उत्तर प्रदेश: चुनाव आते ही राम मंदिर बन जाता है बीजेपी के लिए मुद्दा

इस जमीनी हकीकत से वाकिफ कि मंदिर को लेकर कोई कानून बनाना इस समय संभव नहीं है, शाह और यूपी आरएसएस के बड़े नेताओं ने अगले लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे को जिंदा रखने के तरीके ढूढ़ने शुरू किए। और यही वो चीज है जो पूरी भगवा ब्रिगेड इस वक्त करती हुई दिख रही है।

फोटो: सोशल मीडिया
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शरत प्रधान

चुनाव आता है और राम मंदिर बीजेपी की राजनीति का केंद्रीय मुद्दा हो जाता है।

यही कारण है कि अचानक कई भगवा समूहों से अयोध्या के विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर बनाने की मांग सुनाई देने लगी है। बीजेपी के मुख्य नेतृत्व का रवैया इस मसले पर पूरी तरह साफ नहीं है, लेकिन पार्टी से जुड़े कई संगठनों और लंपट तत्वों द्वारा इस मांग को काफी संयोजित तरीके से उठाया जा रहा है।

पिछले हफ्ते पहली घंटी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बजाई जब उन्होंने राम मंदिर के निर्माण के लिए खुले तौर पर कानून बनाने की वकालत की। निश्चित है कि आरएसएस प्रमुख इस बात को जानते होंगे कि कोई भी कानून बनाने के लिए संसद के दोनों सदनों में बहुमत आवश्यक है, जो अभी भी बीजेपी के पास नहीं है। राज्यसभा में बीजेपी की अपर्याप्त संख्या राम मंदिर बनाने के लिए कानून लाने में सबसे बड़ी बाधा है।

इसके अलावा 23 अक्टूबर को अयोध्या की गलियों एक जबरदस्त नाटक हुआ, जब एक समय में काफी बड़बोले रहे वीएचपी के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष और फिलहाल अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद् के स्व-नियुक्त मुखिया प्रवीण तोगड़िया ने वहां एक मार्च करने की कोशिश की। लेकिन उन्हें लोगों को जुटाने में सफलता नहीं मिली, अयोध्या के विवादित स्थल पर मौजूद अस्थायी राम मंदिर तक मार्च करने की उनकी घोषणा से फैली सनसनी मंदिर आंदोलन में उनकी खोई जगह को वापस पाने के लिए काफी थी।

चूंकि पिछले कुछ समय से तोगड़िया प्रधानमंत्री मोदी के साथ टकराव में है, यह उनके लिए स्वाभाविक था कि वे राम मंदिर पर केंद्र सरकार के टालू रवैये की आलोचना करें। लेकिन वह भी बीजेपी के लिए अनुकूल था और उसने बमुश्किल 48 घंटे के भीतर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को लखनऊ पहुंचने का बहाना दे दिया।

हालांकि शाह ने कहा कि वे लखनऊ में बीजेपी-आरएसएस संयोजक समिति की अंदरूनी बैठक में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे हैं। लेकिन ऐसे कयास भी लगाए जा रहे थे कि शाह योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट के विस्तार को अंतिम रूप देने पहुंचे हैं, लेकिन जानकार सूत्रों ने दावा किया कि बैठक का केंद्रीय मुद्दा राम मंदिर पर ही टिका रहा। इस पर भी चिंता जताई गई कि अयोध्या के मुद्दे को तोगड़िया ने हड़पने की कोशिश की।

इस जमीनी हकीकत से वाकिफ कि मंदिर को लेकर कोई कानून बनाना इस समय संभव नहीं है, शाह और यूपी आरएसएस के बड़े नेताओं ने अगले लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे को जिंदा रखने के तरीके ढूढ़ने शुरू किए। और यही वो चीज है जो पूरी भगवा ब्रिगेड इस वक्त करती हुई दिख रही है।

बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी पहले से ही इस मुद्दे को लेकर काफी मुखर हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जो उल्टी-सीधी बातें करने के लिए विख्यात हैं, वे इस मुद्दे पर अपने कट्टर विचारों को जाहिर करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। अब, किसी और से ज्यादा बीजेपी के प्रवक्ताओं ने प्रस्तावित मंदिर के निर्माण पर उग्र राय रखनी शुरू कर दी है। जो चीज वे बड़े व्यवस्थित तरीके से करते हुए दिख रहे हैं, वह ये है कि जो भी मंदिर (जिस एकतरफा ढंग से बीजेपी चाहती है) का विरोध कर रहे हैं, उन्हें वे हिंदू-विरोधी बता देते हैं।

सबसे बड़ी बात यह कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिनसे उम्मीद की जाती है कि देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने विचाराधीन इस मसले में घुसने से बचेंगे, वे भी हर कीमत पर राम मंदिर बनाने की बात करने में व्यस्त थे।

अजीब बात यह है कि एक ऐसे मौके पर यह सोचा-समझा अभियान चलाया जा रहा है जब सुप्रीम कोर्ट लंबे समय से लटके हुए इस मामले पर हर दिन सुनवाई करने जा रहा है। यह इस बात का संदेह पैदा करता है कि उस स्तर भावनाओं को हवा दी जाए जिससे शायद अंतिम फैसले को भी प्रभावित किया जा सके।

किसी भी स्थिति में, कोई बीजेपी प्रवक्ता कोर्ट में जारी संघर्ष में हारने की बात करते हुए नहीं दिखता। उनमें से हर कोई यह घोषणा करता है कि वे कोर्ट के निर्णय को मानेंगे, लेकिन वे इस बात को आत्मविश्वास के साथ जोड़ना नहीं भूलते कि फैसला हिंदुओं के पक्ष में आएगा।

यही वो जगह है जहां पर दोनों पक्षों के बीच मौजूद अंतर दिखाई देता है। कोई बीजेपी नेता यह कहने को तैयार नहीं है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिंदुओं के दावे के खिलाफ भी जाता है तो भी वे उसे मानेंगे। दूसरी तरफ, मुस्लिम पक्ष को यह कहने में कतई हिचक नहीं है कि उच्चतम अदालत का फैसला हर स्थिति में उनके लिए स्वीकार्य होगा – चाहे वो उनके पक्ष में हो या खिलाफ।

लोगों का ऐसा मत है कि बीजेपी नेतृत्व 2019 के लोकसभा चुनावों को प्रभावित करने के लिए अयोध्या कार्ड खेल रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि 5 राज्यों में हाल में होने वाले विधानसभा चुनावों में कम से कम 3 में इस मुद्दे का लाभ उठाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। जिन 5 राज्यों में अगले दो महीनों के भीतर चुनाव होने वाले हैं, उनमें से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मंदिर कार्ड मतदाताओं के दिमाग को प्रभावित कर सकता है। हालांकि ऐसा नहीं लगता कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जल्दी आएगा।

शायद इसी वजह से बीजेपी और उसके सहयोगी दल मंदिर को लेकर एक हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, खासतौर पर यह फैलाने के लिए भव्य अयोध्या मंदिर का लंबा इंतजार पूरा हो चुका है और सत्ताधारी बीजेपी उसके निर्माण का रास्ता जल्द साफ करेगी। हालांकि, बीजेपी ने इस मुद्दे को जो हवा दी है उससे उसे राजनीतिक फायदा होगा या नहीं, यह अब भी एक बड़ा सवाल है।

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Published: 27 Oct 2018, 6:59 AM
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