क्या हत्या हुई थी अमित शाह केस की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज की? 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ चल रहे केस में सुनवाई कर रहे सीबीआई जज बृज गोपाल हरकिशन लोया की 2014 के नवंबर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी, जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

मुंबई में सीबीआई स्पेशल कोर्ट के 48 वर्षीय जज बृज गोपाल हरकिशन लोया का स्वास्थ्य अच्छा थे। वह रोज 2 घंटे टेबल टेनिस खेलते थे और उनके परिवार में भी किसी के हृदय रोग से पीड़ित होने का कोई इतिहास नहीं है। उनके लगभग 80 वर्ष के मां-बाप अभी भी जिंदा हैं और स्वस्थ हैं। जज लोया 29 नवंबर 2014 को अपने एक साथी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए नागपुर गए थे और वहां से उन्होंने 30 नवंबर की रात 11 बजे के बाद 40 मिनट तक अपनी पत्नी से अच्छी तरह फोन पर बातचीत की थी। और फिर बताया गया कि 12.30 बजे रात को उनको दिल का जबर्दस्त दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई।

अंग्रेजी पत्रिका ‘कैरावान’ के पत्रकार निरंजन टाकले ने कुछ ऐसे सबूत इकट्ठे किये हैं जिसकी वजह से सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में नागपुर पुलिस, आरएसएस और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के पर शक के बादल गहरे हो जाते हैं। इस मामले की सुनवाई सीबीआई अदालत में चल रही थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि शुरू से आखिर तक इस मामले की सुनवाई एक ही जज करेगा।

यहां यह बताना जरूरी है कि इशरत मामले में पहले जज का तबादला नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के के एक महीने के अंदर 25 जून को कर दिया गया था। जज ने अदालत में अमित शाह के हाजिर न होने पर सख्ती भी की थी। अमित शाह के वकील ने अदालत से कहा था कि उनको मधुमेह की बीमारी है, इसलिए उनको आने में परेशानी है। मई 2014 में चुनाव जीतने के बाद अमित शाह के वकील ने अदालत को सिर्फ इतनी ही जानकारी दी कि वह दिल्ली में काफी व्यस्त हैं।

बृज गोपाल हरकिशन लोया को अक्टूबर 2014 में सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस मिला था। उन्होंने अमित शाह को आरोप तय होने तक निजी तौर पर अदालत में हाजिर होने से छूट दे दी थी। लेकिन उन्होंने इस बात पर अपनी नाराजगी का इजहार किया था कि अमित शाह मुंबई में मौजूद होने के बावजूद अदालत में हाजिर नहीं हुए। लोया ने 15 दिसंबर सुनवाई की तारीख तय की थी, लेकिन 1 दिसंबर को उनकी मौत हो गई या कथित तौर पर उनकी हत्या की गई।

टाकले ने अपनी रिपोर्ट में जो सवाल उठाए हैं, उससे काफी शक पैदा होता है और उनकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए:

1. जिन दो साथी जज के कहने पर वह उनके साथ नागपुर में शादी में शामिल होने के लिए गए थे, उन्होंने न तो मृतक जज के परिवार से डेढ़ महीने तक कोई मुलाकात की और न ही वह अपने साथी के शव के साथ उनके पैतृक गांव लातूर गए।

2. नागपुर में ये सभी जज वीआईपी गेस्ट हाउस ‘रवि भवन’ में ठहरे थे, लेकिन दावा ये है कि लोया को एक ऑटोरिक्शा से निजी अस्पताल ले जाया गया था।

3. रवि भवन से ऑटो रिक्शा स्टैंड 2 किलोमीटर के फासले पर है और आम तौर पर दिन में भी गेस्ट हाउस के करीब ऑटो रिक्शा नहीं मिलते हैं। उनको आधी रात के बाद कैसे ऑटोरिक्शा मिल गया?

4. लोया को एक छोटे से निजी ‘डांडे अस्पताल’ क्यों ले जाया गया?

5. जज दावा करते हैं कि लोया डांडे अस्पताल में सीढ़ियां खुद चढ़ रहे थे और वहां उनको दवा दी गई थी। उनको जब दूसरे निजी अस्पताल ‘मेडीट्रीना’ ले जाया गया तो वहां की रिपोर्ट में कहा गया कि ‘मरीज को मृत लाया गया’।

6. अगर उनकी मौत प्राकृतिक थी और उसमें कोई साजिश नहीं थी तो फिर उनका पोस्टमार्टम क्यों किया गया? किसने फैसला किया कि पोस्टमार्टम जरूरी है?

7. किसने पोस्टमार्टम के हर पन्ने पर मृतक के रिश्तेदार की हैसियत से हस्ताक्षर किये थे? और वह रहस्यमयी व्यक्ति कौन था जिसे मृतक जज की लाश सौंपी गई ?

8. न तो नागपुर पुलिस ने और न ही वहां मौजूद जज साथियों ने मृतक के घरवालों को मौत की खबर दी। आरएसएस के कार्यकर्ता ईश्वर बहेटी ने ये खबर क्यों दी?

9. बहेटी ने सुबह 5 बजे कैसे मृतक के घरवालों को मौत की खबर दी और मृतक के घर वालों को दिल का दौरा पड़ने के फौरन बाद क्यों सूचना नहीं दी गई?

10. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मौत का वक्त क्यों 6.30 बजे दर्ज है।

11. पुलिस पंचनामा तैयार करने में क्यों नाकाम रही और उनकी निजी चीजों को जब्त करके क्यों नहीं रखा?

12. आरएसएस कार्यकर्ता बहेटी के पास मृतक का मोबाइल फोन कहां से आया जो उन्होंने 3 दिन बाद मृतक के परिवार को लौटाया?

13. किसने मृतक के फोन से सभी कॉल रिकॉर्ड्स और मैसेज डिलिट किये जिसमें वह मैसेज भी था जो मृतक को मौत से कुछ दिन पहले ही मिला था? मृतक के घरवालों के मुताबिक उस मैसेज में लिखा था, ‘सर उनलोगों से बचकर रहिये’।

14. मृतक लोया के घरवालों ने नोटिस किया कि उनके शर्ट के कॉलर पर खून के धब्बे थे, उनकी बेल्ट उल्टी तरफ मुड़ी हुई थी, पैंट का क्लिप टूटा हुआ था और सर के पीछे चोट थी। लेकिन इनमें से किसी भी बात का पोस्टमार्टम में जिक्र नहीं है।

15. मृतक के घरवालों को दूसरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट न लेने की सलाह क्यों दी गई?

16. मृतक की विधवा और बेटे को किस बात का डर है? वह टाकले से बात करने से क्यों डर रहे हैं और ये कहते हैं कि उनको अपनी जान का खतरा है।

सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में ‘कैरावन’ पत्रिका में छपी एक और सनसनीखेज रिपोर्ट में निरंजन टाकले ने बताया है कि मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया को बॉम्बे हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह के पक्ष में फैसला देने के लिए 100 करोड़ रुपये देने की पेशकश की थी। लोया की बहन अनुराधा बियानी ने निरंजन को बताया, “मेरे भाई को 100 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की पेशकश की गई थी...खुद मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह ने ये पेशकश की थी।” लोया के पिता ने भी निरंजन को बताया कि उनके बेटे ने उन्हें बताया था कि उसे पक्ष में फैसला देने के लिए पैसे और मुंबई में एक घर की पेशकश की गई है।

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Published: 21 Nov 2017, 4:25 PM