सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस: बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश, मीडिया रिपोर्टिंग पर कोई पाबंदी नहीं

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में एक अहम फैसला सुनाते हुए मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी पाबंदी को हटा दिया है। सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की रिपोर्टिंग पर लगी रोक को बॉम्बे हाई कोर्ट ने हटा दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को खारिज कर दिया। सीबीआई कोर्ट ने 29 नवंबर 2017 को एक आदेश में मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी। सेशन्स कोर्ट के फैसले को मुंबई के 9 पत्रकारों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी जिस पर यह फैसला आया है।

सीआरपीसी की धारा 327 के तहत खुली अदालत का प्रावधान है। इसलिए निचली अदालत को इस तरह की पाबंदी लगाने का अधिकार ही नहीं है, जब तक मामले की सुनवाई इन-कैमरा न हो रही हो। यह अधिकार सिर्फ उच्च न्ययालय और सर्वोच्च न्यायालय को है। अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चहिए। खुली अदालत का उद्देश्य ही यही है और मीडिया उसे जनता तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है।

इस केस में पत्रकारों की वकील वर्षा भोगले ने बताया कि मामले में मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाने की अर्जी देने वाले आरोपी और उस अर्जी का समर्थन करने वाले बाकी के आरोपियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया था, लेकिन वे कोर्ट में कोई भी ठोस तथ्य पेश नहीं कर पाए।

2005 में सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और सहयोगी तुलसी प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी। सीबीआई ने फरवरी 2010 में इस मामले की जांच शुरू की और उसी साल जुलाई में अमित शाह सहित 23 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया था। अमित शाह उस समय गुजरात में गृह राज्य मंत्री थे। मामले की सुनवाई के दौरान समय-समय पर ट्रायल कोर्ट तीन आईपीएस अधिकारियों समेत कई अभियुक्तों को मामले से बरी कर चुकी है।

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