भारत को हिंदू इजरायल में तब्दील कर रही है बीजेपी, असम में एनआरसी से भी नहीं लिया कोई सबकः हर्ष मंदर

पूर्व आईएएस और एक्टिविस्ट हर्ष मंदर का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून के पास होने पर लोग कह रहे हैं कि बीजेपी भारत को हिंदू पाकिस्तान के रूप में तब्दील कर रही है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि वह भारत को हिंदू इजरायल बना रही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

आईएएस ऑफिसर की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद सामाजिक-मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय हर्ष मंदर नागरिकता कानून में संशोधन से काफी व्यथित हैं। नवजीवन के लिए ऐशलीन मैथ्यू के साथ बातचीत में उन्होंने यह तक कहा कि लोग कह रहे हैं कि बीजेपी भारत को हिंदू पाकिस्तान के रूप में तब्दील कर रही है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि वह भारत को हिंदू इजरायल बना रही है। पेश हैं इस बातचीत के अंशः

देश भर में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की प्रक्रिया शुरू करने की बात और अब नागरिकता कानून- दोनों साथ-साथ आए हैं। आपकी क्या राय है?

नागरिकता (संशोधन) कानून भारत के सेकुलर, लोकतांत्रिक संविधान के अंत का संकेत है। यह किसी भी शासन के लिए कठोर टिप्पणी है, लेकिन इस सरकार ने हाल के वर्षों में जो किया है और कछ पूर्ववर्ती सरकारों ने समय-समय पर जो किया है, उसने हमारी कई संवैधानिक गारंटियों को क्षति पहुंचाई है और उन्हें खत्म किया है। हमारी राष्ट्रीयता और हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के मूल में यह विचार था कि यह देश हर धर्म के लोगों के लिए समान रूप से है। निश्चित तौर पर, इस विचार का हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू से ही विरोध कर रहे थे। इनका कहना था कि यह हिंदू राष्ट्र होना चाहिए जिसमें खास तौर से, मुसलमानों और ईसाइयों को दूसरे दरजे के नागरिक के तौर पर रहना होगा क्योंकि ये विदेशी धर्मों को मानने वाले लोग हैं। 1940 के दशक में मुस्लिम लीग ने यह दावा करते हुए अपनी मांग बढ़ा दी कि भारत एक नहीं, दो राष्ट्र हैंः भारत में हिंदू और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान।

लेकिन, हमें यह जरूर याद रखना होगा कि द्विराष्ट्र सिद्धांत के स्रोत वीडी सावरकर थे और नया नागरिकता कानून द्विराष्ट्र सिद्धांत का अनुमोदन है, क्योंकि भारतीय नागरिकों की उनकी ग्राह्यता की दृष्टि से मुसलमान बिल्कुल भिन्न श्रेणी में रख दिए जाएंगे। इसी वजह से यह गंभीर खतरा पैदा करता है। भारत को रक्तरंजित विभाजन के साथ आजादी मिली। इस बंटवारे की वजह से करीब दस लाख लोग मारे गए, लगभग 4 करोड़ लोग हिंदू-मुस्लिम हिंसा में विस्थापित हो गए और पाकिस्तान धर्म के आधार पर बना। ऐसे समय भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की घोषणा का गहरा दबाव था। लेकिन आजादी के आंदोलन के नेता बिल्कुल साफ राय के थे कि भारत मानवीय राष्ट्र बना रहेगा जहां देश में किसी व्यक्ति के अधिकार को लेकर उसका धर्म औचित्यहीन होगा। यही वह विचार है जिसे संशोधित नागरिकता कानून के जरिये नष्ट किया जा रहा है।

यह जो संशोधित नागरिकता कानून है, उसे लेकर आपके क्या विचार हैं- इससे पड़ोसी देशों से आए हिंदू भारतीय बन जाएंगे या यह सिर्फ अपने वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिए है?

आप देखिए, असम में क्या हुआ है। हमने पाया कि सर्वानंद सोनोवाल बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक खतरनाक निर्देश दिया जिसने प्रमाण देने का पक्ष बदल दिया। अब नागरिकों को प्रमाण देना था कि वे भारतीय नागरिक हैं, न कि सरकार को यह काम करना था। इसे प्रमाणित करने का आधार कई तरह के दस्तावेज थे, जो शहरी भारतीयों समेत हममें से अधिकांश बहुत मुश्किल से हासिल कर पाते हैं। ग्रामीण भारतीयों की बात तो छोड़ ही दीजिए क्योंकि अधिकांशतः वे लोग काफी कम पढ़े-लिखे और ज्यादातर भूमिहीन हैं। इन दस्तावेजों को जुटाने में उनकी क्षमता मुश्किल ही है। वे लोग अपनी जन्मतिथि नहीं जानते, वे स्कूल नहीं गए होते हैं, इसलिए उनके पास स्कूल सर्टिफिकेट नहीं होते हैं और चूंकि उनके पास जमीन नहीं होती इसलिए कोई लैंड रिकाॅर्ड भी नहीं होता। फिर भी, उन्हें न सिर्फ ये दस्तावेज पेश करने हैं बल्कि वह पूरी फैमिली ट्री भी देनी है जो उनकी परिवार परंपरा का दस्तावेज है और आपको ऐसे दस्तावेज देने हैं जो हर पीढ़ी के साथ संबंध को भी स्थापित करे।

आप असम के लोगों के कष्ट की कल्पना कर सकती हैं। जिस तरह की गरीबी है, जिस प्रकार की अशिक्षा है, उनके पास जिस तरह के संसाधन हैं, उनमें उन्होंने किस तरह की पीड़ा सही होगी। फिर, बीजेपी की केंद्र और वहां की राज्य सरकार ने ऐसे लोगों को नियुक्त किया जिन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल का कोई अनुभव नहीं है। उन पर अधिक-से-अधिक लोगों को विदेशी बता देने का दबाव अलग से था। ऐसी ही स्थितियों में 20 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर कर दिया गया। यह सत्तारूढ़ पार्टी के लिए राजनीतिक पहेली हो गई, क्योंकि सूत्रों के अनुसार, जो बाहर कर दिए गए, उनमें से 15 लाख लोग हिंदू थे। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि एनआरसी से बाहर रखे गए लोगों में बड़ी संख्या गैर मुस्लिमों की थी।


अगर बीजेपी को सरकार का नेतृत्व करना जारी रखना है जिनमें ये सभी घोषित विदेशी रहेंगे, तो यह उनके लिए आत्मघाती होगा। इसीलिए वे अब एनआरसी को नकार रहे हैं। उन्होंने प्रक्रिया का कार्यान्वयन किया और हमारा कहना है कि इस दौरान अल्पसंख्यकों के साथ भारी भेदभाव किया गया। अब, चूंकि अंतिम स्थिति उनके राजनीतिक उद्शदे्य को नहीं सुहाती, वे उसी प्रक्रिया को अनुचित और पूर्वाग्रहग्रस्त कह रहे हैं। उनके लिए, इस पहेली से बाहर निकलने का एकमात्र समाधान यह है कि उन हिंदुओं को नागरिकता का अधिकार दे दिया जाए जो एनआरसी से बाहर कर दिए गए हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने यह कानून बनाया है जो कहता है कि उन्हें पड़ोसी देशों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण शरणार्थी के तौर पर मान लिया जाए और उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी।

विडंबना यह है कि एनआरसी से बाहर कर दिए गए हर व्यक्ति को जो दावा कर रहे हैं कि वे भारतीय हैं, दो काम करने होंगे। एक, उन्हें दावा करना होगा कि वे बांग्लादेशी हैं और दो, कि उनका वहां उत्पीड़न किया गया। इसलिए, नागरिकता हासिल करने के लिए या तो वे कल झूठ बोल रहे थे या कल झूठ बोलेंगे। यह रास्ता सिर्फ उनलोगों के लिए नहीं है, जिनकी मुस्लिम पहचान है। म्यांमार में रोहिंग्या और चीन में उईगर दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़ित लोग हैं। लेकिन उन्हें स्वीकार किए जाने का कोई सवाल नहीं है, क्योंकि वे मुसलमान हैं।

यह बताएं कि जिन लोगों के पास यह प्रमाणित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि वे भारतीय हैं, ऐसा दस्तावेज भी नहीं है कि वे पड़ोसी देश से आए हैं, उनका क्या होगा?

ये लोग पड़ोसी देश से नहीं आए हैं और यह सवाल ही नहीं है कि वे इसे किसी भी तरह प्रमाणित कर सकते हैं। इसलिए, मुझे संदेह है कि सरकार सिर्फ स्वघोषणा के आधार पर या उत्पीड़न के फाॅर्मेट में उन्हें नागरिकता देगी। यह हो सकता है कि अगर आप हिंदू हैं तो अधिकारी यह मान लेंगे कि आप शरणार्थी हैं क्योंकि इन विकल्पों के बिना प्रमाण की जरूरत होगी। कोई सवाल ही नहीं है कि वे ये दस्तावेज पेश कर पाएंगे कि वे बांग्लादेशी हैं और उत्पीड़ित हैं।

कुछ राज्यों ने पहले ही कह दिया है कि वे अपने यहां एनआरसी की प्रक्रिया नहीं लागू होने देंगे। क्या इससे देश में अराजकता की स्थिति पैदा नहीं होगी?

अगर ऐसा होता है तो यह पूरा नहीं हो सकता और इससे पूरा संवैधानिक संकट होने जा रहा है। पूरे देश में इसे लागू करना सत्तारूढ़ शासन की ओर से दमन होगा।

क्या आप इस कानून के खिलाफ कोर्ट में जा रहे हैं?

मैं इस बारे में निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि काफी सारे सामाजिक कार्यकर्ता इसके खिलाफ कोर्ट जा रहे हैं। हमें इस मामले में कोर्ट और जनता के बीच दोनों जगह जाना होगा।

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Published: 12 Dec 2019, 9:10 PM