आरबीआई की रिपोर्ट: नोटबंदी के पहले से ज्यादा कैश सर्कुलेशन में, जुमला साबित हुआ कैशलेस अर्थव्यवस्था का दावा

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने देश में करेंसी सर्कुलेशन के जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक 16 फरवरी, 2018 को देश में 17.77 लाख करोड़ नकद चलन में है। 8 नवंबर, 2016 तक 17.74 लाख करोड़ नकद चलन में थे।

फोटो: सोशल मीडिया 
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तसलीम खान

तारीख 8 नवंबर, 2016, वक्त रात 8 बजे, पूरा देश टीवी स्क्रीन पर नजर गड़ाए बैठा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी स्क्रीन पर अवतरित होते हैं, और देश के नाम संदेश देते हैं। शुरू के पहले करीब 15 मिनट प्रधानमंत्री देश की अर्थव्यवस्था, कालेधन, कालेधन का आतंकवाद में इस्तेमाल, भ्रष्टाचार, जाली नोट, हवाला और बेनामी संपत्तियों की बात करते हैं। फिर वह ऐलान करते हैं, “आज रात मध्य रात्रि यानी 8 नवंबर 2016 की रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपए के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। यानी ये मुद्राएं कानूनन मान्य नहीं रहेंगी।”

यह ऐसा बम था जिससे पूरा देश सकते में आ गया। लोग बैंकों की ओर दौड़ पड़े, पुराना पैसा जमा कराने, और चलन में आई नई करेंसी गुलाबी रंग का 2000 रुपए का नोट हासिल करने। नकद पर चलने वाले काम-धंधे बंद होने लगे, बैंकों की लाइनों में खड़े लोगों की मौत की खबरें आने लगीं।

इस नोटबंदी के ऐलान के बाद सरकार की पूरी मशीनरी, सारे मंत्री, सारी अफसरशाही, हर छोटा-बड़ा नेता सरकार के इस कदम को सही ठहराने में जुट गया। मोटे तौर पर जो तर्क दिया गया, वह यह कि अब देश ‘लेस कैश’ और ‘कैशलेस’ यानी कम नकद बिना नकदी वाली अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है, सारे ट्रांजैक्शन यानी लेनदेन इलेक्ट्रानिकली होंगे। कार्ड, इलेक्ट्रानिक वॉलेट, नेट-बैंकिंग आदि से लेनदेन पर कोई रोक नहीं होगी। तर्क दिया गया कि ज्यादा कैश चलन में नहीं होगा तो आतंकवाद, भ्रष्टाचार, जाली नोट और कालेधन का खात्मा हो जाएगा।

जिस समय प्रधानमंत्री ने देश में चलन में मौजूद कुल करेंसी यानी नकद पैसे के 86 फीसदी से ज्यादा को गैर कानुनी करार दिया, उस समय देश में हर मूल्य के नोट मिलाकर कुल नकद 17 लाख 10 हजार करोड़ रुपए था।

लेकिन सरकार और प्रधानमंत्री की हर घोषणा की तरह ‘लैस कैश’ और ‘कैश लैस’ अर्थव्यवस्था का नारा भी जुमला ही साबित हुआ है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने देश में चलन में कुल नकद यानी करेंसी इन सर्कुलेशन के जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक 16 फरवरी, 2018 को देश में 17.77 लाख करोड़ नकद चलन में है यानी इतनी रकम की करेंसी सर्कुलेशन में है। इतना ही नहीं आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि साल दर साल आधार पर भी नकदी में बढ़ोत्तरी हो रही है।

आरबीआई की रिपोर्ट: नोटबंदी के पहले से ज्यादा कैश सर्कुलेशन में, जुमला साबित हुआ कैशलेस अर्थव्यवस्था का दावा
आरबीआई की प्रेस रिलीज

आरबीआई आंकड़े बताते हैं कि बीते एक साल में करेंसी इन सर्कुलेशन में 6,45,960 करोड़ रूपए का इजाफा हुआ है, जो पिछले साल के मुकाबले 57.1 फीसदी ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल इसी अवधि में सर्कुलेशन में कुल 4,92,380 करोड़ रूपए की कमी थी, जो इससे पहले मौजूद करेंसी सर्कुलेशन का 30.3 फीसदी थी।

आरबीआई की रिपोर्ट: नोटबंदी के पहले से ज्यादा कैश सर्कुलेशन में, जुमला साबित हुआ कैशलेस अर्थव्यवस्था का दावा
आरबीआई की प्रेस रिलीज में जारी आंकड़े

इतना ही नहीं, फरवरी 2018 तक रिजर्व बैंक के पास बैंकों के जमा में भी 5.1 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, जो कुल मूल्य में 4,82,220 करोड़ रुपए होती है।

गौरतलब है कि 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के ऐलान के बाद सरकार ने 50 दिन का समय दिया था पुराने नोटों को जमा कराने के लिए। इसकी मीयाद 30 दिसंबर 2016 को खत्म हो गयी थी। इस अवधि के खत्म होने के एक सप्ताह बाद यानी 6 जनवरी 2017 को देश में कुल 8.11 लाख करोड़ रूपए की नकदी चलन में थी यानी सर्कुलेशन में थी। लेकिन अब यही रकम यानी करेंसी इन सर्कुलेशन दो गुने से ज्यादा यानी 17.77 लाख करोड़ हो गयी है।

नोटबंदी के बाद सरकार ने ‘लेस कैश’ और ‘कैशलेस’ अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीटने के लिए करोड़ रुपया विज्ञापनों, चर्चाओं, चौपालों पर खर्च किया था। सरकार का पूरा जोर इलेक्ट्रानिक लेनदेन पर था। डिजिटल इंडिया के नारे गूंज रहे थे, और सरकार ने तो बाकायदा डिजिधन की संज्ञा भी गढ़ ली थी।

लेकिन ये सारे नारे, सारी कवायद धरी की धरी रह गई है। रिजर्व बैंक ने अपने आंकड़ों में सरकार के लैस कैश और कैश लेस अर्थव्यवस्था के लक्ष्य और नारों की हवा निकाल दी है।

इतना ही नहीं कुछ माह पहले रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में पेश आंकड़ों से सरकार के मुंह पर तमाचा मारा था। इन आंकड़ों में बताया गया था कि नोटबंदी के ऐलान के बाद गैर कानूनी घोषित किया गया सारा पैसा बैंकों में वापस पहुंच गया। हालांकि रिजर्व बैंक ने अभी तक इसके आखिरी आंकड़े नहीं पेश किए हैं, लेकिन उसकी सालाना रिपोर्ट में स्पष्ट था कि अमान्य करेंसी का 99 फीसदी बैंकों में वापस आ चुका था।

रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में 30 जून 2017 तक के आंकड़े शामिल किए थे। रिपोर्ट में सिर्फ एक फीसदी नोट ही वापस नहीं आने का जिक्र था यानी मात्र 8900 करोड़ रुपए के नोट ही वापस नहीं आए। यहां बताना जरूरी है कि नवंबर, 2016 तक कुल 17.74 लाख करोड़ रुपये मूल्य के पुराने नोट सर्कुलेशन में थे। सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को कुल 15.44 लाख करोड़ के 1000 और 500 के नोट गैरकानूनी यानी अमान्य कर दिए थे। रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बंद किए गए नोटों में से 15.28 लाख करोड़ मूल्य के करेंसी नोट वापस आ चुके हैं।

रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट ने यह भी बताया था कि नोटबंदी के चलते वित्त वर्ष 2016-17 में नोटों की छपाई की लागत में दो गुना का इजाफा हुआ है। इस वित्त वर्ष में नोटों की छपाई पर कुल 7,965 करोड़ रुपए खर्च हुए, जबकि इससे पहले वित्त वर्ष 2015-16 में नोटों की छपाई पर 3,421 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।

नोटबंदी पर रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट आने के बाद जैसे ही देश को पता चला कि 500 और 1000 रुपए की शक्ल में सारा का सारा नकद पैसा बैंकों में वापस पहुंच गया, तो नोटबंदी को लेकर सरकार की मंशा पर लानतों का दौर शुरु हो गया था। चौतरफा खिंचाई और खुद को घिरता देख वित्त मंत्री अरुण जेटली ने खुद मोर्चा संभाला था और ऐलान किया था कि नोटबंदी का लक्ष्य देश को कैशलेस और डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाना था, और वह मकसद पूरा हुआ है।

वित्त मंत्री के इस बयान से देश को आश्चर्य नहीं हुआ था। इसका कारण था कि नोटबंदी के बाद आम लोगों, गरीबों, किसानों और मजदूरों को हो रही दिक्कतों को देखते हुए सरकार ने अपना नरेटिव ही बदल लिया था। कालेधन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर नकेल के नाम पर शुरु हुई नोटबंदी से मचे हाहाकार से जब देश चीत्कार कर उठा था, तो मोदी सरकार के भी हाथ पांव फूल गए थे, और बिना समय गंवाए सरकार के सिपहसालारों और वजीरों ने आनन-फानन एक किस्सा गढ़ लिया था कि नोटबंदी का असली मकसद तो देश में नकद लेनदेन को खत्म कर कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाना है।

यूं भी इलेक्ट्रानिक पेमेंट मुहैया कराने वाली कंपनियों ने बड़े अखबारों के मुख्य पन्ने पर बड़े बड़े विज्ञापन छापकर जिस तरह प्रधानमंत्री का धन्यवाद अदा किया था, उससे दाल में कुछ काला होने की चर्चा शुरु भी हुयी थी। प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के बाद 50 दिन का वक्त मांगा था हालात सामान्य करने के लिए, लेकिन नोटबंदी के 8 महीने के बाद भी देश के कई हिस्सों में नकद की दिक्कत बरकरार थी।

जो नया कथ्यसार गढ़ा गया था वो यह था कि नोटबंदी का फैसला डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है। कहानी में इस नए ट्विस्ट के साथ ही देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों की सुनामी सी आ गयी थी। लोगों को इस तरफ आकर्षित करने के लिए डिजीधन मेले लगाए गए, लकी ड्रॉ निकाले गए। अधिकारियों और मंत्रियों ने बड़े-बड़े दावे किए कि देश नकद अर्थव्यवस्था से डिजिटल अर्थव्यवस्था में छलांग लगा चुका है और सर्कुलेशन में जितना भी पैसा है वह पर्याप्त है।

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने तो यहां तक कह दिया था, “2020 तक एटीएम, क्रेडिट कार्ड और स्वाइपिंग मशीनें बेकार हो जाएंगी, क्योंकि आने वाले दिनों में हर भारतीय सिर्फ अंगुठे की छाप से सेकेंडों में लेनदेन कर लेगा।” प्रधानमंत्री ने भी मार्च महीने की मन की बात में लोगों से कहा कि खुलकर डिजिटल लेनदेन करें जिससे एक साल का लक्ष्य आधे साल में ही पूरा हो जाए।

लेकिन डिजिटल लेनदेन, लेस कैश और केशलेस, सबकुछ जुमला ही साबित हुआ है।

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