सोहराबुद्दीन केस: अमित शाह को बरी करने के फैसले को चुनौती दे सीबीआई, याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट में कल सुनवाई

सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट इस बात की सुनवाई करेगा कि निचली अदालत द्वारा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बरी करने के फैसले को सीबीआई को चुनौती देना चाहिए या नहीं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट 23 जनवरी को इस बात की सुनवाई करेगा कि निचली अदालत द्वारा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बरी करने के फैसले को सीबीआई को चुनौती देना चाहिए या नहीं। मुंबई के वकीलों के एक संगठन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अपील की है कि वह अमित शाह को बरी किए जाने के सेशन कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सीबीआई को एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल करने का निर्देश दे।

याचिका में कहा गया, “सीबीआई एक प्रतिष्ठित जांच एजेंसी है। इसका सार्वजनिक कर्तव्य है कि वह अपनी कार्रवाई में कानून के नियम का पालन करे, जिसमें वह बुरी तरह विफल रही है। याचिका में यह बात भी कही गई है कि ट्रायल कोर्ट ने ठीक इसी तरह राजस्थान पुलिस के दो उप निरिक्षक, हिमांशु सिंह और श्याम सिंह चरण और गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एनके अमीन को पहले ही बरी कर चुकी है।”

इस बात को लेकर पहले भी सीबीआई पर सवाल उठते रहे हैं कि वह इस मामले को लेकर हाई कोर्ट क्यों नहीं गई?

2005 में सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और सहयोगी तुलसी प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी। सीबीआई ने फरवरी 2010 में इस मामले की जांच शुरू की और उसी साल जुलाई में अमित शाह सहित 23 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया था। अमित शाह उस समय गुजरात में गृह राज्य मंत्री थे।

मामले की सुनवाई के दौरान समय-समय पर ट्रायल कोर्ट ने तीन आईपीएस अधिकारियों समेत कई अभियुक्तों को मामले से बरी कर दिया।

सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर मामले से जुड़े एक केस का संबंध जज बीएच लोया की संदिग्ध मौत से भी जुड़ा है। जज लोया की 1 दिसंबर 2014 को रहस्यमय हालत में दिल का दौरा पड़ने से नागपुर में मृत्यु हो गई थी। जज लोया वहां एक साथी की बेटी की शादी में शामिल होने गए थे। उस समय जज लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे।

जज लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई औओर चीफ जस्टिस के रवैये को लेकर कई गंभीर मुद्दे उठाए थे, जिसके बाद जस्टिस अरूण मिश्रा ने इस केस से खुद को अलग कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने कहा था कि चीफ जस्टिस ने मनमाने तरीके से यह केस जस्टिस अरूण मिश्रा को सौंप दिया था।

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