गुजरात में पटेल की प्रतिमा के लिए सरकारी तेल कंपनियों ने दिया पैसा, सीएजी ने उठाया सवाल

सरदार पटेल की 182 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का निर्माण होना है, जिसे ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ नाम दिया गया है। 2989 करोड़ रुपए की लागत से 2018 में बनकर तैयार होने वाली इस परियोजना का ठेका अक्टूबर 2014 में लार्सन एंड टूब्रो को दिया गया था।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने करीब 3000 करोड़ रुपये की लागत से गुजरात के तट पर बन रही सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 फुट ऊंची प्रतिमा के निर्माण के लिए सरकारी तेल कंपनियों द्वारा सीएसआर फंड के तहत धन देने को गलत बताते हुए इस पर सवाल खड़े किये हैं। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक ओएनजीसी, ऑयल इंडिया लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और इंडियन ऑयल जैसी सरकारी तेल कंपनियों ने प्रतीमा के लिए करोड़ों रुपये अपने कॉरपोरेट सोशल रेसपॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत दिये हैं।

सीएजी ने 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के लिए सरकारी तेल कंपनियों की ओर से सीएसआर के तहत धनराशि देने को गलत बताया है और इसे प्रावधानों का उल्लंघन करार दिया है। खबरों के मुताबिक 7 अगस्त 2018 को संसद में पेश सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 मार्च 2017 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' परियोजना के निर्माण के लिए 5 केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने सीएसआर के तहत 146.83 करोड़ रुपये की धन राशि उपलब्ध कराई है। इनमें से तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने 50 करोड़, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम निगम लिमिटेड ने 25 करोड़, भारत पेट्रोलियम निगम लिमिटेड ने 25 करोड़, इंडियन ऑयल निगम लिमिटेड ने 21.83 करोड़, और ऑयल इंडिया लिमिटेड ने 25 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध करायी है।

रिपोर्ट के अनुसार इन कंपनियों ने इन राशियों को सीएसआर के ऐतिहासिक परिसंपत्तियों, कला एवं संस्कृति के संरक्षण के प्रावधान तहत दर्शाया है। वहीं, सीएजी का कहना है कि सीएसआर नियमों के तहत कोई भी सार्वजनिक कंपनी किसी राष्ट्रीय धरोहर के संरक्षण और रखरखाव के लिए सीएसआर फंड का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन सरदार पटेल की निर्माणाधीन प्रतिमा राष्ट्रीय धरोहर के दायरे में नहीं आती है। कंपनियों के योगदान को कंपनी अधिनियम 2013 की सातवीं अनुसूची के अनुसार सीएसआर नहीं माना जा सकता है। सीएजी ने साफतौर पर माना है कि तेल कंपनियों द्वारा इस प्रतिमा के लिए किसी तरह का योगदान नियमों के खिलाफ है और गलत है।

बता दें कि स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि परियोजना के लिए अब तक देशभर के किसानों से 1 लाख 69 हजार लोहे के उपकरण एकत्र कर लिए गए हैं। वहीं, इस परियोजना पर बनाई गई एक एड फिल्म में दावा किया जा रहा है कि देश के लौह पुरुष सरदार पटेल की इस प्रतिमा के लिए पूरे देश से लोहा एकत्र किया जा रहा है, जिसमें किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर दिए जा रहे फावड़ा, कुदाल, हल जैसे पुराने उपकरणों को गुजरात पहुंचाया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि फिर सरकारी तेल कंपनियों को सीएसआर फंड के नाम पर धन देने की क्या जरूरत है।

गौरतलब है कि स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के नाम से सरदार पटेल की याद में उनकी एक विशाल प्रतीमा बनाने के लिए गुजरात सरकार ने सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट संगठन की स्थापना की है। इस संगठन ने 2989 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना का ठेका अक्टूबर 2014 में लार्सन एंड टूब्रो को दिया है। इस प्रोजेक्ट के तहत सरदार पटेल की एक 182 मीटर कांसे की प्रतिमा, एक स्मारक स्थल, एक आगंतुक केंद्र, एक बागीचा और श्रेष्ठ भारत भवन का निर्माण किया जाना है। इस परियोजना का अक्टूबर 2018 तक पूरा होने का लक्ष्य है। यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी।

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