सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट में खुलासा, त्रिपुरा में लोकतंत्र को कुचल रही है बीजेपी

त्रिपुरा का दौरा करने वाली किसानों और सामाजिक संगठनों के नेताओं की एक जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 3 मार्च को बीजेपी-आईपीएफटी गठबंधन के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से राज्य में अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आईएएनएस

सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह ने त्रिपुरा का दौरा करने के बाद राज्य के हालात पर एक रिपोर्ट जारी किया है, जिसमें तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर दावा किया गया है कि राज्य में मार्च में आयी बीजेपी की सरकार बहुदलीय लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश कर रही है। किसान संगठनों और विभिन्न सामाजिक समूहों से जुड़े कार्यकर्ताओं की टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और सभी समुदायों के गरीबों के साथ हत्या, डकैती, लूट और अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं।

सात सदस्यीय इस टीम में नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की कार्यकर्ता मेधा पाटकर, अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष और सीपीएम के नेता अशोक धवले, अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव और सीपीआईएमएल के नेता राजाराम सिंह, सीपीएम के राज्यसभा सदस्य के के रागेश और त्रिपुरा के तीन सांसद जितेंद्र चौधरी, शंकर प्रसाद दत्ता और झरना दास बैद्य शामिल थे। रिपोर्ट जारी करते हुए मेधा पाटकर ने कहा, "राजनीतिक प्रतिशोध के सैकड़ों पीड़ितों द्वारा दर्ज कराई गई सैकड़ों प्राथमिकियों के बावजूद पुलिस और प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। राज्य के बड़े भाग में डर और आतंक का माहौल है।" उन्होंने कहा कि राज्य के पूरे विपक्ष को निशाने पर लिया जा रहा है, जिसमें मुख्य निशाना वाम दल हैं, लेकिन कांग्रेस जैसी अन्य विपक्षी पार्टियों को भी बख्शा नहीं गया है।

किसान नेता अशोक धवले ने कहा कि स्थानीय निकाय ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और शहरी नगरपालिका निकाय के चुने हुए एक-तिहाई नेताओं को गंभीर परिणामों के तहत इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है। जांच टीम के अनुसार, बीजेपी-आईपीएफटी गठबंधन के 3 मार्च को सत्ता संभालने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी के बदमाशों ने वामदलों के समर्थकों के 40 मछली तालाबों को विषाक्त कर दिया, कई कुक्कट फार्मों को लूट लिया और 54 रबड़ बागों को क्षतिग्रस्त कर दिया या जला दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी-आईपीएफटी सरकार के 5 महीनों के कार्यकाल में, सत्तारूढ़ पार्टी के उपद्रवियों द्वारा महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ और हमले की 112 घटनाएं दर्ज की गई हैं। वहीं सीपीएम के चार सदस्यों और नेताओं की हत्या कर दी गई। बीजेपी, आईपीएफटी और आरएसएस कार्यकर्ताओं के हमले में 113 महिलाओं समेत 1,047 वाम कार्यकर्ता घायल हुए हैं। इसके अलावा सीपीएम और वाम दलों के लगभग 633 कार्यालयों पर हमला कर उन्हें जला दिया गया या कब्जा कर लिया गया। वहीं, वाम संगठनों के 200 कार्यालयों पर हमले किए गए और 150 के आसपास कार्यालयों पर कब्जा कर लिया गया। साथ ही वामपंथी नेताओं के 2200 से ज्यादा घरों को जला दिया गया या बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

हालांकि, राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी ने इन आरोपों को निराधार बताया है। बीजेपी प्रवक्ता मृणाल कांति देब ने कहा कि जब मेधा पाटकर तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ बोलती थीं, तो वाम नेता उनकी भी बुराई करते थे। अब वे नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता का राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। देब ने उल्टा आरोप लगाते हुए कहा कि वामदल बीजेपी सरकार के खिलाफ साजिश रच रहे हैं।

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