मंत्रिमंडल फेरबदल : उत्तर भारत पर भरोसा, अगड़ी जातियों का वर्चस्व

सरकार के सामने योजनाओं की विश्वसनीयता और क्रियान्वय को लेकर जो संकट है, उसे ठीक करने के मकसद से कड़क और उग्र किस्म के फैसले लेने के लिए विवादों में रहे नौकरशाहों को मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है।

फोटो : IANS
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भाषा सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के विस्तार में एक बार फिर नौकरशाही पर भरोसे को दोहराया है। नौ नए मंत्रियों में चार नौकरशाही में बड़े पदों पर रहे हैं। केंद्र सरकार के सामने अपनी योजनाओं की विश्वसनीयता और उन पर क्रियान्वय को लेकर जो संकट चल रहा है उसे ठीक करने के मकसद से बहुत कड़क और उग्र किस्म के फैसले लेने के लिए विवादों में रहे नौकरशाहों को इस बार मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है।

दूसरा संदेश साफ है कि ये सरकार बीजेपी की है और सहयोगी दलों को जितना दिया जाना था, वह मिल चुका है, और अब उनके लिए कोई जगह नहीं है। इस फैसले में अमित शाह की मजबूत भी पकड़ दिखाई देती है। जनता दल यूनाइटेड, शिव सेना से लेकर अन्नाद्रमुक सबको ठेंगा दिखा दिया गया है। यानी सहयोगियों के लिए केंद्र में अपनी सत्ता की हिस्सेदारी में अंगूर खट्टे हैं।

केरल से कैबिनेट में प्रवेश पाने वाले एलफॉन्स कन्ननथनम को दिल्ली के डिमोलिएशन मैन—झुग्गियों को नेस्तनाबूद करने वाले अधिकारी के तौर पर याद किया जाता है, वहीं बिहार के आरा से सांसद राज कुमार सिंह कांग्रेस के शासनकाल में गृह सचिव थे और उनकी शोहरत लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने की रही है। हरदीप सिंह पुरी ने विदेश सेवा में लंबी पारी खेली और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी प्रतिनिधित्व के लिए तगड़ी पैरवी की। बागपत से सांसद सत्यपाल सिंह को कैबिनेट में जगह देकर जाट समीकरण को तो ध्यान में रखा ही गया है, मुंबई पुलिस कमिश्नर के रूप में उनकी कड़क छवि ने भी भूमिका अदा की है।

नौ नए चेहरों में उत्तर भारत का बोलबाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को 2019 के लिए ठोस भरोसा सिर्फ उत्तर भारत से ही दिखाई देता है। केरल से एलफॉन्स और कर्नाटक से अनंत कुमार हेगड़े को छोड़कर सात नए मंत्री उत्तर भारत से ही हैं। उत्तर भारत में भी ब्राहमण और ठाकुरों को ज्यादा जगह दी गई है। तीन ब्राहमण और दो ठाकुर हैं, जिसमें से शिव प्रताप शुक्ला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से हैं और खांटी से ब्राहमण नेता के तौर पर उनकी छवि है। इन्हें योगी आदित्यनाथ के ठाकुर बहुल प्रभाव से नाराज ब्राहमणों को मैनेज करने के लिए लाया गया है। अनंत कुमार हेगड़े भी ब्राहमण हैं और वहां के लिंगायत समुदाय की मांग को दरकिनार करके अनंत को मंत्रिमंडल में जगह देकर ब्राहमण वोटबैंक का दांव चला गया है।

बिहार से अश्विनी कुमार चौबे भी सवर्ण जातियों और खासतौर से संघ के आधार को संतुष्ट करने के लिए शामिल किए गए हैं। मध्य प्रदेश से वीरेंद्र कुमार जो दलित समुदाय से आते हैं, उन्हें राज्य में इस समुदाय की पार्टी से बढ़ती दूरी को पाटने और धर्मान्तरण पर कड़ा वार करने के लिए शामिल किया गया है। राजस्थान से गजेंद्र सिंह शेखावट को मुख्यमंत्री वसुंधरा के बीच सत्ता समीकरण को साधने और हाई-टेक के जरिए युवाओं को संघ के आधार को विस्तारित करने के लक्ष्य से लाया गया है।

जातिगत लिहाज से वर्चस्ववादी जातियों का प्रभुत्व केंद्र सरकार पर सिर चढ़कर बोल रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कमान और सख्त हुई है।

कॉरपोरेट के हितों की सही ढंग से आगे बढ़ाने वाले मंत्रियों को कैबिनेट का दर्जा दिया है। निर्मला सीतारमन, धमेंद्र प्रधान, और पीयूष गोयल ने पिछले तीन सालों में अच्छे नतीजे दिखाए हैं। बताया जाता है कि कॉरपोरेट घरानों में खास तौर से अडानी और अंबानी खेमा इनके कामकाज से गदगद है।

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