नीतीश के करीबी पूर्व मंत्री मेवालाल को लकेर चौंकाने वाले खुलासे, करीब चार साल तक दबा के रखी गई के घोटाले की फाइल

बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (बीएयू) नियुक्ति घोटाले में भागलपुर पुलिस ने तत्कालीन कुलपति और सह पूर्व मंत्री मेवालाल चौधरी को लंबे समय तक बचाए रखा। पुलिस ने उनपर लगे आरोपों की फाइल को करीब चार साल तक दबाए रखी।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

बिहार की नीतीश सरकार की शुरुआत विवादों से हुई। मंत्रिमंडल गठन के कुछ घंटे बाद ही एक मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। ये मंत्री थे मेवालाल चौधरी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले मेवालाल चौधरी को शिक्षा मंत्री बनाया गया था, लेकिन अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। जिस घोटाले की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा अब उस मामले में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। खबर है कि बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (बीएयू) नियुक्ति घोटाले में भागलपुर पुलिस ने तत्कालीन कुलपति और सह पूर्व मंत्री मेवालाल चौधरी को लंबे समय तक बचाए रखा। पुलिस ने उनपर लगे आरोपों की फाइल को करीब चार साल तक दबाए रखी। उनके मामले की जांच आगे न बढ़े इसके लिए पुलिस ने अभियोजन स्वीकृति आदेश प्राप्त करने से जुड़ी फाइल दबाए रखी। कहा जा रहा है कि सरकार में पहुंच होने की वजह से ऐसा हुआ, जबकि इसी मामले में दूसरे आरोपियों को पुलिस ने सिर्फ छह महीने में ही अभियोजन चलाने से लेकर चार्जशीट तक फाइल कर दी।

एक ही मामले में पुलिस की इस दोहरी नीति से कई सवाल खड़े हो गए हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 अक्टूबर को पहली बार एसएसपी आशीष भारती ने केस के जांच अधिकारी को निर्देश दिया कि वे मेवालाल समेत अन्य आरोपियों पर अभियोजन चलाने के लिए आदेश हासिल करें। बता दें कि मेवालाल पर फरवरी 2017 में सबौर थाने में नियुक्ति घोटाले के आरोपों में केस दर्ज कराया गया था। जिसकी जांच में पुलिस ने मामले को सही पाया, लेकिन पुलिस ने इस केस की जांच को आगे बढ़ने ही नहीं दिया। दरअसल, चार्जशीट फाइल करने के लिए जरूरी अभियोजन स्वीकृति का प्रस्ताव पुलिस ने दिया ही नहीं। अब एसएसपी के आदेश के बाद बीएयू ने राजभवन को लिखा है।


विपक्षी दलों की तरफ से दावा किया जा रहा है कि मेवालाल को सरकार से संरक्षण प्राप्त था। इस दावे में सच्चाई भी लगती हैस क्योंकि बीते पौने चार सालों में इस केस की फाइल तैयार होने के बावजूद दो एसएसपी और तीन जांच अधिकारियों ने अपनी तरफ से कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाई।

वहीं इसी मामले में दो अन्य आरोपी बीएयू के तत्कालीन प्रभारी पदाधिकारी आरबी वर्मा और तत्कालीन सहायक निदेशक (नियुक्ति) अमित कुमार पर तेजी के साथ कार्रवाई हुई और पुलिस ने बीएयू से 27 जून 2017 को ही अभियोजन स्वीकृति आदेश प्राप्त कर लिया था। दोनों पर 10 अगस्त 2017 को ही चार्जशीट भी फाइल कर दी गई थी। यानी छह महीने में ही पुलिस ने सारी कार्यवाही पूरी कर चार्जशीट फाइल करने की सारी प्रक्रिया भी पूरी हो गई थी। लेकिन घोटाले से जुड़े सबसे अहम कड़ी तत्कालीन कुलपति मेवालाल चौधरी के मामले में पुलिस ने अभियोजन स्वीकृति का प्रस्ताव देने में पौने चार साल लगा दिए।

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