बिहार: जिस पर धोखाधड़ी का आरोप उसे दिए गए चार-चार विश्वविद्यालयों के कुलपति के अधिकार, कुलाधिपति पर उठ रहे सवाल

आरटीआई एक्टिविस्ट रोहित कुमार का कहना है कि 17 में से नौ विश्वविद्यालयों में यूपी के ‘शिक्षाविद’ कुलपति हैं। इनमें से एक को चार विश्वविद्यालयों में ‘अस्थायी तौर पर’ कुलपति नियुक्ति किया गया है और एक अन्य दो विश्वविद्यालयों का कार्यभार संभाल रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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शिशिर

सितंबर, 2019 में पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर बिहार के राज्यपाल को लेकर परिचय इस प्रकार थाः “महामहिम फागू चौहान के ट्रांसफर्मर फैक्ट्री और कोल्ड स्टोरीज (!)- जैसे कई बिजनेस प्रोफेशन हैं। वह मऊ जिले में सबसे धनी राजनीतिज्ञ हैं, यहां तक कि मुख्तार अंसारी से भी ज्यादा धनी...।’’ घटिया वाक्य और व्याकरण वाले इस तरह के अजीबोगरीब परिचय को जल्दी ही हटा लिया गया लेकिन कई लोग यह जरूर जानने को इच्छुक हो गए कि यह फागू चौहान हैं कौन? क्या उन्होंने या उनके कार्यालय ने इस तरह परिचय दिए जाने की अनुमति दी थी?

चौहान का परिचय, वैसे, जानने लायक है। वह यूपी के आजमगढ़ के प्रमुख ओबीसी चेहरे रहे हैं। वह चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले दलित मजदूर किसान पार्टी (डीएमकेपी), जनता दल, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की ओर से समय-समय पर विधायक रहे हैं। वह मायावती और राजनाथ सिंह के मंत्रिमंडलों के सदस्य रहे। 2017 में जब योगीआदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने चौहान को अपनी कैबिनेट में नहीं रखा। 2019 में चौहान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया। चौहान के तीन पुत्र और चार पुत्रियां हैं।

वैसे, मऊ जिले में सबसे धनी राजनीतिज्ञ की बात ने चौहान के लिए समस्या खड़ी कर दी। बिहार में सूचना के अधिकार (आरटीआई) से जुड़े कई एक्टिविस्ट उनके बारे में जानने को इच्छुक हो गए। उन पर बिहार के 17 विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के तौर पर गलत ढंग से नियुक्तियां करने और यूपी के लोगों और फर्मों को ठेके देने के आरोप लगाए जा रहे हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट रोहित कुमार का कहना है कि 17 में से नौ विश्वविद्यालयों में यूपी के ‘शिक्षाविद’ कुलपति हैं। इनमें से एक को चार विश्वविद्यालयों में ‘अस्थायी तौर पर’ कुलपति नियुक्ति किया गया है और एक अन्य दो विश्वविद्यालयों का कार्यभार संभाल रहे हैं।


कुमार ने प्रधानमंत्री कार्यालय को ‘प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्तिगत तौर पर देखने और समुचित कार्यवाही के लिए’ फिर एक पत्र लिखा है। उनका कहना है कि मसला सिर्फ ‘अयोग्य, दागी और भ्रष्ट शिक्षाविदों की कुलपति के तौर पर नियुक्ति’ तक सीमित नहीं है बल्कि यह बढ़कर वित्तीय मामलों तक पहुंच गया है। इस संदर्भ में उन्होंने मार्च, 2021 में मगध विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, वित्त परामर्शी और वित्त अधिकारी के कुलाधिपति को लिखे संयुक्त पत्र का भी उल्लेख किया है जिसमें आरोप लगाया गया था कि कुलपति उन पर लखनऊ की दो फर्मों को 16 करोड़ रुपये के विवादास्पद भुगतान पर सहमति देने का दबाव बना रहे हैं। राज्यपाल सचिवालय को भेजे इस संयुक्त पत्र में कहा गया था कि कुलपति डॉ. प्रो. राजेंद्र प्रसाद ने परीक्षा प्रश्न पत्र, ओएमआर शीट आदिका काम बिना टेंडर किए उस कंपनी को दिया जिस पर पटना हाईकोर्ट में अवैध भुगतान हासिल करने का एक केस पहले से चल रहा है। तीनों अधिकारियों ने राजभवन को यह भी बताया कि पूर्ववर्ती कुलाधिपति की ओर से ही इस कंपनी के खिलाफ जांच चल भी रही है। इसके बावजूद ऐसी कंपनी को कुलपति 16 करोड़ रुपये भुगतान करने का दबाव बना रहे हैं। राजभवन को यह चिट्ठी 9 मार्च, 2021 को भेजी गई। इस पर कार्रवाई यह हुई कि रजिस्ट्रार डॉ. विजय कुमार को कुलपति की अनुशंसा पर 19 मार्च की तारीख से हटा दिया गया और उसी दिन वित्त परामर्शी मधुसूदन का तबादला भागलपुर कर दिया गया। बाद में, वित्त पदाधिकारी ने हालात से तंग आकर 5 अप्रैल, 2021 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

भागलपुर विश्वविद्यालय में एक बड़े ओहदे से रिटायर एक शिक्षाविद् नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि नियुक्तियों के लिए सेटिंग-गेटिंग का खेल नया नहीं है लेकिन इस बार इंतहा हो गई है कि कुलाधिपति को सिर्फ 2-3 लोग ही नजर आ रहे हैं। वह कहते हैं कि जिस व्यक्ति की कोई शैक्षणिक- प्रशासनिक पहचान नहीं हो, उसे एक के बाद एक चार-चार विश्वविद्यालयों के कुलपति के अधिकार दे दिए गए हैं जबकि एक वीसी को हर दिन न जाने कितने कागजातों पर दस्तखत करने होते हैं और शैक्षणिक गतिविधियों को लेकर योजना बनानी होती है। नियुक्तियों में कम-से-कम साफ-सुथरी छविका ध्यान तो रखा ही जाना चाहिए जबकि दरभंगा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुरेंद्र प्रताप सिंह पर फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी को लेकर प्राथमिकी दर्ज है। उन्हें चार विश्वविद्यालयों के कुलपति का दायित्व सौंप दिया गया है। खास बात यह है कि इनमें एक आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है जबकि एक अन्य अल्पसंख्यकों के लिए विशेष रूप से बनाया गया मौलाना मजहरूलहक अरबी फारसी विश्वविद्यालय है। इसी तरह पटना के नालंदा खुला विश्वविद्यालय और मुजफ्फरपुर के भीम राव आम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- दोनों के कुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद पांडेय हैं। दोनों का कामकाज बिल्कुल अलग और प्राथमिकताएं अलग हैं।


राष्ट्रीय जनता दल के छात्र नेता अरविंद पटेल कहते हैं कि इस तरह की अस्थायी व्यवस्था का हाल यह है कि नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी ने काफी पहले जो परीक्षाएं लीं, उनका परिणाम अब तक नहीं दिया है। अन्य कामकाज करने वाले लोगों के लिए खुला विश्वविद्यालय ही विकल्प होता है और परीक्षा देकर परिणाम का इंतजार कर रहे लोगों की परेशानी समझने वाला कोई नहीं है। कुमार ने पीएमओ को भेजे पत्र में यह भी बताया है कि कैसे वरीयता क्रम में नीचे रहने वालों को पद दिया जा रहा है और किस कारण से कुछ खास पद विशेष लोगों के बीच ही बंट जा रहे हैं। कुमार कहते हैं कि मई, 2020 से फरवरी, 2021 तक उन्होंने राजभवन को कई प्रमाण दिए, पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।

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