बिहार: नहीं रहे महान भारतीय गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह, आइंस्टीन को चुनौती देकर दुनियाभर में हुए थे प्रसिद्ध

कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से Phd. की डिग्री प्राप्त करने के बाद चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर किए गए वशिष्ठ के शोध ने उन्हें भारत और विश्वभर में प्रसिद्ध कर दिया। बिहार सरकार ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार कराने का ऐलान किया है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

नवजीवन डेस्क

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार को बिहार की राजधानी पटना में निधन हो गया। वह 77 साल के थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके निधन पर शोक जताते हुए इसे समाज और बिहार के लिए एक बड़ा नुकसान बताया। सिंह करीब 40 साल से सिजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित थे।

उनके एक करीबी ने बताया कि कुछ समय से पटना में रहने वाले सिंह की तबीयत गुरुवार तड़के खराब हो गई थी, जिसके बाद परिजन उन्हें लेकर तत्काल पटना मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (PMCH) पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

बिहार के भोजपुर के बसंतपुर के रहने वाले सिंह की तबीयत पिछले महीने भी खराब हुई थी, जिनका इलाज PMCH में ही कराया गया था, बाद में इन्हें छुट्टी दे दी गई थी। उनके निधन पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताया है। उन्होंने डॉ़ सिंह के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि सिंह ने समाज और बिहार का नाम रौशन किया है।

उन्होंने कहा, "उनका निधन बिहार के लिए अपूर्णीय क्षति है। वे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उन्हें श्रद्घांजलि अर्पित करता हूं।"


वशिष्ठ नारायण के निधन के बाद बिहार सरकार ने ऐलान किया है कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अपने शैक्षणिक जीवनकाल से ही कुशाग्र रहे थे। डॉ़ सिंह नेतरहाट आवासीय विद्यालय के छात्र थे और सन 1962 उन्होंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। पटना सायंस कॉलेज में पढ़ते हुए उनकी मुलाकात अमेरिका से पटना आए प्रोफेसर कैली से हुई। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रोफेसर कैली ने उन्हे बर्कली आ कर शोध करने का निमंत्रण दिया।

सन 1963 में वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए चले गए। 1969 में उन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्घांत पर किए गए उनके शोध कार्य ने उन्हें भारत और विश्वभर में प्रसिद्घ कर दिया।

वशिष्ठ नारायण सिंह ने दुनिया के आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। उनके बारे में एक बात यह भी मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था।


अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद कुछ समय के लिए वह भारत आए, मगर जल्द ही अमेरिका वापस चले गए और वॉशिंगटन में गणित के प्रोफेसर के पद पर काम किया। इसके बाद 1971 में सिंह पुन: भारत वापस लौट गए। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में भी काम किया। ल 1974 से वे कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो गए थे।

(आईएएनएस इनपुट के साथ)

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 14 Nov 2019, 12:35 PM