लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी और जनाधार को बचाना राजद की सबसे बड़ी चुनौती

चारा घोटाला से जुड़े एक मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद उनकी पार्टी राजद और उनके परिवार के राजनीतिक भविष्य को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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आईएएनएस

यह कोई पहली बार नहीं है कि लालू यादव जेल गए हैं। इसके पहले भी वह जेल जा चुके हैं, लेकिन तब उनके अंदर रहने से उनकी पार्टी राजद को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। अब एक बार फिर बदली राजनीतिक परिस्थितियों में राजद और लालू के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।

भ्रष्टाचार के मामले में कानून किसे दोषी मानता है और किसे नहीं, यह समाज में बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता रहा है क्योंकि जाति की राजनीति में बड़ी भूमिका रही है। राजनीतिक विश्लेषक और पटना के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि यह सही है कि जब से लालू प्रसाद चारा घाटाले के मामले में फंसे हैं, उनके जनाधार में कमी आई है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे बिहार की राजनीति में हाशिये पर चले गए हों। उन्होंने कहा, "देश में ऐसा देखा जाता रहा है कि भ्रष्टाचार के कई मामलों में दोषी पाए जाने के बाद भी समाज और जाति के लोग चिपके रहते हैं। लालू की मुख्य पकड़ यादव और मुसलमानों पर रही है। जाति केंद्रित समाज में लोगों का नजरिया बहुत हद तक जाति के ही इर्द-गिर्द घूमता रहता है। ऐसे में माना जा सकता है कि यादव जाति के लोगों का उनके प्रति झुकाव बना रहेगा।"

सुरेंद्र किशोर का कहना है कि बिहार के मुसलमानों को बीजेपी का कोई विकल्प नजर नहीं आता है। ऐसे में उनका लालू से अलग होना बहुत आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद अतिवादी मुसलमानों के दर्द को भी सहलाते रहे हैं, ऐसे में उन्हें लालू का चेहरा ज्यादा पसंद आता है।

राजद के नेता भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को इस मामले में बरी किए जाने को जातीय मानसिकता के प्रमाण के रूप में पेश कर रहे हैं। राजद के नेता शिवानंद तिवारी भी कहते हैं लालू के जेल जाने के बाद पिछड़े और दलित समुदायों का भी उन्हें समर्थन मिलेगा।

किसी भी राजनीतिक दल के प्रमुख की अनुपस्थिति, खासकर लालू जैसे नेता की अनुपस्थिति पार्टी के लिए नुकासानदेह साबित हो सकती है। यही कारण है कि राजद के लिए यह स्थिति संकटपूर्ण है। अगर यह लड़ाई केवल बीजेपी से होती तो राजद आसानी से निपट भी लेता, लेकिन बीजेपी के पास अब नीतीश का भी साथ है, जिन्हें राजनीति में जातीय गणित का 'मास्टर' माना जाता है। नीतीश की पकड़ भी कोइरी और कुर्मी जाति पर रही है। ऐसे में राजद के लिए यह लड़ाई आसान नहीं मानी जा रही।

राजनीति के कई विशलेषक राजद को एकजुट रखने को भी चुनौती बता रहे हैं। बिहार की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले शैबाल गुप्ता कहते हैं, "राजद प्रमुख के जेल जाने के बाद राजद में नेतृत्व को लेकर कोई खालीपन नहीं दिखता है, लेकिन नेतृत्वकर्ता तेजस्वी यादव के सामने पार्टी को एकजुट रखने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।" इतना तय माना जा रहा है कि लालू की अनुपस्थिति से देश और बिहार की राजनीति में बनी रिक्तता का भरपूर लाभ अन्य दल भी उठाना चाहेंगे। इसके लिए सभी दल अपने जातीय समीकरण को दुरुस्त कर राजद के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगाने की भी पूरी कोशिश करेंगे।

इस बार लालू प्रसाद के लिए मुश्किलें पहले से ज्यादा हैं। पार्टी में उनके उत्तराधिकारी की समस्या भले न हो, लेकिन उनके बेटे तेजस्वी और बेटी मीसा भारती भी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुए हैं। ऐसी परिस्थिति में तेजस्वी और मीसा की कानूनी लड़ाई की प्रगति पर बहुत हद तक राजद का भविष्य टिका रहेगा।

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