हिंदू वोट बैंक के लिए बीजेपी नागरिकता विधेयक पर अड़ी, पहचान पर आए संकट से पूर्वोत्तर के मूल निवासी गुस्से में

बीजेपी भले घुसपैठ को धार्मिक नजरिये से देखती है लेकिन पूर्वोत्तर के लोग इसे ऐसे नहीं देखते। उनका कहना है कि घुसपैठिए हिंदू हों या मुस्लिम- उनको निकाला जाना चाहिए। यहां की जनता बांग्ला भाषी घुसपैठियों को अपनी सांस्कृतिक और भाषायी पहचान के लिए खतरा मानती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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दिनकर कुमार

मणिपुर में 18 नवंबर को हुए जनता बंद से ही बीजेपी को समझ में आ गया होगा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के अधिकांश लोग क्यों नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे हैं। लोगों को साफ-साफ लग रहा है कि बेवजह जिद पर अड़ी मोदी सरकार ने येन-केन-प्रकारेण यह विधेयक संसद से पास करा लिया, तो पूर्वोत्तर राज्यों और बंगाल में रह रहे बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी और पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासी अपनी पहचान खो देंगे जबकि आबादी के ढांचे में बदलाव हो जाएगा।

इस विधेयक के जरिये पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारत की नागरिकता देने का प्रावधान रखा गया है। 1985 के असम समझौते में विदेशियों को नागरिकता देने की कट ऑफ तिथि 24 मार्च 1971 निर्धारित की गई थी जिसे इस विधेयक में बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2014 कर दिया गया है।

दरअसल, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही बीजेपी को इसके जरिये पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में हिन्दू वोट बैंक मजबूत होने का लाभ दिखाई दे रहा है। असम में बीजेपी के मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तो खुलकर कहते रहे हैं कि इस विधेयक के लागू होने पर असम मुस्लिम-बहुल राज्य बनने से बच जाएगा और हिंदुओं का वर्चस्व कायम हो सकेगा।

बीजेपी भले ही घुसपैठ की समस्या को धार्मिक नजरिये से देखती है लेकिन पूर्वोत्तर के लोग इसे इस तरह नहीं देखते। उनका मानना है कि घुसपैठिए हिंदू हों या मुस्लिम- उनको निकाला जाना चाहिए। इन राज्यों की जनता बांगला भाषी घुसपैठियों को अपनी सांस्कृतिक और भाषायी पहचान के लिए खतरा मानती है।

संख्या की दृष्टि से जम्मू-कश्मीर के बाद असम सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला देश का दूसरा राज्य है। राज्य की कुल आबादी तीन करोड़ है और इसमें बांगला भाषी मुस्लिम 34 फीसदी हैं। कम तादाद वाले असमिया भाषी मुसलमान सभी धर्मों के घुसपैठियों को राज्य से निकालने की मांग करते रहे हैं।


असम के नागरिक संगठनों के मंच असम संग्रामी मंच के कार्यकारी अध्यक्ष अदीप फुकन कहते हैं, “अगर बीजेपी नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित करेगी तो असम में 80 के दशक से भी अधिक भयंकर आंदोलन शुरू हो जाएगा। असम के तमाम जनसंगठन अपने वैचारिक मतभेदों को भूलकर इस विधेयक का विरोध करेंगे। धार्मिक उत्पीड़न का बहाना बनाकर बीजेपी लाखों अवैध घुसपैठियों को नागरिकता देना चाहती है। जो हिंदू घुसपैठिए असम में भूमि पर कब्जा करने और आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने के लिए आए, उनको बीजेपी शरणार्थी का दर्जा देकर नागरिकता प्रदान करने की कोशिश कर रही है। अगर घुसपैठिए वास्तव में शरणार्थी हैं तो बीजेपी को उनके नामों और शिविरों की सूची प्रकाशित करनी चाहिए। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा आरएसएस और बीजेपी नेताओं को खुश रखने के लिए असम की जनता को इस मसले पर गुमराह कर रहे हैं। आरएसएस के उकसावे पर बीजेपी असम में हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता देकर असमिया लोगों को अल्पसंख्यक बनाने की साजिश रच रही है।”

अखिल असम छात्र संघ के सलाहकार समुज्ज्वल कुमार भट्टाचार्य का भी कहना है कि हम किसी भी हालत में इस विधेयक को स्वीकार नहीं करेंगे और इसका विरोध जारी रखेंगे। बीजेपी सरकार धर्म के नाम पर जो विभाजनकारी राजनीति कर रही है, उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बीजेपी के पास संसद में बहुमत है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह इस विधेयक के जरिये घुसपैठिये की परिभाषा ही बदल दे। इसकी वजह से असम सहित सभी पूर्वोत्तर राज्यों में आबादी की संरचना बिगड़ सकती है।

कानून विशेषज्ञ शिवजीत दत्त तो कहते हैं कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जिसके तहत सभी नागरिकों के समान अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है। इस विधेयक का चरित्र सांप्रदायिक, लोकतंत्र विरोधी, संविधान विरोधी और असम विरोधी है। धर्म के आधार पर नागरिकता देने का अर्थ है- भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर आघात करना। यह हिंदू राष्ट्र निर्माण की दिशा में उठाया गया कदम है। अगर धर्म के आधार पर नागरिकता दी जाएगी तो भविष्य में बीजेपी संविधान को पूरी तरह बदलकर अल्पसंख्यकों का जीना मुहाल कर देगी।

कानून के जानकार मृदुल कुमार संदिकै भी इस राय के हैं कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, जबकि इस संशोधन विधेयक के जरिये धर्म विशेष के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान संविधान के मूल्यों का उल्लंघन होगा। इस विधेयक के लागू होने पर असम का भाषायी तानाबाना बिखर जाएगा। असमिया लोग अल्पसंख्यक बनकर जीने के लिए विवश हो जाएंगे। इस विधेयक के पारित होने पर एनआरसी की कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाएगी। अवैध घुसपैठ की वजह से पहले ही हम लोग त्रिपुरा के लोगों को अल्पसंख्यक बनते हुए देख चुके हैं।

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