ-पुरोहित परंपरा सुचारू तौर पर चली आ रही थी, उसमें अब पुजारियों और पुराहितों को राज्य सरकार के अधिकारियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है।”


विधायक मनोज रावत ने श्राईन बोर्ड की तर्ज पर देवस्थानम बोर्ड बनाने का विधानसभा में खुलकर विरोध किया था। इसके अलावा उन्होंने रुद्रप्रयाग, जोशीमठ, श्रीनगर, उत्तरकाशी और देहरादून समेत अन्य जगहों पर तीर्थ पुरोहितों और पुजारियों के विरोध-प्रदर्शन में भी शिरकत की।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2019 को राज्य सरकारों द्वारा धार्मिक स्थलों और मंदिरों के नियंत्रण को अपने हाथ में लेने के कदम पर चिंता प्रकट करते हुए कहा था कि यह काम मंदिरों और मठों के भक्तों और अनुयायियों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को नजीर माना गया था, जिसमें 1500 साल पुराने चिदंबरम जिले के नटराज मंदिर के प्रशासनिक नियंत्रण को तमिलनाडु सरकार के हाथों से बाहर करने के आदेश दिए गए थे।

जस्टिस एस ए बोबडे, जो वर्तमान में देश के प्रधान न्यायाधीश हैं, ने अपने आदेश में टिप्पणी की थी कि “हमने कई बार चिदंबरम के मंदिर से जुड़े मामलों की जांच की है। हम यह नहीं समझ पा रहे कि सरकारी अधिकारियों को मंदिरों का नियंत्रण क्यों करना चाहिए।” जस्टिस बोबडे के साथ पीठ में शामिल जस्टिस एस ए नजीर ने टिप्पणी की थी कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के प्रशासनिक नियंत्रण के बाबत फैसले के वक्त इस मामले को तय करेंगे।

ज्ञात रहे कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर की प्रबंधन समिति द्वारा भक्तों और अनुयायियों के शोषण से संबंधित एक याचिका में आरोप लगाया गया था कि मंदिर प्रशासन परिसर को साफ-सुथरा रखने में नाकाम रहा है। सर्वोच्च अदालत ने 4 नवंबर 2019 को पारित अपने आदेश में ओडिशा सरकार को निर्देश दिया था कि वह जगन्नाथ मंदिर की व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए एक प्रशासक नियुक्त करे।

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